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जल संरक्षण : बरसाती पानी बचाइये, खुद के साथ भावी पीढि़यों को भी सुरक्षित कीजिए

महंत अशोक गिरी ने बाबा जहरगिरी मंदिर प्रांगण में 2013 में चार बोरवेल बनवाए। ये बोरवेल मंदिर ही नहीं आस पास की कालोनियों के नागरिकों के लिए भी जीवन उपयोगी साबित हुए।

By JagranEdited By: Published: Sun, 05 Jul 2020 06:17 AM (IST)Updated: Sun, 05 Jul 2020 06:17 AM (IST)
जल संरक्षण : बरसाती पानी बचाइये, खुद के साथ भावी पीढि़यों को भी सुरक्षित कीजिए
जल संरक्षण : बरसाती पानी बचाइये, खुद के साथ भावी पीढि़यों को भी सुरक्षित कीजिए

सुरेश मेहरा, भिवानी

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पानी बिन सब सून और जल ही जीवन है। इसे सही मायने में बाबा जहरगिरी मंदिर के श्रीमहंत डा. अशोक गिरी ने समझा है। बाबा नवंबर 2012 में कर्नाटक के हासन जिला में एक मंदिर में यज्ञ में भाग लेने गए थे। उन्होंने वहां पर बरसाती पानी के संग्रहण के लिए बनाए सिस्टम को देखा तो प्रभावित हुए। भिवानी पहुंचते ही उन्होंने इस पर काम करना शुरू कर दिया।

वर्ष 2013 में उन्होंने दो एकड़ में बने मंदिर प्रांगण में चार बोरवेल बनवाए। ये बोरवेल मंदिर ही नहीं आस पास की कालोनियों के नागरिकों के लिए भी जीवन उपयोगी साबित हुए। बोरवेल से बरसात का पानी जमीन में चला जाता है और इसके चलते जमीन का खारा पानी अब पीने योग्य हो गया है। इन कालोनियों के लिए सहारा बना मंदिर का पानी

बाबा जहरगिरी मंदिर में बने बरसाती पानी के कुंड और यहां लगे बोर का पानी यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिए ही नहीं आस पास की कालोनी हालुवास गेट, नई बस्ती, महताबदास ढाणी, बाबा शंकर गिरी कालोनी, नेताजी सुभाष नगर की करीब 30 हजार की आबादी के लिए जीवन का सहारा बना है। इन बोरवेल की वजह से जमीन का खारा पानी भी अब पीने योग्य हो गया है। मंदिर के महंत डा. अशोक गिरी की इस पहल के बाद यह बदलाव संभव हुआ। मंदिर की छतों और प्रांगण को साफ कर करते हैं बरसाती पानी का संचय

बाबा बताते हैं कि बरसाती सीजन से पहले ही मंदिर की छतों और प्रांगण को साफ सुथरा किया जाता है। बरसात का पूरा पानी मंदिर प्रांगण में बने कुंड में एकत्रित किया जाता है। कुंड भरने के बाद बरसात का पानी चारों बोरवेल से जमीन में छोड़ दिया जाता है। इसका परिणाम यह आया है कि यहां की जमीन का पानी अब पीने योग्य हो गया है। ठोस पहल ही सही मायने में ला सकती है बदलाव

महंत डा. अशोक गिरी कहते हैं कि सरकार प्रशासन सही मायने में ठोस पहल करे तो बहुत कुछ बदलाव संभव है। अब हालात ये हैं कि सरोवर सूख रहे हैं। जोहड़ों पर कब्जे हो रहे हैं। इनको इमानदारी से उठाया गए कदम ही बचा सकते हैं। बाबा जहरगिरी ने 300 वर्ष पहले बनाया था मंदिर

डा. अशोक गिरी बताते हैं कि यह मंदिर करीब 300 वर्ष पुराना है। भिवानी के सेठ खूबाराम सोने के कारोबारी थे। वे अपने कारोबार के सिलसिले में एक बार संगरूर गए थे। उनका बाबा से मिलन हुआ तो वे बाबा जहरगिरी से बहुत प्रभावित हुए और उनको भिवानी ले आए। यहां बाबा ने मंदिर बनाया जो आज गहरी आस्था का केंद्र है। संस्कृति का संवाहक बना है बाबा जहरगिरी मंदिर

बरसात का सीजन है, लोग अपने घरों की छतों को साफ करें और बरसाती पानी का संचय करें। सरकारी इमारतों के पानी को भी संचय किया जा सकता है। आपका यह कदम जलभराव को रोकने में भी अहम होगा। प्रशासन ठोस पहल करे तो सही मायने में बरसाती पानी का संचय हो सकता है। बाबा जहरगिरी मंदिर बरसाती पानी के संचय केंद्र तो है ही इसके अलावा सनातन संस्कृति को बचाने का संवाहक भी बना है।

- महंत डा. अशोक गिरी, सिद्ध पीठ बाबा जहरगिरी आश्रम, भिवानी


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