कोरोना काल में दिव्यांग प्रीतम का अनूठा कर्मयोग
मणिकांत मयंक फतेहाबाद आप अपने प्रदेश के हो अथवा बाहर से आए? क्या कहा-बाहर से? तब तो
मणिकांत मयंक, फतेहाबाद
आप अपने प्रदेश के हो अथवा बाहर से आए? क्या कहा-बाहर से? तब तो राशन कार्ड बना नहीं होगा? फिर राशन? पहुंच रहा क्या? कुछ ऐसे ही सवाल-जवाब।हर दिन ऐसी कसरत प्राथमिक स्कूल के एक ऐसे शिक्षक कर रहे जो श्रवण-दिव्यांग हैं। अस्सी फीसद। कुदरत ने उनसे सुनने की शक्ति छीन ली मगर कर्म के बल नियति को जवाब देने के जज्बात अपनी जगह अडिग। कोरोना काल में दिव्यांग शिक्षक प्रीतम का जज्बा इन दिनों चर्चाओं में है। उनका अनूठा कर्मयोग लाखों दिव्यांग के साथ करोड़ों नागरिक के लिए अनुकरणीय है।
दोनों कानों में यंत्र लगाकर कर्तव्य-पथ के अद्भुत राही प्रीतम ने कोरोना काल में समर्पित भाव से ऐसी प्रीत लगाई कि सुशिक्षित समाज, स्वस्थ समाज और पर्यावरण संरक्षण-समाज के तीन अहम सरोकारों को साधना शुरू कर दिया। इस लॉकडाउन के दौरान भी रोजाना स्कूल जाना, वहां जाकर मिड-डे-मील बांटना आम बात है। पेड़-पौधों को हरा-भरा रख पर्यावरण बचाने की मुहिम में अहम योगदान दे रहे हैं। इन सबसे भी ऊपर यह कि आफत की इस घड़ी में भोजन के लिए तनावग्रस्त जरूरतमंद परिवारों को डिस्ट्रेस टोकन दे रहे हैं। राशन के अभाव में जी रहे गरीबी रेखा से नीचे और खासकर प्रवासी लोगों से राशन मिलने अथवा नहीं मिलने की जानकारी जुटाकर उन्हें साथ की डिपो से जोड़ भी रहे हैं। इस क्रम में वह सुबह-शाम घर-घर दस्तक देते हैं।
वार्ड-22 में उत्तरप्रदेश के बदायूं जिले से आए प्रवीण कहते हैं कि मास्टर प्रीतमजी ने घर में राशन की समस्या ही खत्म करवा दी। अब तो डिपो में भी उनका नाम चढ़ गया। लेकिन प्रीतम कहते हैं कि इससे पहले फैमिली आइडी का सर्वे भी किया था। सर्वे के बाद एक सूची आई थी। उसके ही अनुरूप अपने कर्म को आगे बढ़ा रहे हैं। हर जरूरतमंद परिवार तक सेहत का आहार पहुंचाना सरकार व खुद उनका भी ध्येय रहा है। उनकी देखादेखी अनेक शिक्षकों ने भी अपनी कर्तव्य-निष्ठा को गति दी है।
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नप ने कहा था कि टीचर ही इस काम को देखें
नगर परिषद के ईओ जितेंद्र कुमार ने कहा था कि शिक्षकों ने सर्वे किया था। अब अगर जरूररतमंद लोगों तक डिस्ट्रेस टोकन के जरिये राशन पहुंचाना है तो वही देखें। इस टोकन के जरिये स्थानीय डिपो से दो माह का राशन मिलेगा।
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लिप्सिग से पकड़ते सवालों के जवाब
हालांकि मास्टर प्रीतम के दोनों कानों में श्रवण-यंत्र लगे हैं। फिर भी दिक्कत होती है। ऐसी परिस्थिति में वह सामने वाले के होठों पर गौर करते हैं। लिप्सिग के जरिये जानकारी नोट करते हैं।
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प्रीतम कुमार द्वारा सुबह से देर रात तक काम करना सभी गुरुजनों के लिए प्रेरक है। सभी नागरिक उनसे प्रेरणा लें। - दयानंद सिहाग।
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ऐसे अध्यापक साथियों पर हमें नाज है। वैसे भी हर मर्ज की दवा सरकारी मास्टरों पर होती है। ऐसे में, हर जिम्मेवारी का सलीके से निर्वहन वाकई अनुकरणीय है।
- देवेंद्र सिंह दहिया, मुख्य सलाहकार, राजकीय प्राथमिक शिक्षक संघ