भुखमरी की कगार पर सीएससी संचालक, 33 माह से नहीं मिला मानदेय
भुखमरी की कगार पर सीएससी संचालक 33 माह से नहीं मिला मानदेय
भुखमरी की कगार पर सीएससी संचालक, 33 माह से नहीं मिला मानदेय
कोरोना काल में गेहूं खरीद कार्य में निभाई ड्यूटी, आजतक नहीं मिला वेतन
संवाद सूत्र, कुलां :
पंचायत स्तर पर कॉमन सर्विस सेंटर (सीएससी) का संचालन करने वाले ग्राम स्तरीय उद्यमी (वीएलई) प्रशासनिक उदासीनता से आक्रोशित है। लंबे समय से अपने कार्य के बदले मानदेय के लिए भटक रहे हैं। वीएलई को विगत पौने तीन वर्षों से मानदेय जारी नहीं किया गया है। वीएलई को मानदेय के रूप में प्रतिमाह 6000 रुपये देना निर्धारण किया गया है। एक और यहां सीएससी संचालक इस कम मानदेय से असंतुष्ट है, वहीं पिछले 33 महीनों से ये मानदेय भी न मिलने से उन्हें अपने परिवार के लिए रोजी- रोटी का जुगाड़ करना चुनौती बना हुआ है। प्रशासनिक जिला स्तर पर कोई सुनवाई न होने पर उन्हें खुद की मेहनत के भुगतान का कोई अन्य विकल्प नजर नहीं आ रहा है। वीएलई उच्च स्तर पर अपनी आवाज बुलंद करने से डरते हैं। यदि कोई संचालक मानदेय की मांग उठाता है तो जिला प्रबंधक उसका सीएससी केंद्र छुड़वाने की धमकी देते है।
पंचायत स्तर की योजनाओं को क्रियांवित करने के लिए राज्य सरकार वर्ष 2016 में कॉमन सर्विस सेंटर अस्तित्व में लेकर आई थी। इन केंद्रों के संचालन के लिए ग्राम स्तर उद्यमी नियुक्त किए गए थे, जो पंचायत के कार्यों को ऑनलाइन आदि का काम कर रहे हैं। इन ग्राम स्तर के उद्यमियों यानि वीएलई के प्रति सरकार की उपेक्षा से पिछले 33 महीनों से मानदेय न मिलने से वीएलई भुखमरी के कगार पर पहुंच गए हैं।
क्षेत्र के ग्राम स्तरीय उद्यमियों ने बताया कि उन्हें प्रतिमाह 6 हजार रुपये मानदेय दिया जाता है, लेकिन जनवरी 2018 के बाद से उनका ये मानदेय अभी तक लंबित पड़ा है। मानदेय के भुगतान के लिए वे जिला स्तर के सभी अधिकारियों के समक्ष अपनी व्यथा बयान कर चुके हैं, लेकिन उनकी कोई सुनवाई नहीं हुई है। करीब दो वर्षों से ग्राम सचिवालय मानदेय, जाति के लिए किया गया सर्वे, कई माह से गेहूं खरीद कार्य, मेरी फसल मेरा ब्यौरा, फैमिली आईडी जैसी योजनाओं में किए गए कार्यों के लिए भुगतान नहीं हो पा रहा है। गेहूं सीजन का भी नहीं मिला वेतन
ग्राम स्तरीय उद्यमियों का कहना है कि कोरोना संकट की घड़ी में उन्होंने स्वयं की जान जोखिम में डालकर उन्हें सौंपी गई जिम्मेदारी का बखूबी निर्वहन किया है। विदित हो कि कोरोना संक्रमण से बचाव को लेकर गेहूं सीजन के दौरान गेहूं खरीद के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में सभी राइस मिलों को खरीद केंद्र बनाया गया था। जिसमें प्रशासन द्वारा सीएससी संचालकों की ड्यूटी लगाई गई थी। सीएससी संचालकों ने बताया कि उस दौरान उन्होंने अपनी जान जोखिम में डालकर लगातार करीब दो माह तक सुबह से शाम तक ड्यूटी देते हुए गेहूं खरीद कार्य में सहयोग किया था। इस कार्य के लिए सरकार ने सीएससी संचालकों को डीसी रेट का वेतन देने का प्रावधान रखा था, जबकि उन्हें ये वेतन भी आजतक उपलब्ध नहीं हुआ है। एक दूसरे पर ठीकरा फोड़ रहे अधिकारी
इस संदर्भ में जिला स्तर के जिम्मेदार अधिकारियों से बात की गई तो वे इसका ठीकरा एक दूसरे पर फोड़ते नजर आए। जिला विकास एवं पंचायत अधिकारी बलजीत चहल ने इसका जिम्मेदार जिला सूचना अधिकारी को बताया। जिला सूचना अधिकारी सिकंदर सिंह ने ये मामला सीएससी के जिला प्रबंधक के अंतर्गत होने का हवाला दिया। इसके बाद जब सीएससी के जिला प्रबंधक विकास वर्मा को फोन किया तो उन्होंने फोन नहीं उठाया।