हस्तशिल्प का सपना बुनते हैं शंकर बनकर
परंपरागत दस्तकारी व शिल्प की धरोहर को सहेजने के लिए 33वें सूरजकुंड अंतरराष्ट्रीय हस्तशिल्प मेले का आगाज हो चुका है। मेले का थीम स्टेट महाराष्ट्र है, यहां के बहुत से लघु उद्यमियों ने अपनी टीम के साथ स्टॉल लगा रखे हैं। विशेषकर सिल्क और कॉटन के कपड़ों में हैंडलूम की उम्दा कारीगरी दर्शकों को बरबस अपनी ओर आकर्षित करती है। रंग-बिरंगी साड़ियों, चमकदार कुर्ते, कुर्तियां, नेहरु जैकेट, चद्दरे और दीवारों को सजाने के वॉलहैंग की एक से बढ़कर एक वैरायटी मेले में उपलब्ध है।
जागरण संवाददाता, फरीदाबाद : परंपरागत दस्तकारी व शिल्प की धरोहर को सहेजने के लिए 33वें सूरजकुंड अंतरराष्ट्रीय हस्तशिल्प मेले का आगाज हो चुका है। मेले का थीम स्टेट महाराष्ट्र है, यहां के बहुत से लघु उद्यमियों ने अपनी टीम के साथ स्टॉल लगा रखे हैं। विशेषकर सिल्क और कॉटन के कपड़ों में हैंडलूम की उम्दा कारीगरी दर्शकों को बरबस अपनी ओर आकर्षित करती है। रंग-बिरंगी साड़ियों, चमकदार कुर्ते, कुर्तियां, नेहरू जैकेट, चद्दरें और दीवारों को सजाने के वॉलहैंग की एक से बढ़कर एक वैरायटी मेले में उपलब्ध है।
मेले में ऐसा ही एक स्टॉल नंबर है 182-183, जहां इन्द्रायणी हैंडलूम कॉरपोरेशन लिमिटेड की ओर से दुकान सजी है। महाराष्ट्र के नागपुर निवासी शंकर बनकर इसके कर्ता-धर्ता हैं। वह और उनकी पूरी टीम मेले में आकर बेहद उत्साहित है। शंकर बनकर ने बताया कि महाराष्ट्र की रेशम की टेंपल बार्डर, करवती काठी साड़ियों की देशी-विदेशी लोगों के बीच एक समान डिमांड रही है। आज मेले का पहला दिन होने की वजह से स्टॉल पर अभी आने वालों की संख्या कम है। मगर उनको पूरा भरोसा है कि आने वाले वीकेंड में उनके कारोबार में इजाफा होगा। उन्होंने प्रदेश सरकार और हरियाणा पर्यटन निगम की व्यवस्थाओं और इंतजामों की खुलेमन से सराहना भी की। करवती काठी साड़ी में क्या है खास
हस्तशिल्पी शंकर बनकर बताते हैं कि करवती काठी साड़ी का निर्माण प्योर रेशम के धागों से होता है, जो सरकारी संस्थाएं किसानों के जरिये इनको मुहैया कराती हैं। एक साड़ी को बनाने में करीब एक सप्ताह का वक्त लगता है, जिसकी कुल लागत 1300-1500 के बीच पड़ती है। यह साड़ियां बेहतरीन कारीगरी का उत्कृष्ट नमूना हैं। बेहद हल्की और आरामदायक इन साड़ियों के खरीदार हर मेले में इनको तलाश ही लेते हैं। बुनकरों का साथ दे सरकार
इन्द्रायणी हैंडलूम में काम करने वाले बुनकर गजानन राव का कहना है कि देश की सभी सरकारों को बुनकरों की आगे बढ़कर मदद करनी चाहिए। बढ़ती महंगाई को देखते हुए हमें बहुत कम भुगतान मिलता हैं। जीवीकोपार्जन में भी खासी मुश्किलें पेश आती हैं।