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ध्यानचंद अवार्ड के लिए आखिर कब तक जद्दोजहद करेंगे नेत्रपाल

फरीदाबाद भारतीय सेना में बतौर सैनिक भारत-पाकिस्तान युद्ध में दुश्मन के दांत खट्टे करने वाले और कुश्ती में भारत केसरी बने फरीदाबाद वासी पहलवान नेत्रपाल पिछले 10 वर्षों से अधिक समय से केंद्र सरकार द्वारा कुश्ती के क्षेत्र में दिए जाने वाले सर्वोच्च पुरस्कार ध्यानचंद अवार्ड पाने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं।

By JagranEdited By: Published: Mon, 03 Aug 2020 07:15 PM (IST)Updated: Mon, 03 Aug 2020 07:15 PM (IST)
ध्यानचंद अवार्ड के लिए आखिर कब तक जद्दोजहद करेंगे नेत्रपाल
ध्यानचंद अवार्ड के लिए आखिर कब तक जद्दोजहद करेंगे नेत्रपाल

ओमप्रकाश पांचाल, फरीदाबाद

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भारतीय सेना में बतौर सैनिक भारत-पाकिस्तान युद्ध में दुश्मन के दांत खट्टे करने वाले और कुश्ती में भारत केसरी बने फरीदाबाद वासी पहलवान नेत्रपाल पिछले 10 वर्षों से अधिक समय से केंद्र सरकार द्वारा कुश्ती के क्षेत्र में दिए जाने वाले सर्वोच्च पुरस्कार ध्यानचंद अवार्ड पाने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। उनका कहना है कि भारत सरकार उन्हें नजरअंदाज कर रही है, जबकि वे इस अवार्ड के पूरी तरह से हकदार हैं। इसी मांग को लेकर वे सोमवार को पृथला विधायक नयनपाल रावत से उनके सेक्टर-15 ए स्थित कार्यालय पर मिले। विधायक ने उन्हें भरोसा दिलाया कि वे उनकी इस न्यायोचित मांग से केंद्रीय खेल मंत्रालय को शीघ्र अवगत कराएंगे और उन्हें उम्मीद है कि उनकी उल्लेखनीय उपलब्धियों को ध्यान में रखते हुए यह अवार्ड उन्हें अवश्य दिया जाएगा।

बता दें कि ओल्ड फरीदाबाद की शास्त्री कालोनी निवासी बुजुर्ग पहलवान नेत्रपाल थलसेना में कैप्टन के पद से 31 मई, 1992 को सेवानिवृत्त हुए थे। उन्होंने सेना में रहते हुए देश-विदेश में कुश्ती के अनेक धुरंधरों को जोरदार टक्कर देकर अपनी अलग पहचान बनाई। नेत्रपाल पहलवान 1973 में भारत केसरी बने। इससे पहले वे कुश्ती में 1968, 1969, 1970, 1974 और 1975-76 में भी नेशनल चैंपियन रहे। उन्होंने 1970 में बैंकाक में एशियन खेलों में कांस्य पदक जीतकर देश का नाम रोशन किया था। 1974 में न्यूजीलैंड में ब्रिटिश कामनवेल्थ गेम्स में रजत पदक जीतकर राष्ट्र का गौरव बढ़ाया था। साथ ही अपनी प्रतिभा का लोहा भी मनवाया था। वर्ष 1972 में पंजाब के अमृतसर में रुस्तम-ए-हिद बने।

समाजसेवी टोनी पहलवान का कहना है कि इतना सबकुछ होने के बाद भी भारत सरकार वयोवृद्ध पहलवान नेत्रपाल की अनदेखी कर रही है। वे पिछले 10 वर्षों से ध्यानचंद अवार्ड के लिए खेल मंत्रालय के चक्कर लगा रहे हैं, लेकिन हर बार उनकी अनदेखी की जा रही है। स्थानीय नेताओं ने भी उनकी ओर ध्यान नहीं दिया है। उनका आरोप है कि उनसे जूनियर खिलाड़ियों तक को यह अवार्ड दे दिया गया है, जबकि नेत्रपाल जैसे जाने-माने पहलवान को वंचित किया जा रहा है।


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