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उदासीनता : मन रे गा .. सौ दिन मिले सभी मजलूमों को रोजगार

जागरण संवाददाता फतेहाबाद महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन। ग्रामीण रोजगार

By JagranEdited By: Published: Sat, 31 Aug 2019 11:36 PM (IST)Updated: Sun, 01 Sep 2019 06:40 AM (IST)
उदासीनता : मन रे गा .. सौ दिन मिले सभी मजलूमों को रोजगार
उदासीनता : मन रे गा .. सौ दिन मिले सभी मजलूमों को रोजगार

जागरण संवाददाता, फतेहाबाद :

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महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन। ग्रामीण रोजगार का यह मिशन जब-तब चर्चाओं में रहा है। यहां हालात ऐसे हैं कि सौ दिनों के रोजगार की गारंटी से केंद्र सरकार की यह योजना सभी मजलूम परिवारों की पहुंच से आज भी दूर है। लिहाजा, सौ दिन मिले सभी पंजीकृत मजलूम परिवारों को रोजगार-यही राग गरीब घरों से सुनाई दे रहे हैं।

जिले में 55 हजार 66 परिवारों ने मनरेगा जॉब कार्ड बने हुए हैं। इनमें से प्रत्येक वर्ष 10 फीसद परिवारों को 100 दिन का रोजगार नहीं मिलता। हालांकि मनरेगा में प्रावधान है कि मांगने के बाद 15 दिनों के अंदर जॉब कार्ड धारक को रोजगार मिले। लेकिन यह तय नहीं है कि वह रोजगार के लिए कहां आवेदन करें। बहरहाल, गत वर्ष सिर्फ 1237 परिवारों को 100 दिन रोजगार मिल पाया। वैसे ग्रामीण अकुशल कामगारों को रोजगार देने के लिए मनरेगा योजना शुरू की गई थी। इसके तहत कभी भी सौ फीसद परिवारों को 100 दिन का रोजगार नहीं दिया गया।

गत वर्ष खर्च हुए थे 64 करोड़ रुपये

वर्ष 2018-19 में 35 हजार 848 परिवार को मनरेगा के तहत 14 लाख 19 हजार 240 दिन काम दिया गया। इसके लिए 64 करोड़ रुपये खर्च हुए। जिसमें से 1237 परिवार को ही 100 दिन का रोजगार मिला। इस वर्ष अब तक 15 करोड़ रुपये खर्च करके 15 हजार 298 परिवारों को 1 लाख 62 हजार 226 दिन का काम दिया गया है।

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पंचायत दे सकती है सभी परिवार को 100 दिन रोजगार :

मनरेगा के तहत मजदूरों का जॉब कार्ड बनाने व उनको सौ फीसद रोजगार देने की पावर ग्राम पंचायत को है। जिन गांव के सरपंच जागरूक हैं, उन गांवों के मजदूरों को बहुत अधिक कार्य मिलता है। इसकी वजह है कि सरपंच ग्राम सभा से प्रस्ताव पास करवाकर मनरेगा के लिए काम मांगते हैं। पंचायत के काम मांगने पर बीडीपीओ व ब्लाक समिति को उसे पास करना होता है। उसके बाद जिला परिषद या एडीसी उसे मंजूरी देते हैं। कई गांव के सरपंच अक्सर मनरेगा से कार्य की मांग करते रहते हैं।

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अधिकांश गांवों में सिर्फ तालाब की खोदाई तक सीमित :

जिन गांवों में मनरेगा मजदूरों को रोजगार कम मिलता है। इसकी वजह है कि उन गांव में सरपंच व पंचायत के सदस्य मनरेगा के तहत तालाब की खोदाई तक का कार्य करवाते हैं। कई गांव में गांव के सरपंच रास्ता बनवाने, नाले व माइनर की सफाई करवाने के साथ रोड के साथ खड़े झाड़ीनुमा पौधों की सफाई का काम करवाते हैं। इससे गांव में कार्य अधिक होते है तो मनरेगा मजदूरों को रोजगार भी अधिक मिलता है।

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फसली सीजन में काम देने से आती है परेशानी :

मनरेगा के तहत अकुशल मजदूरों को रोजगार को आफ सीजन में देना होता है, लेकिन पंचायती राज विभाग के अधिकारी मनरेगा के तहत कार्य फसली सीजन में करवाते है। इससे किसान व मजदूरों दोनों को परेशानी आती है। अब कपास शुरू होने वाला है। इधर मनरेगा मजदूरों को भी काम कपास के सीजन में मिलेगा। सर्दी व गर्मी के मौसम में जब मजदूरों के पास काम नहीं होता है तो उस दौरान मनरेगा के तहत भी काम दिया जाना चाहिए। मनरेगा मजदूर भी यही मांग करते है, लेकिन अधिकारी व सरकार इसको लेकर गंभीर नहीं है।

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