हेपेटाइटिस सी बीमारी से मुक्त हो रहा फतेहाबाद, अब केवल 150 ही ले रहे इलाज
फतेहाबाद जिले में हेपेटाइटिस-सी बीमारी का प्रकोप कम हो रहा है। पिछले चार साल में 5285 मरीज ठीक हो चुके हैं।
वर्ल्ड हेपेटाइटिस डे पर विशेष
- जिले में हेपेटाइटिस-सी बीमारी का प्रकोप, चार साल में 5285 मरीज हुए ठीक
-हेपेटाइटिस-बी का भी इलाज हुआ शुरू
-सबसे अधिक रतिया क्षेत्र के लोग इस बीमारी से ग्रस्त
-जिलें में फरवरी 2017 से शुरू हुआ था हेपेटाइटिस-सी बीमारी का उपचार
जागरण संवाददाता, फतेहाबाद: चार साल पहले जिले में हेपेटाइटिस सी का प्रकोप इस कदर था कि लोगों को इलाज नहीं मिल रहा था। इस बीमारी का इलाज महंगा होने के कारण प्राइवेट अस्पतालों में इलाज लेना भी मुश्किल था। ऐसे में मरीजों को रोहतक में जाकर इलाज लेना पड़ रहा था। लेकिन अब तो जिला इस बीमारी से मुक्त भी होने वाला है। अब केवल 150 लोग ही इलाज ले रहे हैं। अगर ऐसा ही चलता रहा तो आने वाले समय में इस बीमारी से लोग मुक्त हो जाएंगे।
हेपेटाइटिस-सी ने जिले के लोगों को बहुत परेशान किया है। लेकिन अब अधिकतर लोगों को केवल तीन महीने के अंदर ही इस बीमारी से मुक्ति मिल रही है। दस साल पहले रतिया व उसके आसपास के क्षेत्र में काला-पीलिया के आशंकित मरीज सामने आने लगे थे। तत्कालीन सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने रतिया दौरे के दौरान स्वास्थ्य विभाग को सर्वे के आदेश जारी किए थे। इस दौरान पूरे प्रदेश में सर्वे शुरू हुआ था। रतिया में सर्वे के दौरान 1500 मरीज सामने आए और बढ़ते चले गए। इस दौरान रोहतक पीजीआइ में उपचार शुरू हुआ था। यहां पर कुछ श्रेणी के लोगों के लिए ही उपचार निश्शुल्क था। अन्य मरीजों का उपचार लाखों रुपये में था। फतेहाबाद में मुख्यमंत्री और जब स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज आए थे तो रतिया के लोगों ने मांग उठाई, जिसके बाद जिला अस्पताल में मरीज का उपचार शुरू किया है। फतेहाबाद में पहले मरीज का रजिस्ट्रेशन 18 फरवरी 2017 को हुआ है। जिसके बाद लगातार मरीज आते गए और उनका उपचार होता गया। कूपन सिस्टम के अनुसार ही सभी का इलाज किया जा रहा है। अब तक नागरिक अस्पताल में हेपेटाइटिस बी का इलाज भी शुरू हो गया है। ऐसे में इलाज इलाज पर अब लोगों को एक रुपये भी खर्च नहीं करना पड़ रहा है।
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रतिया क्षेत्र में सबसे अधिक मरीज
हेपेटाइटिस-सी के मरीजों की बात करें तो सबसे अधिक मरीज रतिया से आए हैं। वर्ष 2010 में यहां पर सर्वे हुआ था। जिसके बाद सबसे अधिक मरीज यहां पर मिले थे। पहले रोहतक में इलाज होता था, लेकिन अब इनका इलाज फतेहाबाद के नागरिक अस्पताल में किया जा रहा है। यह बीमारी फैलने का मुख्य कारण भूमिगत पानी अच्छा न होना है। यहां के लोग नलकूप का पानी अधिक पीते हैं। ऐसे में ये लोग हेपेटाइटिस-सी की बीमारी की चपेट में आ रहे थे। रतिया, हमजापुर, बुर्ज, बीराबदी, टोहाना, कुलां, अकांवाली, झलनियां, एमपी सोतर, टिब्बी, अयाल्की, नहेड़ी, समैन, चिम्मो, इंदाछुई, बिलासपुर, हिजरावां खुर्द, अहरवां, घासवां, नागपुर, बहबलपुर, नथवान, रत्ताखेड़ा, भिरड़ाना, धीड़, हसंगा, जमालपुर, जल्लोपुर, कमाना से मरीज मिले।
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5285 मरीज हुए रजिस्टर्ड, 3900 हुए ठीक
सिविल अस्पताल में मरीजों का उपचार हेपेटाइटिस सी स्पेशलिस्ट एवं फिजीशियन डा. मनीष टूटेजा की देखरेख में चल रहा है। अब तक 5284 मरीज रजिस्टर्ड हो चुके हैं। जिसमें 3900 मरीजों का उपचार पूरा हो चुका है। 150 मरीजों का उपचार चल रहा है। इसके अलावा कोरोना संकट के बावजूद कुछ दिनों के उपचार रुका था। लेकिन अब रूटीन में मरीजों का उपचार किया जा रहा है।
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हेपेटाइटिस सी मरीजों को सात साल बाद नजर आते हैं लक्षण
डाक्टरों के अनुसार हेपेटाइटिस सी वायरस खतरनाक है। अगर कोई इस बीमारी से पीड़ित हो जाता है तो लक्षण पांच से लेकर सात सालों के बाद नजर आते हैं। सर्वे के दौरान पाया गया था कि आरएमपी डाक्टरों ने इलाके में कई लोगों को एक ही सीरिज से टीके लगाए, जिससे हेपेटाइटिस सी वायरस (एससीवी) एक से दूसरे में चला गया। इस वायरस ने महामारी जैसा रूप ले लिया। सर्वे के दौरान करीब 5213 सैंपल लिए गए थे, इनमें 1465 सैंपलों में हेपेटाइटिस सी वायरस पाजिटिव मिला। इनमें तकरीबन 65 फीसदी पुरुष थे। यह सर्वे 2010 में किए गए थे।
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हेपेटाइटिस-सी बीमारी के लक्षण
-हल्की चोट के बाद भी खून निकल आना।
- आसानी से खरोंच या चोट लग जाना।
- ज्यादा थकान होना।
- भूख न लगना।
- त्वचा व आंखों का पीला होना।
- यूरिन डार्क होना।
- खुजली होना।
-पैरों में सूजन बने रहना।
- अचानक वजन कम होना शुरू होना।
-चक्कर आना व बोलने में परेशानी होना।
-मांसपेशियों में दर्द बने रहना ।
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आंकड़ों पर एक नजर
जिले में हेपेटाइटिस-सी के मरीज रजिस्टर्ड : 5285
इलाज पूरा ले चुके : 3900
मौजूदा समय में चल रहा इलाज : 150
जिले में इलाज शुरू हुआ : फरवरी 2017
हेपेटाइटिस-बी के मरीज रजिस्टर्ड : 141
इलाज चल रहा : 21
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ऐसे मिलता है इलाज
- जिन मरीजों का लीवर डैमेज हो जाता है, उन मरीजों का छह महीने दवाई दी जाती है।
- जिन मरीजों का उपचार पूरा हो गया है, उन्हें हेपेटाइटिस-सी का कार्ड टेस्ट दोबारा करवाने की जरूरत नहीं है
- कार्ड टेस्ट 15 साल तक पाजिटिव रह सकता है।
-अधिकतर मरीजों को तीन महीनों तक इलाज किया जाता है।
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जिले में अब केवल 150 लोग ही रह गए हैं, जिनका उपचार चल रहा है। जिले में अब तक 5285 लोग ने रजिस्ट्रेशन करवाया है। इसके अलावा अब तक 3900 लोग अपना इलाज पूरा कर चुके हैं। जो मरीज रह गए हैं, उन्हें किसी प्रकार के इलाज की जरूरत नहीं है। जिले में अब दवाइयां भी आ रही हैं। ऐसे में मरीजों को कोई दिक्कत भी नहीं आ रही है।
- डा. मनीष टूटेजा, नोडल अधिकारी व फीजिशियन, सिविल अस्पताल फतेहाबाद।