रूठे को कैसे मनाऊ, मेरो समधी ना माने..
रूठे को कैसे मनाऊ मेरो समधी ना माने मिठाई भी लाई मैं कपड़े भी लाई फिर भी ना माने जैसे लोक गीतों पर महिला अपने बुजुर्गों और वरिष्ठों को ढोल बजाकर मनाने के लिए जा रही थी। मकर संक्रांति के मौके पर शहर में कई जगह पर भंडारों का आयोजन किया गया और कई जगह पर लोगों ने गर्म कपड़े बांटे।
जागरण संवाददाता, बल्लभगढ़ : 'रूठे को कैसे मनाऊ, मेरो समधी ना माने, मिठाई भी लाई, मैं कपड़े भी लाई, फिर भी ना माने' जैसे लोक गीतों पर महिला अपने बुजुर्गों और वरिष्ठों को ढोल बजाकर मनाने के लिए जा रही थी। मकर संक्रांति के मौके पर शहर में कई जगह पर भंडारों का आयोजन किया गया और कई जगह पर लोगों ने गर्म कपड़े बांटे।
मकर संक्रांति पर रूठों को मनाने की परंपरा पुरानी है। त्योहार वाले दिन सुबह जल्दी उठकर महिलाएं स्नान करके घरों में पकवान बनाने में जुट गईं। मकर संक्रांति पर हर वर्ष अच्छी ठंड होती है, वो मंगलवार को भी देखने को मिली। सेक्टर-2 में सुमन और सविता लोक गीत 'भजन करे ही रे रामा, जमुना की रेती में', गाती हुई अपनी सहेलियों के साथ सास हरवती को मनाने के लिए पहुंची। उन्होंने कपड़े देकर मनाया। यहां पर केएल शर्मा और उनकी पत्नी ज्ञानवती को समधी सुभाष चंद शर्मा और समधन कमलेश ने मनाया। रघवीर कॉलोनी के आनंद आश्रम के महंत भैया जी महाराज को उनके शिष्यों ने कपड़े, रुपये देकर मनाया। पंजाबी सेवा समिति के प्रधान प्रेम खट्टर, महासचिव ज्योति छाबड़ा, रोशन लाल डुडेजा, विजय आर्य, विजय विरमानी, कालू, बिट्टू गांधी ने जरूरतमंदों और बल्लभगढ़ सरकारी अस्पताल में मकर संक्रांति उपलक्ष्य में कंबल बांटे। गांवों में इस तरह के काफी आयोजन किए गए। मकर संक्रांति पर रूठों को मनाना बहुत अच्छा लगा। ये हमारी परंपराएं अब धीरे-धीरे खत्म होती जा रही हैं। यदि इस तरफ ध्यान नहीं दिया गया, तो एक दिन ये परंपरा पूरी तरह से लुप्त हो जाएंगी।
-सीमा मकर संक्रांति का त्योहार सदियों से मनाया जा रहा है। इस त्योहार का ऐतिहासिक, धार्मिक महत्व है। यही वजह है कि इस दिन बड़ों को उपहार, दान दिए जाते हैं। लोग नदियों में स्नान करते हैं।
-करुणा