शौर्यगाथा: अटाली गांव के संदीप सिंह अटाली ने दी शहादत, पाया शौर्य चक्र
बलिदानी के पिता नयनपाल कालीरमन बताते हैं कि संदीप सिंह 10 पैरा कमांडो नायक थे। वे अपने साथियों के साथ पुलवामा में 12 फरवरी-2019 को आतंकवादियों के सर्च अभियान में शामिल थे। संदीप की टुकड़ी की एक खंडहर में छुपे पांच आतंकवादियों से मुठभेड़ हो गई।
बल्लभगढ़ [फरीदाबाद], सुभाष डागर। गांव अटाली के बलिदानी संदीप सिंह की वीरता के किस्से सुनने पर हर कोई गर्व की अनुभूति करता है। मातृभूमि की रक्षा की खातिर शहादत देने वाले संदीप के बारे में बात करने पर वीरांगना गीता देवी की आंखें नम हो जाती हैं, लेकिन गर्व का भी अहसास करती हैं कि उनके पति ने अपना फर्ज निभाया। वीरांगना अपने दोनों बेटे रक्षित और रसित की अच्छी तरह से देख-रेख कर रही हैं और उन्हें सेना के लिए तैयार कर रही हैं।
परिचय
बलिदानी संदीप सिंह का जन्म गांव अटाली के निवासी किसान परिवार नयनपाल कालीरमन के घर 12 फरवरी-1983 को हुआ। वे 12वीं की परीक्षा पास करके 2005 में सेना में भर्ती हो गए। उनकी शादी गांव दयालपुर की गीता देवी से हुई। उनके तीन बच्चे बेटी लावण्या, जुड़वा बेटा रक्षित और रसित हैं। संदीप ने 33 वर्ष की आयु में 2019 में पुलवामा आतकंवादी सर्च अभियान के दौरान गोली लगने से शहादत दी। राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने संदीप सिंह को मरणोपरांत शौर्य चक्र से सम्मानित किया था।
शौर्य गाथा
बलिदानी के पिता नयनपाल कालीरमन बताते हैं कि संदीप सिंह 10 पैरा कमांडो नायक थे। वे अपने साथियों के साथ पुलवामा में 12 फरवरी-2019 को आतंकवादियों के सर्च अभियान में शामिल थे। संदीप की टुकड़ी की एक खंडहर में छुपे पांच आतंकवादियों से मुठभेड़ हो गई। उन्होंने तीन आतंकवादियों को मार गिराया। वे खंडहर में आतंकवादियों को ढूंढ रहे थे, इस दौरान आतकंवादियों की दो गोली उन्हें लगी। गोली लगने से वे घायल हो गए। जब सेना के वाहन से साथी सैनिक उन्हें अस्पताल लेकर जा रहे थे, तो रास्ते में स्थानीय लोगों ने पथराव कर दिया। इससे वे लोगों के बीच में फंस गए।
इस दौरान उनका काफी खून बह चुका था। सेना के विमान से पुलवामा से श्रीनगर लाकर बेस अस्पताल में उन्हें भर्ती कराया गया। अस्पताल में उन्होंने 19 फरवरी-2019 को अंतिम सांस ली। 20 फरवरी को गांव के राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में संदीप सिंह का राजकीय और सैनिक सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया। इस दौरान चारों तरफ संदीप सिंह अमर रहे, जब तक सूरज-चांद रहेगा जैसे नारे गूंज रहे थे। तब के दृश्य को याद करके अभी भी सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है।
संदीप सिंह के नाम पर गांव के स्टेडियम का नाम रखा गया है। सरकार की घोषणा के अनुसार गीता और बेटा सोनू को सरकारी नौकरी मिल चुकी हैं। मुझे आज भी अपने बेटे की बहादुरी पर गर्व है।
केसर देवी, मां