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चुनावी रण से लेकर पार्टी संगठन में अजेय रहे कृष्णपाल गुर्जर

फरीदाबाद लोकसभा क्षेत्र से दूसरी बार भाजपा प्रत्याशी बने कृष्णपाल गुर्जर विपरीत परिस्थितियों में भाजपा को जीत दिला चुके हैं। 1991 में भाजपा में आए गुर्जर चुनावी रण से लेकर पार्टी संगठन में अजेय रहे हैं।

By JagranEdited By: Published: Sat, 06 Apr 2019 08:15 PM (IST)Updated: Mon, 08 Apr 2019 06:26 AM (IST)
चुनावी रण से लेकर पार्टी संगठन 
में अजेय रहे कृष्णपाल गुर्जर
चुनावी रण से लेकर पार्टी संगठन में अजेय रहे कृष्णपाल गुर्जर

बिजेंद्र बंसल, फरीदाबाद : फरीदाबाद लोकसभा क्षेत्र से दूसरी बार भाजपा प्रत्याशी बने कृष्णपाल गुर्जर विपरीत परिस्थितियों में भाजपा को जीत दिला चुके हैं। 1991 में भाजपा में आए गुर्जर चुनावी रण से लेकर पार्टी संगठन में अजेय रहे हैं। उन्होंने समय रहते न सिर्फ विपक्ष बल्कि अपनी पार्टी में भी विरोधियों को ठिकाने लगाने में कोई चूक नहीं की।

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गुर्जर वर्ष 2000 और 2009 में तो विपरीत परिस्थितियों में भी चुनाव जीतकर राज्य की विधानसभा में पहुंचे थे। वर्ष 2000 में बेशक भाजपा ने ओमप्रकाश चौटाला के नेतृत्व वाली इंडियन नेशनल लोकदल के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ा था, मगर तब पार्टी राज्य में सिर्फ 6 ही सीट जीत पाई थी। तब गुर्जर ने लगातार दूसरी बार जीत दर्ज की थी। गुर्जर ने इस दौरान सत्तारूढ़ इनेलो के चौटाला के खिलाफ भी मोर्चा खोले रखा। यही वही दौर था जब नरेंद्र मोदी प्रदेश भाजपा के प्रभारी थे और खुद मोदी भी चौटाला को पसंद नहीं करते थे। इसके बाद 2009 में जब राज्य में भाजपा सिर्फ चार ही सीट जीती थी तब भी गुर्जर नए परिसीमन के बाद बनी तिगांव सीट से जीते थे। इस जीत ने गुर्जर का प्रदेश भाजपा में भी बड़ा कद बना दिया था। पार्टी ने गुर्जर को प्रदेशाध्यक्ष पद की जिम्मेदारी दी थी। 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद गुर्जर मोदी सरकार में शामिल होने वाले राज्य से अकेले कॉडर आधारित नेता थे। जबकि मोदी सरकार में गुरुग्राम से जीते राव इंद्रजीत सिंह और राज्यसभा सदस्य बिरेंद्र सिंह भी मंत्री बने थे। ये दोनों नेता कांग्रेस छोडकर भाजपा में शामिल हुए थे। फरीदाबाद में अपने समकक्ष किसी नेता को नहीं पनपने दिया

गुर्जर के समकक्ष खड़ा नहीं हो पाया पार्टी का कोई नेता कृष्णपाल गुर्जर जब से भाजपा में आए हैं तब से अब तक उनके सामने फरीदाबाद व पलवल क्षेत्र में कोई नेता उनके समकक्ष खड़ा नहीं हो पाया। उद्योग मंत्री विपुल गोयल भी बेशक उनसे पूरे तीन साल अलग रहे मगर पार्टी में उनका कद कम नहीं कर पाए। गुर्जर के सामने तीन बार सांसद रहे रामचंद्र बैंदा भी पार्टी में उनका वर्चस्व नहीं तोड़ पाए। गुर्जर ने अपनी रणनीति से 1996 में पुराने जनसंघी नेता रतन लाल गर्ग को पीछे छोड़कर मेवलामहाराजपुर सीट से चुनाव लड़ा। इसके बाद बेशक बल्लभगढ़ से आनंद शर्मा, एनआइटी से चंदर भाटिया भाजपा के विधायक बने मगर वे भी गुर्जर के सामने खड़े नहीं हो पाए। इतना ही समय-समय पर पार्टी के अंदर हुए अपने विरोध को भी गुर्जर ने आगे नहीं बढ़ने दिया।


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