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आत्मशुद्धि का पर्व है पर्युषण महापर्व

संवाद सहयोगी टोहाना जैन धर्म अहिसा व त्याग प्रधान धर्म है। इस धर्म के अनुयायी पर्वो को भी जप

By JagranEdited By: Published: Wed, 24 Aug 2022 11:01 PM (IST)Updated: Wed, 24 Aug 2022 11:01 PM (IST)
आत्मशुद्धि का पर्व है पर्युषण महापर्व
आत्मशुद्धि का पर्व है पर्युषण महापर्व

संवाद सहयोगी, टोहाना :

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जैन धर्म अहिसा व त्याग प्रधान धर्म है। इस धर्म के अनुयायी पर्वो को भी जप, तप, त्याग एवं साधना के द्वारा मनाते हैं। जैन धर्म का सबसे बड़ा पर्व होता है पर्युषण महापर्व। इस वर्ष यह पर्युषण पर्व 24 अगस्त से शुरु हो चुके है, जोकि 1 सितंबर तक जारी रहेंगे। इस पर्व को लेकर जैन समाज के लोग इंतजार कर रहे थे। यहीं कारण है कि इस पर्व को लेकर शहरों में सभी मीट मार्केट आदि को भी बंद कर दिया था। जिससे श्रद्धालुओं को राहत मिलेगी। यह पर्व 1 सितंबर तक चलेगा। दूसरों पर हमला करने को आक्रमण कहते हैं और जैन धर्म आक्रमणी नीति को वर्जित करता है। जैन धर्म का विचार है कि व्यक्ति द्वारा अपनी आत्मा की बुराइयों को दूर करने के लिए प्रतिक्रमण किया जाता है, इससे व्यक्ति की आत्मा निर्मल बनती है। जबकि पर्युषण पर्व के दौरान प्रतिक्रमण का बहुत महत्व है। पर्युषण पर्व को मानव विकास का पर्व भी कहा जाता है। इसका दूसरा नाम संवतसर भी है, क्योंकि इस दिन से नवयुग का प्रारंभ हुआ था और मनुष्य का अध्यात्म

विकास इसी दिन से प्रारंभ हुआ था। इसलिए जैन समाज के लोग आठ दिन तक तपस्या व साधना द्वारा अपना आध्यात्मिक विकास करते हैं।

- ऊषा जैन, अध्यक्षा, तेरापंथ महिला मंडल। जैन धर्म अहिसा प्रधान धर्म है। इसमें छोटे से छोटे जीव की हत्या को वर्जित किया गया है। पर्युषण पर्व के दिनों में जैन धर्म के अनुयायी अनावश्यक हिसा से तो

बचते ही हैं तथा अनिवार्य व आवश्यक हिसा से भी परहेज करते हैं। जबकि पर्युषण पर्व को आत्म लोचन व आत्मशुद्धि का पर्व भी कहा जाता है।

- रीतू जैन, अध्यक्षा, अणुव्रत समिति, टोहाना। आठ दिनों तक चलने वाले इस पर्व में व्यक्ति आत्मा की शुद्धि के लिए जहां जप, तप, स्वाध्याय, उपवास व साधना करता है, वहीं सालभर की गई पाप वृत्तियों की

आलोचना व प्रायश्चित कर आत्मा को निर्मल बनाता है। वहीं विश्व के सभी जीवों से बैर भाव भुलाकर अपनी गलतियों के लिए क्षमा याचना करता है और यही इस

पर्व की विशेषता है।

- सुशील जैन, उकलाना वाले। भगवान महावीर स्वामी ने कहा है कि अभयदान और क्षमादान मानवता के वास्तविक आभूषण है। अभयदान का अर्थ है कि हमारा व्यवहार व आचरण ऐसा हो कि

हम किसी जीव को न मारे और न सताएं। आत्मरक्षा के अतिरिक्त किसी भी प्राणी को किसी भी प्रकार की हानि न पहुंचाएं और व्यक्ति से बदला लेने की भावना ना

अपनाकर उसे क्षमादान देना चाहिये। कई लोग कहते हैं कि क्षमा एक कायरता वाला कार्य है, लेकिन भगवान महावीर के अनुसार क्षमा करना व क्षमा मांगना वीरों का

आभूषण है।

- अजय जैन, चेयरमैन, एमयूएच जैन ग्लोबल स्कूल।


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