लिया था संकल्प, मुक्त होती गई जंजीरों में बंधी सामाजिक न्याय की संकल्पना
मणिकांत मयंक फतेहाबाद सामाजिक न्याय की संकल्पना में यह निहित है कि व्यक्ति का किसी भी रू
मणिकांत मयंक, फतेहाबाद : सामाजिक न्याय की संकल्पना में यह निहित है कि व्यक्ति का किसी भी रूप में शोषण न हो। साथ ही, उसके व्यक्तित्व को एक पवित्र सामाजिक न्याय की सिद्धि के लिए माना जाए, साधन-मात्र नहीं। पेशे से एडवोकेट देवीलाल को जिले के विभिन्न क्षेत्रों में सामाजिक न्याय की यह अवधारणा ही जंजीरों में बंधी मिली। कहीं दासता की बेड़ियों में बंधे लोग बेगारी कर रहे थे तो कहीं दलित दबंगों द्वारा उत्पीड़न के शिकार हो रहे थे। महिलाएं दहेज की भेंट चढ़ रही थीं तो पानी की निकासी नहीं कर पाने वालों का सामाजिक बहिष्कार हो रहा था। ये हालात देवीलाल को विचलित कर रहे थे। उन्होंने संकल्प लिया। जंजीरों में जकड़ी सामाजिक न्याय की संकल्पना को बंधन-मुक्त करने का। संकल्प इतना फौलादी था कि टूटता गया .. .. .. बंधन। संवेदनशील संकल्प की बदौलत दबे-कुचले, दलित, महिलाएं, मजदूर-शोषण मुक्त हो रहे हैं। लंबे समय तक जंजीरों में बंधे रहने के बाद आजाद हुए रत्ताथेह के मजदूर बचन सिंह बताते हैं कि उनके लिए तो देवता बनकर ही आए एडवोकेट देवीलाल। शोषण से मुक्ति दिलाकर उन्होंने जो उपकार किया उसे वह कैसे भुला सकते। दरअसल, देवीलाल पिछले चालीस सालों से संकल्प के बल आधारभूत Þसामान्य हित' से सामाजिक न्याय का सपना साकार कर रहे हैं। बंधुआ मजदूरों, प्लॉटों पर कब्जा से पीड़ित मजलूमों, दहेज के दैत्यों से छुटकारा पाने को छटपटाती महिलाओं के लिए संघर्ष करना मानो अब उनकी दिनचर्या में शामिल हो। सौ से अधिक मामलों को उन्होंने सुखद अंजाम तक पहुंचाया है। हालांकि शुरुआती चरण में उनके लिए भी यह सब आसान नहीं था। उन्हें भी तमाम प्रतिरोधों का सामना करना पड़ा। एडवोकेट देवीलाल बताते हैं कि उन्हें एकबार ग्रामीणों का हमला भी झेलना पड़ा। पर, झुके नहीं। संकल्प डिगा नहीं। सुखद परिणाम से साक्षात होता गया।
केस वन :::
और खुल गई जंजीर
वर्ष 1993-94 की बात है। रतिया खंड का गांव लांबा। यहां एक दबंग जमीदार एक मजदूर से जंजीर डालकर काम करवाता था। इस आशंका से कि कहीं भाग न जाए। यह जानकारी एडवोकेट देवीलाल को मिली। उन्होंने न केवल तत्कालीन एसडीएम से वारंट जारी करवाया बल्कि उन्हें साथ ही घटनास्थल भी ले गए। वहां देखा तो धान के खेत में रत्ताथेह का मजदूर बचन सिंह जंजीर से बंधा था। वह छह माह से इसी दशा में था। उन्हें मुक्त करवाया।
केस दो :
जब खत्म हो गया सामाजिक बहिष्कार
वर्ष 1998 की घटना है। गांव छतरियां ढाणी। यहां के कुछ नायक परिवार के लोग। इन लोगों पर गांव के ही दबंगों का यह आरोप था कि ये लोग बरसाती पानी की निकासी नहीं कर पाते। दबंगों ने इनका सामाजिक बहिष्कार का ऐलान कर दिया। एडवोकेट देवीलाल ने इस अन्यायपूर्ण सामाजिक बहिष्कार के खिलाफ मुहिम छेड़ दी। उन्होंने इसे आंदोलन का रूप दे दिया। आंदोलन उपरांत बात बनी। सामाजिक बहकष्कार खत्म करवाकर उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ा।
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मजलूमों को मिली जिदगी की जमीन
वर्ष 1999-2000 की घटना। गांव हमजापुर में दबंग जमीदारों ने मजदूरों के 53 प्लॉटों पर कब्जा कर रखा था। उन दिनों अशोक अरोड़ा जिला कष्ट निवारण समिति के चेयरमैन थे। उनके सामने बात रखी। देवीलाल ने जमीन की निशानदेही करवाई। इस दौरान हमला भी हुआ। लेकिन मजलूमों को उनकी जमीन मिल गई। उन्होंने एससी-एसटी एक्ट भी लगवाया।
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वर्जन::::::::::
छात्र-जीवन से ही पृथ्वी सिंह गोरखपुरिया से प्रभावित रहे। आपातकाल के बाद 1980 से सक्रिय हो गया। खूब लड़े लोगों के लिए। 59 साल की उम्र आने तक तो सौ से अधिक लोगों को सामाजिक न्याय से जोड़ दिया। - एडवोकेट देवीलाल।