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रामकथा से मोरारी बापू कर रहे राष्ट्र के प्राण धर्म की रक्षा: राज्यपाल

फरीदाबाद में प्रसिद्ध संत मोरारी बापू के मुखारबिंद से रामकथा का आयोजन किया जा रहा है। बुधवार को प्रदेश के राज्यपाल प्रो.कप्तान सिंह सोलंकी ने मुख्य अतिथि के तौर पर शिरकत की।

By JagranEdited By: Published: Wed, 30 May 2018 07:40 PM (IST)Updated: Wed, 30 May 2018 07:40 PM (IST)
रामकथा से मोरारी बापू कर रहे राष्ट्र के प्राण धर्म की रक्षा: राज्यपाल
रामकथा से मोरारी बापू कर रहे राष्ट्र के प्राण धर्म की रक्षा: राज्यपाल

जागरण संवाददाता, फरीदाबाद : सेक्टर-12 में सुप्रसिद्ध संत मोरारी बापू की 9 दिवसीय रामकथा के मौके पर राज्यपाल प्रोफेसर कप्तान ¨सह सोलंकी ने कहा कि धर्म किसी भी राष्ट्र के प्राण होते हैं। महान संत मोरारी बापू रामकथा के माध्यम से हमारे राष्ट्र के धर्म की रक्षा कर रहे हैं। इस मौके पर उन्होंने राज्य का प्रथम नागरिक होने के नाते मोरारी बापू का अभिनंदन किया।

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प्रोफेसर कप्तान ¨सह ने कहा कि दुनिया भर में भारत अपने मूल्यों के लिए पहचाना जाता है। भारतीय मूल्यों का कथा के रूप में महान संत मोरारी बापू प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। महाकवि संत तुलसीदास जी ने रामचरितमानस लिखी और फिर उसे कथा के रूप में और प्रवचनों के माध्यम से जन-जन तक पहुंचाया, उन्हीं का अनुसरण कर मोरारी बापू मानव के मन-मस्तिष्क पर उतारने का काम कर रहे हैं। मानव रचना शैक्षणिक संस्थान के शिक्षा व धर्म से जुड़े कार्यों की सराहना करते हुए राज्यपाल ने कहा कि वास्तव में और अपने नाम के अनुरूप यह संस्थान मनुष्य निर्माण का काम कर रहा है। मानव की सोच, आचरण बनाने से ही मानवता के गुण आते हैं। कथा परिसर में मानव रचना संस्थान के अध्यक्ष डॉ.प्रशांत भल्ला ने शहर के उद्यमियों के साथ राज्यपाल का स्वागत किया। सतयुग लाना है तो तथाकथित बंधनों से बाहर आए मानव : मोरारी बापू

संत मोरारी बापू ने श्रीराम कथा के पांचवें दिन उपस्थित श्रद्धालुओं के साथ युग धर्म की चर्चा करते हुए आह्वान किया कि यदि फिर से सतयुग देखना है तो जाति, वर्ण, भाषा, क्षेत्र के तथाकथित बंधनों से बाहर निकल जाएं। उन्होंने पनघट का उदाहरण देते हुए कहा कि सतयुग का लक्षण पनघट की तरह होना चाहिए। पनघट जिसमें पानी होता है और प्यासा उसमें से पानी पीने आता है। मगर जब प्यासा पनघट से पानी पीने आए तो उसमें प्रतिबंध न हो। बापू ने रामायण को भी पनघट का ही रूप बताते हुए कहा कि रामायण में भी धर्म, मर्यादा की सीख है। त्रेतायुग को बापू ने घूंघट की संज्ञा देते हुए कहा कि इसमें भी घूंघट मर्यादा का ही पर्याय है।


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