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Ayodhya Ram Mandir: '1990 में चली गोली मेरे एक कान के पास से गुजर गई' कार सेवक योगेश पाहवा ने किया खुलासा

Ayodhya Ram Mandir Bhumi Pujan योगेश पाहवा (लघु उद्यमी) कहते हैं कि हम सौभाग्यशाली हैं कि हम कार सेवा को भी गए और हमारे जीते जी मंदिर बनने जा रहा है।

By JP YadavEdited By: Published: Fri, 31 Jul 2020 05:59 PM (IST)Updated: Sat, 01 Aug 2020 06:11 PM (IST)
Ayodhya Ram Mandir: '1990 में चली गोली मेरे एक कान के पास से गुजर गई' कार सेवक योगेश पाहवा ने किया खुलासा
Ayodhya Ram Mandir: '1990 में चली गोली मेरे एक कान के पास से गुजर गई' कार सेवक योगेश पाहवा ने किया खुलासा

फरीदाबाद [सुशील भाटिया]। 'यह 26 अक्टूबर-1990 की बात है। पिता गोवर्धन लाल ने मुझे कुछ रुपये दिए कि एनआइटी में पांच नंबर ई ब्लॉक में केएल महता दयानंद स्कूल के पास कार सेवकों का जत्था जा रहा है, वहां आरएसएस के प्रचारक विजय जिंदल होंगे, उन्हें यह सहयोग राशि दे आओ। मैं उनके पास पहुंचा और जब उनको रुपये देने के लिए हाथ आगे बढ़ाए, तो वह कुछ नाराज हुए और कहा कि यह रुपये अपने पिता को वापस दे दो और कहो कि बेटा भेजना है तो ठीक, वरना घर बैठो। प्रभु राम की इच्छा मानते हुए पिता ने मुझे भेज दिया कारसेवा के साथ।' कुछ इस तरह से उन रोमांचक पलों को बयां करना शुरू किया पहली कार सेवा के लिए गए जत्थे में शामिल तब के 17 वर्षीय नवयुवक योगेश पाहवा ने।

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दो रातें पैदल चलते हुए पहुंचे थे सरयू नदी के तट पर

योगेश के अनुसार, एनआइटी के जत्थे में हमारे साथ ओम प्रकाश कालड़ा, ठाकुर दास नरूला, पंडित प्रकाश लाल शर्मा और लाला ऋषि राम कालड़ा थे। दिल्ली से गोरखपुर जाने वाली ट्रेन में बैठने के बाद हमें मनकापुर में उतरने की हिदायत दी गई थी। जब गाड़ी बरेली पहुंची, तो पुलिस ने कई कार सेवकों की पहचान कर उन्हें उतार लिया गया, इनमें ओमप्रकाश कालड़ा  और लाला ऋषि कालड़ा भी थे। हम उनकी नजरों में आने से बच गए। हम आगे गोंडा जिले में उतरे और वहां आरएसएस के स्वयंसेवक हमें राम-जानकी धर्मशाला में ले गए। दो राते पैदल-पैदल गांवों के रास्ते चलते हुए 29 अक्टूबर की रात को सरयू नदी के तट पर पहुंचे। वहां आइटीबीपी के जवान थे, उनको फायरिंग के आदेश मिले, पर उन्होंने मना कर दिया। इस पर दूसरी पुलिस से फायरिंग कराई। एक गोली हमारे साथ रहे एक साधु की गर्दन से आरपार हो गई। दूसरी गोली मेरे कान के पास से निकल गई। मेरा तो कान जैसे सुन्न हो गया। हमारे बुजुर्ग ठाकुर दास नरूला इस पर मुझे सरयू के पुल के नीचे ले गए, वहां हमने पुल की ओट ले ली। नाव जब्त कर ली गई थी और आगे पुलिस की घेरा बंदी थी इसलिए अयोध्या नहीं पहुंच सके। हमारे को गुस्सा तो बहुत चढ़ा हुआ था कि नजदीक होकर भी मंजिल तक नहीं पहुंच सके, शायद प्रभु राम की यही इच्छा थी। हम दो दिन 30 व 31 को वहीं रुके। बाद में इस पर सूचना मिली कि झंडा फहरा दिया गया है, तो हमें कुछ तसल्ली हुई।

योगेश पाहवा (लघु उद्यमी) कहते हैं कि हम सौभाग्यशाली हैं कि हम कार सेवा को भी गए और हमारे जीते जी मंदिर बनने जा रहा है। पांच अगस्त को दीपक भी जलाएंगे। यार-दोस्तों और रिश्तेदारों को भी संदेश भेजा है कि दीपक जरूर जलाने हैं।

 गोवर्धन पाहवा (सैनिक कॉलोनी) बताते हैं कि हम 1946 से है संघ में हैं। हमें पिता स्व.मुकुंद लाल से देश सेवा के संस्कार मिले। वर्ष 1987 में पत्नी का निधन हो गया, बच्चे छोटे थे, इसलिए मैं चाह कर भी कार सेवा के लिए नहीं जा सका। इस पर बेटे को भेजा। यह बेहद खुशी की और आनंदित होने वाली बात है कि श्रीराम मंदिर बनने की शुरुआत हो रही है।

अब आंखों के सामने मंदिर बनने से बढ़ कर खुशी कोई और नहीं

 पं.प्रकाश लाल शर्मा (चेयरमैन, शिव शंकर सेवा दल) का कहना है कि मुझे तब के भाजपा विधायक कुंदन लाल भाटिया का संदेश मिला कि कार सेवा के लिए अयोध्या जाना है। मैं सहर्ष तैयार हो गया। इस पर हमारे बड़े भाई साहब गणेश दास ने मना कर दिया कि जान को खतरा है नहीं जाना। तब माता जी स्व.राजवंती ने कहा कि धर्म के काम के लिए जा रहे हैं, मत रोको। प्रभु राम सब भली करेंगे।

इस दौरान रास्ते में कई कार सेवक उतार दिए गए। पैदल-पैदल दो रात चलते रहे। जय श्रीराम के घोष के बीच लाठीचार्ज भी हुआ। फायरिंग भी, जब झंडा फहरा दिए जाने की सूचना मिली, तो हमें आत्मिक सुख मिला। अब मंदिर बनने जा रहा है, यह हमारे जीवन की सबसे बड़ी खुशी है।


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