ताराचंद महाराज ने सरल सहज स्वभाव से जीव कल्याण का रास्ता सुझाया : कंवर महाराज
जागरण संवाददाता, भिवानी : सतगुरु आपके मस्तिष्क पर विराजता है। जिसकी आप पूजा करते हो वो आ
जागरण संवाददाता, भिवानी : सतगुरु आपके मस्तिष्क पर विराजता है। जिसकी आप पूजा करते हो वो आपकी लाज रखता है। सरस्वती की पूजा आपको ज्ञान देती है। दूसरे देवी देवता आपको सामाजिक पदप्रतिष्ठा, मान, बल,रूप,धन, वैभव आदि सांसारिक वस्तुओं की चाह की पूर्ति करते हैं। लेकिन सतगुरु आपको परमात्मा की भक्ति करवा कर मुक्ति का मार्ग देता है। चौरासी लाख योनियों में भटकाव से मुक्ति सतगुरु ही करवा सकता है। यह सत्संग वचन राधा स्वामी दिनोद के कंवर साहेब महाराज ने दिनोद में 9 अक्टूबर को अपने गुरु व राधास्वामी सत्संग दिनोद के अधिष्ठाता ताराचंद महाराज के 94वें अवतरण दिवस के उपलक्ष्य में होने वाले सत्संग की पूर्व संध्या पर श्रद्धालुओं को फरमाए। हजारों की संख्या में सेवादार कल होने वाले सत्संग के सवा कार्यों को करने के लिए जुटे हुए हैं। कंवर साहेब महाराज ने फरमाया कि ताराचंद महाराज ने सरल सहज स्वभाव से जीव कल्याण का रास्ता सुझाया। संत स्वभाव से ही सरल होते हैं। उनकी भाषा भी सरल होती है। संतों ने तो नाम की कमाई करने के लिए फरमाया है। अब सोचो क्या करते हो। जो नाम की कमाई करेगा, उसमें तो संतोष स्वत: ही आ जाएगा। उन्होंने सेवादारों की प्रशंसा करते हुए कहा कि आप ना गर्मी देखते हो ना सर्दी देखते हो। सेवा भक्ति का ही पर्यायवाची है। उन्होंने फरमाया कि भौतिक वस्तुओं के लिए अपनी मेहनत का द्रव भी बहाते हो, लेकिन काम की वस्तु के लिए थोड़ा सा भी प्रयास नही करते। सेवा प्रेम श्रद्धा और शरणागति जब तक सेवक में नही है, तब तक कोई लाभ नहीं। सत्पुरुष के संग आकर भी यदि कपट रखते हो। झूठ नहीं त्यागते हो तो धिक्कार है। प्रीतम को पाने का रास्ता प्रेम है। पीपा, फरीद, बलख बुखारा, मीरा बाई सबने प्रेम से ही परमात्मा को पाया है। जिनको हमने अपनी आंखों से नही देखा उनके बारे में तो यकीन आना मुश्किल है, लेकिन ताराचंद महाराज को आप सब ने अपनी आंखों से देख रखा है। आप उनके जीवन को ही देख लो। राधास्वामी सत्संग दिनोद का अपार पसार उनके प्रेम और सेवामयी जीवन का ही फल है। उन्होंने कहा कि महापुरुषों के गीत गाने तक ही सीमित मत रहो। उनके बताये रास्ते पर चलना सीखो। तभी उनका इस धरा पर उनका आना सार्थक होगा। ताराचंद महाराज का सम्पूर्ण जीवन त्याग सेवा,प्रेम और भक्ति की अद्वितीय मिसाल है। हम भी उन्हीं की संतान है। सेवक में प्रेम और सेवा दोनों ही होते हैं। हनुमान जी इसकी सबसे बड़ी मिसाल हैं। उन्होंने कहा कि पहले बाहर से लोग ¨हदुस्तान में परमात्मा मिलन के लिए आते थे। समुंदर के जरिये, बर्फीले रास्ते के जरिये। लेकिन आज हम ¨हदुस्तानी ही भटकाव पर हैं। आज हम अपनी संस्कृति को छोड़ कर उस पाश्चात्य संस्कृति की तरफ बढ़ रहे हैं, जो संस्कृति हम से पहले से ही प्रभावित है।