पानी के नाम पर बेच रहे बीमारी, अधिकारी मौन
जागरण संवाददाता फतेहाबाद शहर हो या फिर गांव हर घर में पानी का कैंपर पहुंच रह
जागरण संवाददाता, फतेहाबाद :
शहर हो या फिर गांव हर घर में पानी का कैंपर पहुंच रहा है। कैंपर के अंदर जो पानी है वो पीने लायक है या नहीं यह बात किसी को नहीं पता। शहर में करीब 30 वाटर प्लांट चल रहे हैं। अधिकांश ने भी रजिस्ट्रेशन नहीं करवाया है। इन संचालकों ने अपने यहां ट्यूबवेल लगा रखा है। जनस्वास्थ्य विभाग की तरफ से इन प्लांटों के पास कनेक्शन भी नहीं है। ऐसे में टयूबवेल से सीधा पानी इन कैंपरों में भरा जा रहा है। इन कैंपरों में यह पानी कितना शुद्ध है इसकी जानकारी किसी के पास नहीं है। हर प्लांट के अंदर एक पानी टेस्टिग के लिए लैब होनी चाहिए। लेकिन लैब तो दूर की बात इस पानी में क्लोरीन तक की मात्रा नहीं होती।
शहर में करीब 35 वाटर प्लांट चल रहे हैं। ये कहां चल रहे है प्रशासन के पास इसकी जानकारी नहीं है। वैसे जनस्वास्थ्य विभाग के पास इसका रिकॉर्ड होना चाहिए। लेकिन उनके पास ऐसा नहीं है। वहीं स्वास्थ्य विभाग की तरफ से भी कोई रजिस्ट्रेशन तक नहीं लिया गया है। ऐसे में शहर में जो प्लांट चल रहे है वो अवैध है। इस पानी की क्वालिटी के बारे में किसी को नहीं पता है।
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सुविधा के नाम पर पी रहे जहर :
अब शहर में हर दुकान व घर में आरओ का नाम लिखकर पानी सप्लाई किया जा रहा है। अगर इन आरओ का पानी इतना ही शुद्ध होता तो इन संचालकों ने आज तक इसका रजिस्ट्रेशन तक क्यों नहीं करवाया है। अगर रजिस्ट्रेशन करवाते है तो पहले जनस्वास्थ्य विभाग से पानी शुद्ध है या नहीं इसका प्रमाण भी लेना होगा। प्रणाम तभी मिलेगा जब वे शुद्ध पानी सप्लाई करते होंगे। वहीं कुछ लोगों ने अपने स्तर पर पानी की जांच करवाई तो उसके अंदर क्लोरीन तक की मात्रा कम मिली है। वैसे ट्यूबवेल के अंदर क्लोरीन की मात्रा नहीं होती बल्कि बाद में जनस्वास्थ्य विभाग में पानी में डाल रहा है।
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वाटर प्लांट के लिए ये होने चाहिए नियम
- वाटर प्लांट लगाने के लिए रजिस्ट्रेशन करवाना जरूरी है।
- प्लांट कहां लगा रहे है इसके लिए नगरपरिषद के अधिकारियों से अनुमति लेनी जरूरी है।
- प्लांट के अंदर लैब होनी चाहिए।
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गर्मी शुरू होते ही रेट भी बढ़ाए :
कैंपरों से जो पानी मिल रहा है वो शुद्ध भी नहीं है और लोगों को रुपये भी अधिक देने पड़े रहे है। सर्दी के मौसम में प्रत्येक कैंपर के लिए 350 रुपये देने पड़ते थे। लेकिन अब इन कैंपरों का रेट 400 से 500 कर दिया है। लेकिन फिर भी लोगों को क्लोरीन युक्त पानी नहीं मिल रहा है। अगर अच्छी लैब से इस पानी का टेस्ट करवाए जाए तो इसके अंदर टीडीएस की मात्रा भी अधिक होती है।
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ये होने चाहिए मानक
- पानी में टीडीएस 1500 होना चाहिए।
- 1 लाख लीटर पानी में 250 ग्राम क्लोरीन होना चाहिए।
- अगर पानी पड़ा है तो उसके अंदर 2 पीटीएम क्लोरीन होनी चाहिए।
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शहरवासी ने करवाया टेस्ट तो आया सामने :
धर्मशाला रोड स्थित दुकानदार राधेश्याम ने जब कैंपर के पानी की जांच करवाई रिपोर्ट चौकाने वाली थी। पानी में टीडीएस 22 सौ के करीब थी। वहीं इस पानी में क्लोरीन तक की मात्रा नहीं मिली। टीडीएस व क्लोरीन न होने के कारण पत्थरी की बीमारी होने का मुख्य कारण है। अगर जल्द ही प्रशासन ने इन वाटर प्लांट सेंटरों पर कार्रवाई नहीं की तो जल्द ही यह पानी लोगों को बीमार कर देगा। विदित रहे के पेयजल पानी की जांच जन स्वास्थ्य विभाग की लैब से होती है। जिसके लिए निर्धारित फीस भी तय है।
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पानी की जांच न होने पर भी उठे सवाल
हर दिन शहर में कैंपरों से पानी सप्लाई हो रहा है। ऐसा भी नहीं कि अधिकारियों के संज्ञान में नहीं है। अधिकतर कार्यालय में भी पानी के कैंपर जा रहे है। लेकिन इसकी जांच करने की जहमत कोई नहीं उठा रहा है। जनस्वास्थ्य विभाग व स्वास्थ्य विभाग अलग अलग अपनी राय दे रहे है। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी अपने सत्र पर पानी के सैंपल ले सकते है। लेकिन वो शिकायत का इंतजार कर रहे है। जब उनके पास शिकायत आएगी तो वो सैंपल ले लेंगे। वहीं जनस्वास्थ्य विभाग भी रजिस्ट्रेशन के लिए कोई पहल कर रहा है। इसका खामियाजा आम जनता को ही भुगतना पड़ेगा।
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हमारे पास इस तरह से कोई रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ है। अगर कोई रजिस्ट्रेशन करवाने के लिए आएगा तो जनस्वास्थ्य विभाग से रिपोर्ट होनी चाहिए। जनस्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट के आधार पर ही इन वाटर प्लांटों का रजिस्ट्रेशन किया जाता है।
-सुरेंद्र पूनिया
फूड एवं सेफ्टी अधिकारी फतेहाबाद।
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