36 का बदला सैकड़ों पाकिस्तानी सैनिकों को मारकर लिया था
बलवान शर्मा, भिवानी : पुलवामा में आतंकी हमले के विरोध में पूरे देश में आक्रोश चरम पर है।
बलवान शर्मा, भिवानी : पुलवामा में आतंकी हमले के विरोध में पूरे देश में आक्रोश चरम पर है। देश के नौजवान ही नहीं, बल्कि सन 1971 की लड़ाई लड़ने वाले 72 साल के पूर्व सैनिक ने एक बार फिर से पाकिस्तान को नाकों तले चने चबाने का ऐलान कर दिया है। 71 के युद्ध में सैकड़ों पाकिस्तानियों को मौत के घाट उतारने वाले इस सैनिक के परिवार से उनको मिलाकर 5 सैनिक देश की सेवा में जुटे हैं। उनका एक पैरा कमांडर बेटा महेन्द्र वर्तमान में पुलवामा में ही तैनात है और आतंकियों को मौत के घाट उतार रहा है। इस पैरा कमांडर की यूनिट ने ही पुलवामा में पत्थरबाजों का इलाज एक माह पूर्व किया था। इस परिवार की देशभक्ति का ऐसा जज्बा शायद ही कहीं देखने को मिले। दैनिक जागरण से विशेष बातचीत में दिनोद निवासी रिटायर्ड हवलदार रामपाल ¨सह ने कहा कि उनकी 72 साल उमर है पर हमारा तजुर्बा ज्यादा है। इसलिए यदि पाकिस्तान के साथ लड़ाई होती है तो हम देश के लिए कुछ करना चाहेंगे।
हमारी कौम का काम यही है कि देश के लिए मरना है और मारना। परिवार से 5 लोग सेना में रहते हुए देश की सेवा कर रहे हैं। छोटे भाई हवलदार जनमेज ¨सह ने भी मेरे साथ सन 1971 की लड़ाई लड़ी थी। उन्होंने कहा कि वे सन 1980 में बतौर सेक्शन कमांडो पुंछ में तैनात थे। तब पाकिस्तानी सैनिकों से उनकी आमने-सामने गाली गलौज होती थी। वे कहते थे कि तुम्हारा आर्डर तो दिल्ली से आएगा, तब तक तो भून देंगे। हमारा आर्डर हमारी जेब में रहता है। सेना को खुली छूट देना सराहनीय कदम
हमारे समय में हमारे हाथ बंधे होते थे, लेकिन आज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सेना को खुली छूट दे दी, यह बड़ी खुशी की बात है। हाथ खोल दिए हैं, यह बहुत ही सराहनीय कदम है। महेन्द्र की यूनिट ने तोड़ी थी पत्थरबाजों की कमर
एक महीने पूर्व कश्मीर में पत्थरबाजों को महेन्द्र की यूनिट 23 पैरा कमांडो ने ही खत्म किया था। पैरा कमांडर महेन्द्र पिछले पौने तीन साल से पुलवामा में तैनात है। तीसरी पीढ़ी भी देश सेवा में तैनात
हवलदार रामपाल ¨सह ने बताया कि उसके तीन बेटे व एक पोता फिलहाल सेना में तैनात हैं। एक बेटा महेन्द्र पुलवामा में, हवलदार प्रवीण राजस्थान में, हवलदार ¨पकू पंजाब में और पोता लांस नायक नीरज गंगानगर में तैनात है। 36 का बदला सैकड़ों मारकर लिया था, 95 हजार पाकिस्तानी सैनिकों को किया था कैद
दिनोद निवासी रिटायर्ड हवलदार रामपाल ¨सह 18 राजपूत यूनिट में तैनात थे। मेरी उमर 22 साल थी। जून सन 1968 में भर्ती हुआ था। सन 1971 की लड़ाई अगरतला से लड़ाई शुरू हुई थी। 4 दिसंबर को हमारी पलटन ने बांग्लादेश के अकोरा शहर पर कब्जा कर लिया था। इसके बाद मेघना नदी(बांग्लादेश) के पास यूनिट पहुंची तो पाकिस्तान की डिवीजन ने घेर लिया और हमारी यूनिट के 36 जवानों को शहीद कर दिया। जैसे ही हमारी यूनिट पर हमला हुआ तो हमने बदला लेते हुए हमारी कैद में फंसे 30 पाकिस्तानी सैनिकों को वहीं पर ही ढेर कर दिया। शहीद होने वालों में एक ऑफिसर व एक जेसीओ शामिल थे। दो ऑफिसर सहित 150 जख्मी हो गए थे। तीसरे दिन हम अपने जवानों को उठा पाए थे। तब हमने अगरतला में 36 शहीदों को एक साथ अंत्येष्टि की थी। हमारी यूनिट ने पाकिस्तान से बदला लिया और सैकड़ों को मार डाला तथा ढाका में 95 हजार पाकिस्तानी सैनिकों को कैद किया। ढाका में रहकर पाकिस्तानी सैनिकों को खदेड़ा था
रिटायर्ड हवलदार रामपाल ¨सह ने बताया कि इसके बाद वे ढाका चले गए। हमारी सेना ढाका में घुस गई थी और ढाका के कारजन हाल में एक महीने तक रहे और इसके बाद एक महीने पाकिस्तानी बैरीकों में रहे।
इस दौरान बांग्लादेशी सैनिकों को संरक्षण दिया और पाकिस्तानी सैनिकों को बांग्लादेश से खदेड़ा। दो महीने बाद वापिस अगरतला आ गए।