दाखिले करवाने और पुस्तकें खरीदने में लुट रही गाढ़ी कमाई
फिर वही दावे और दावों के विपरीत हकीकत। नया सत्र शुरू हो गया ह
सुरेश मेहरा, भिवानी :
फिर वही दावे और दावों के विपरीत हकीकत। नया सत्र शुरू हो गया है और निजी स्कूलों और निजी प्रकाशकों की चांदी का समय आ गया है। शिक्षा विभाग के मात्र दिखावा भर निर्देश और मिलीभगत का यह खेल बिना किसी रोकटोक के चल रहा है। निजी स्कूलों में एनसीईआरटी की पुस्तकें नाम मात्र होती हैं जबकि होना यह चाहिए कि एनसीईआरटी की ही पुस्तकें स्कूलों में लागू की जाएं।
नया सत्र 2019-20 शुरू होने के साथ ही स्कूलों में दाखिलो की होड़ है तो दूसरी और निजी प्रकाशकों की पुस्तकें दुकानदारों के पास धड़ल्ले से बिक रही हैं। हालांकि शिक्षा विभाग ने निर्देश जारी कर रखे हैं कि निजी प्रकाशकों की पुस्तकों पर स्कूलों में बैन रहेगा। लेकिन ऐसा दूर-दूर तक दिखता नहीं है। शिक्षा विभाग के ये हैं निर्देश : पहली से दूसरी तक भाषा और गणित विषय ही लागू हो जबकि ऐसा निजी स्कूलों में नहीं है।
कक्षा तीसरी से पांचवीं तक ईवीएस, भाषा और गणित लागू करने का प्रावधान है।
बाकी कक्षाओं में भी एनसीइआरटी की ही पुस्तकें लगाने के निर्देश हैं। कोई भी प्राइवेट स्कूल परिसर में किताबें, वर्दी, स्टेशनरी नहीं बेच सकते और न ही विशेष दुकान से खरीदने के लिए बाध्य कर सकता। निजी प्रकाशकों की पुस्तक सिलेबस में लगाने वालों पर कार्रवाई के निर्देश। ऐसे स्कूल की मान्यता तक रद करने के निर्देश हैं। दुकानदार पक्का बिल तक देने से बच रहे दुकानदारों से जब पुस्तकों का बिल मांगा जाता है तो वे पक्का बिल तक देने से इनकार कर देते हैं। दूसरी किसी दुकान पर पुस्तक लेना चाहें तो स्कूल की पुस्तकें दूसरी दुकानों पर नहीं मिलती। निजी स्कूलों की स्पेशल दुकानों से समझौता होता है। उनका कमिशन निर्धारित होता है। इसलिए उन निजी प्रकाशकों की पुस्तकें एक आध दुकान को छोड़ दें तो बाकी जगह नहीं मिलती। ऐसी दुकानें हांसी गेट और सराय चौपटा में बताई जाती हैं। इन दुकानदारों से खरीदी गई पुस्तकों का जब मिल मांगा जाता है तो वे बिना दुकान के नाम वाले पैड या साधारण पैड पर बिल बना देते हैं। जब पक्का बिल मांगते हैं तो वे जीएसटी आदि के नाम पर अभिभावकों को डरा देते हैं और कहते हैं कि पक्का बिल लिया तो ज्यादा रुपये देने होंगे। ऐसे में पहले से महंगाई की मार झेल रहे अभिभावक पक्का बिल लेने से पीछे हट जाते हैं।
विजय कुमार, पतराम गेट, किशनलाल, हलवास गेट।
नहीं देते बिल, करोड़ों का टैक्स किया जा रहा चोरी
दुकानदार अभिभावकों को खरीदी गई पुस्तकों का बिल भी नहीं देते। ऐसे में वे न केवल अभिभावकों को लूट रहे हैं, बल्कि सरकार का करोड़ों रुपये का टैक्स भी चोरी कर रहे हैं। यह सब प्रशासन की नाक के नीचे हो रहा है। प्राइवेट स्कूलों में निजी प्रकाशकों की पुस्तकें लागू करने के मामले में अधिकारी खुद अपने ही आदेशों की पालना नहीं करवा पा रहे हैं। ऐसे में मिलीभगत की बू आती है। इस मामले में संगठन सबूत जुटा रहा है। प्राइवेट स्कूल अभिभावकों की जेब पर डाका डाल रहे हैं। अभिभावकों के हित में स्वास्थ्य शिक्षा सहयोग संगठन हाई कोर्ट जाएगा।
बृजपाल परमार, प्रदेश अध्यक्ष
स्वास्थ्य शिक्षा सहयोग संगठन। :::::स्कूलों से यह सूची मांगी गई है कि उनके यहां कौनसी पुस्तकें लागू की गई हैं और उनके प्रकाशक कौन हैं। यह सूची मिलने के बाद स्कूलों की जांच की जाएगी कि कहीं उन्होंने निजी प्रकाशकों की पुस्तकें स्कूलों में लागू तो नहीं कर रखी।
नरेश महता, बीईओ, भिवानी।