कलयुग में सतगुरु की खोज दुष्कर पर नामुमकिन नहीं
इंसान का चोला मुश्किल से मिलता है। चौरासी लाख योनियों में भटक कर
जागरण संवाददाता, भिवानी : इंसान का चोला मुश्किल से मिलता है। चौरासी लाख योनियों में भटक कर जब अच्छे कर्म संचित हो जाते है तब यह चोला मिलता है। इस दुर्लभ चोले की कीमत हीरे से भी अनमोल है। इसलिए इसको सत्संग में लगा कर सार्थक करो। सत्संग करना एक पंथ दो काज हैं। सत्संग बुराइयों को तो छुड़ाता है ही इसके साथ साथ ये सत्मार्ग की राह भी खोलता है। यह सत्संग वाणी राधा स्वामी दिनोद के परमसंत हुजुर कंवर साहेब महाराज ने दिनोद गांव में स्थित राधास्वामी आश्रम में साध संगत के समक्ष फरमाई।
हुजूर कंवर साहेब ने फरमाया कि इंसान का चोला प्रारब्ध कर्मों का नतीजा है और कर्म का कर्जा इंसान को चुकाना पड़ता है। लेकिन यदि इंसान संतों की शरणाई लेकर सत्संग कमाता है तो इंसान इन कर्जों के फेर में उलझता नहीं है। संत सतगुरु उनके कर्जो के भार को कम कर देते है। वे सूली की शूल बना कर इंसान को भार मुक्त कर देते हैं। उन्होंने कहा कि संत अपने जीवों को नाम के माध्यम से अमर बूटी प्रदान कर देते है। जो भागी जीव इस बूटी को लेता है उसका जन्म मरण मिट जाता है। उन्होंने राधास्वामी मत को सबसे ऊंचा मत बताते हुए कहा की ये मत मुक्ति से भी बढ़कर भक्ति को तरजीह देता है। ये मत प्रेम करना सिखाता है और प्रेम ही भक्ति का प्रथम स्तंभ है। सत्संग का सार कोई मरजीवा ही जान सकता है। जो सत्संग को समझ गया वो प्रेम करना सीख गया और जिसका प्रेम जागृत हो गया तो वो सेवा करनी भी सीख जाता है।
गुरु महाराज ने कहा कि जिसकी प्रेम प्रीत और प्रतीत बुलंद है उस जीव का कल्याण निश्चित है। उन्होंने कहा की जिसका मन मलिन है उसमे परमात्मा का वास नहीं हो सकता। परमात्मा का दर्शन इतना आसान नहीं है। इसके लिए अपना आपा मारना पड़ता है। उन्होंने कहा की जिस दुर्लभ जीवन को जो तुमने अनेको भटकन के बाद पाया है उसको वृथा मत खोवो। इस जीवन को पूर्ण सतगुरु खोज कर उनकी शरणाई में लगाओ।
कलयुग में सच्चे सतगुरु की खोज सबसे दुष्कर अवश्य है लेकिन नामुमकिन नही है। सूक्ष्म का रास्ता स्थूल से होकर जाता है। देह गुरु को सर्वस्व हार कर ही आप अपने असल लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हो। भक्ति के चारों रूप आप गुरु की सेवा करके पा सकते हो। गुरु की मेहर होती है तभी कर्म भर्म का पर्दा हट पाता है और आंनद स्वरूप का आभास होता है। जिस प्रकार इत्र बेचने वाले को अपने इत्र की खुशबू ग्राहक को सुंघाने के लिए इत्र को बार छिड़कने की जरूरत नही होती अपितु इत्र की महक तो उसके वस्त्रों से, हाथो से स्वत: आती रहती है उसी प्रकार पूर्ण गुरु को कोई चमत्कार दिखाने की आवश्यकता नही होती।
उनके वजूद से तो स्वत: नूर झलकता है। गुरु महाराज ने कहा कि भक्त को सूर की भांति होना चाहिए। सूरा मैदान छोड़ कर भागता नही है बल्कि डटकर मैदान में मरता या मारता है। सन्तों का वचन कभी झूठा नही जाता। जैसे सूर्य के प्रकाश को बादल कम नही कर सकते वैसे ही सन्त के वचन को ह•ारो झूठ भी पलट नही सकते। उन्होंने कहा की गुरुमुखों का संग करो तुम्हे आनंद आएगा। सत्संगी हो तो अच्छे इंसान भी बनो। इंसानियत की खुशबू आपके किरदार से आएगी। घरो में प्यार प्रेम बना कर रखो। मां, बाप, सास ससुर की सेवा करो, छोटो को अच्छी शिक्षा दो। पेड़ से शिक्षा लो। पेड़ पर पत्थर भी मारोगे तो भी वो फल देगा। पानी का, पर्यावरण का संरक्षण करो। भ्रूण हत्या जैसे पाप से बचो। इंसान अच्छे तो सत्संगी अच्छे।