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आत्मा को परमात्मा से मिलाने का योग है राधास्वामी: कंवर हुजूर

राधास्वामी नाम सहज भक्ति का योग है जिसमें राधा नाम आत्मा का है और स्वामी नाम परमात्मा का यानी आत्मा को परमात्मा से मिलाने का योग है राधास्वामी। स्वामी महाराज ने 1861 में इस नाम को प्रकट कर भक्ति में क्रांति का सूत्रपात किया।

By JagranEdited By: Published: Sat, 27 Jun 2020 06:28 AM (IST)Updated: Sat, 27 Jun 2020 06:28 AM (IST)
आत्मा को परमात्मा से मिलाने का योग है राधास्वामी: कंवर हुजूर
आत्मा को परमात्मा से मिलाने का योग है राधास्वामी: कंवर हुजूर

जागरण संवाददाता, भिवानी: राधास्वामी नाम सहज भक्ति का योग है, जिसमें राधा नाम आत्मा का है और स्वामी नाम परमात्मा का यानी आत्मा को परमात्मा से मिलाने का योग है राधास्वामी। स्वामी महाराज ने 1861 में इस नाम को प्रकट कर भक्ति में क्रांति का सूत्रपात किया। सूरत शब्द के सहज योग को 8 साल का बच्चा भी कर सकता है और 60 साल का बूढ़ा भी। यह सत्संग विचार परमसंत सतगुरु कंवर साहेब महाराज ने शुक्रवार को दिनोद गांव में स्थित राधास्वामी आश्रम में प्रकट किये।

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लगातार छठे दिन स्वामी महाराज द्वारा रचित ग्रन्थ सार वचन की वाणी को खोलते हुए हुजूर कंवर साहेब ने कहा कि कर्म अटल है महाबली है। इससे कोई नही बच पाता। कर्म की जगात वही चुका पाएगा जो सतगुरु की शरण ले लेगा। गुरु महाराज ने कहा कि हालांकि भूल भ्रम में फंसे होने के कारण हमें ये बात बड़ी अचरज वाली लगती है कि हमारी तरह दिखने वाला सन्त सतगुरु कैसे हमें जन्म मरण के बंधनों से छुटकारा दिलाएगा। भ्रमों में फंसे लोग आलोचना करते है कि कर्म भरम कुछ नहीं है और वे संतों का विरोध भी करते है। ऐसे लोग भाग्यहीन हैं, जो माया के वश में अपनी बुद्धि को अधीन कर लेते हैं। उन्होंने कहा कि नाम रूपी अमृत तो केवल वो ही चख सकते हैं, जिन पर आदि कर्ता (परमात्मा) की मेहर होती है।

गुरु महाराज ने कहा कि स्वामी महाराज ने बार बार अपनी वाणी में इंसान को चेताया कि सम्पूर्ण जगत काल ने भरमा रखा है। ये भ्रम भी अनेक हैं। ये भी हैरानी की बात है कि इंसान इन भ्रमों से निकलने की बजाए इनमें और ज्यादा उलझता जा रहा है। कारण ये कि कुछ लोग उन साधनों को भक्ति में बरतते हैं, जो बीते युगों की बात हो चुके हैं। भक्ति के वो सब तरीके अब कलयुग में मिथ्या हो गए हैं। कोई पाषाण की पूजा कर रहा है कोई जल की। अधिकांश जीव तो विद्या के ही गुलाम बने बैठे हैं। विद्या तो संतों की बेकद्री मात्र ही करवाती है।

उन्होंने बीते युगों के भक्ति साधनों को जीवन में उतारने वालों को लताड़ लगाते हुए कहा कि सतयुग त्रेता और द्वापर में जब इंसान की आयु बहुत लम्बी होती थी। ये साधन तब काम के थे परन्तु आज कलयुग में जब इंसान की आयु ही सीमित हो गई है तब उन साधनों की क्या प्रासंगिकता है। आज के युग में तो संतों ने जो राह बताई है, वही भक्ति का उत्तम मार्ग है। आज की भक्ति अपनी आत्मा को परमात्मा से मिलाने की है।


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