सर्द हवा, गुलाबी ठंड और बारिश भी नहीं रोक पाई कदम
बृहस्पतिवार का दिन। सूरजकुंड हस्तशिल्प मेला के बाकी दिनों से आज अलग ही माहौल है। एक फरवरी से शुरू हुए मेले के पहले छह दिनों में जहां मौसम साफ था और सभी ने खूब आनंद उठाया गया,
सुशील भाटिया, फरीदाबाद : बृहस्पतिवार का दिन। सूरजकुंड हस्तशिल्प मेला के बाकी दिनों से आज अलग ही माहौल है। एक फरवरी से शुरू हुए मेले के पहले छह दिनों में जहां मौसम साफ था और सभी ने खूब आनंद उठाया गया, वहीं सातवें दिन की शुरुआत सर्द हवाओं से हुई। सुबह बूंदाबांदी जरूर हुई थी, जिससे मौसम में ठंडक बढ़ गई थी। इसी गुलाबी ठंड वाले मौसम में मेला देखने की चाह लिए सुबह 10.30 बजे फरीदाबाद-सूरजकुंड रोड पर शहरवासियों के कदम मेला स्थल की ओर बढ़ते दिखाई दिए।
हम भी मेला प्रांगण में पहुंच चुके हैं। गुलाबी ठंड सा अहसास है, माहौल खुशनुमा हो चुका है। फरवरी की 14 तारीख को वैलेंटाइन डे, जिसकी सप्ताह भर की खुमारी शुरू हो चुकी है, इसलिए इस खुशनुमा माहौल में युवा जोड़ों की तादात कार्यदिवस होने के बावजूद ज्यादा दिखाई दे रही है। मेला चौपाल पर पंजाबी गीतों व नृत्य की प्रस्तुति इन युवाओं के झूमने पर विवश कर रही है।
इधर जो लोग मेले में कुछ खास खरीदारी के मकसद से आए हैं, उनके कदम अपनी पसंद के अनुसार स्टालों की तरफ बढ़ रहे हैं। महिलाएं अपनी आदत के अनुसार कपड़ों की खरीदारी पर मोलभाव कर रही हैं, पर बनारसी सिल्क के सूट व साड़ियां बेचने वाले स्टाल संचालक दाम एक ही होने की बात कहते हैं। चूंकि यह मेला है बाजार नहीं और यहां खास माल बिकने आया है, इसलिए ज्यादा मोलभाव की कोई गुंजाइश न देख दिल्ली से आई सरोजा दो सूट पैक करने के लिए कह देती हैं।
सपेरों की टोली के साथ नाचे युवा
दोपहर का डेढ़ बज चुका है, इधर हवाएं भी चलनी लगी हैं, इन हवाओं ने मौसम को खोल दिया है। अब भीड़ और बढ़ चुकी है। क्योंकि कई युवा कॉलेजों से बंक मार कर मेले में आ चुके हैं। युवाओं को तो चाहिए बस मस्ती भरे पल। इनमें ग्रामीण अंचल से आई दो लड़कियां भी हैं, जो बेहद अल्हड़ व मस्त अंदाज में नाच रही हैं। उनकके इन अल्हड़ अंदाज को दैनिक जागरण का लैंस मैन अपने कैमरे में कैद करना चाहता है, पर लैंस मेन को देख कर लड़की को लज्जा आ गई और उसने नाचना बंद कर दिया। खैर हमने भी मूड देखते हुए तस्वीर नहीं उतारी।
अब सताने लगी भूख
मेला घूमते-घूमते किसी को तीन घंटे हो चुके हैं, तो कोई सीधा अभी आया है। घड़ी की सुईयों पर नजर डाली, तो दो बज चुके थे। मेला घूमने आए दर्शकों को भूख सताने लगी है, तो उनके कदम फूड कोर्ट की ओर बढ़ते चले गए। फूड कोर्ट में परंपरागत खाना भी है, तो फॉस्ट फूड, थीम स्टेट महाराष्ट्र का वड़ा पाव, भेल-पूरी, राजस्थान का दाल-बाटी, चूरमा भी है। दर्शक अपनी रुचि व जेब की क्षमता अनुसार पेट की भूख शांत करने लग जाते हैं।
फिर हल्की बारिश में सब दौड़ लिए
तीसरे पहर में अचानक आसमान में काली घटाएं छाने लगती हैं। नजर आसमान की ओर डाली ही थी कि बारिश शुरू हो गई। बारिश से बचने के लिए कई लोग छतरियां साथ लाएं, पर जिनके पास नहीं हैं, वो विशालकाय पश्चिमी बंगाल के विष्णुपुर गेट की शरण में, महाराष्ट्र व हरियाणा के अपना घर की ओर दौड़ कर भीगने से बचाव करने लग जाते हैं। हस्तशिल्पी भी अपने बेशकीमती माल को बचाने लग जाते हैं। बारिश कुछ हल्की हुई, तो हम भी कार्यालय की ओर चल दिए दिन भर देखे हाल को शब्दों में संजोने के लिए। हम 15 साल से यहां आ रहे हैं। यहां जो मिलता है, वो यहीं मिलता है। इसलिए यह मेला कुछ खास है। सुबह मौसम गड़बड़ था, पर हमें तो आना ही था। इसलिए चले आए।
-अंजू गुप्ता मैंने कुछ सालों तक मुंबई में जॉब भी की है। कई बार अपनी छुट्टियां इस हिसाब से लेती थी कि जब मेला हो, तब ही आऊं। मेला मुझे यहां खींच लाती है।
-सौम्या