समस्या : गर्मी सिर पर, 10 करोड़ खर्च करने के बाद भी ग्रामीणों के हलक सूखे
पुरुषोत्तम भोल्याण बहल इसे बिडंबना ही कहा जाए कि सरकारें चांद पर पानी ढूंढ रही हैं और
पुरुषोत्तम भोल्याण बहल
इसे बिडंबना ही कहा जाए कि सरकारें चांद पर पानी ढूंढ रही हैं और यहां उपलब्ध पानी लोगों को मुहैया कराने को आंखे मूंदे बैठी है। बहल के जलघर पर 10 करोड़ रुपये खर्च व लाखों रुपये का महीने का खर्च और नहरों में टेल तक पानी पहुंचाने के दावे के बावजूद कसबा वासियों के हलक सूखे हैं। अब जब एक ओर गर्मी के मौसम ने दस्तक दे दी है और लंबे इंतजार के बाद भी कसबे में जनस्वास्थ्य विभाग की पेयजल की सप्लाई होने का दूर तक कोई वास्ता नजर नहीं आ रहा है। इसके चलते कसबे के लोग निजी तौर मोटी रकम अदायगी करके अपने हलक तर करने को मजबूर है। कसबे में ही नहीं गांवों में भी पेयजल की सप्लाई कमोवेश ऐसी ही बनी हुई है। इसे बिडंबना कहा जाए या दुर्भाग्य की प्रति व्यक्ति 70 से 115 लीटर स्वच्छ पेय जल मुहैया कराने की राग अलापते वर्षों वर्ष बीत गये कितु अब तक यहां जलापूर्ति करवाने में प्रदेश की अतीत व वर्तमान की सत्ता विफल रही है। पेयजल जैसी मूलभूत सुविधा बहल जैसे कसबे में नहीं मिल पा रही। बहल जनस्वास्थ्य विभाग की सब डिविजन है और लाखों रुपये की मेंटिनेंश खर्च व बिजली के बिलों की अदायगी के बावजूद अपने क्षेत्रगत के लोंगों को पेयजल उपलब्ध कराने में पूरी तरह से विफल साबित हुई है। कसबे के लोगों को 70 लीटर से बढ़ाकर 115 लीटर पानी 1997 से फाइलों में मुहैया कराया जा रहा है। 1997 में तत्कालीन जनस्वास्थ्य मंत्री चौ.जगननाथ ने करोड़ों रूपये खर्च के जलसमूह घर का उद्घाटन करते हुए बहल, सुधिवास, पातवान, सुरपुराखुर्द, सुरपुराकलां तथा गरवा के लोगों को 115 लीटर पानी का बंदोबस्त जलघर को सुपुर्द किया था। जलघर को एक दिन भी पानी लोगों को नसीब नहीं हुआ। इसके बाद कसबे की बढ़ती जरूरत व आधुनिक जलापूर्ति व्यवस्था देने के लिए 2008 में तत्कालीन महकमे की मंत्री किरण चौधरी ने 10 करोड़ रूपये की लागत से जलघर बनाने की योजना का विधिवत शिलान्यास किया था। जलघर बनकर तैयार भी हुआ लेकिन जलापूर्ति देने में विभाग ने पुरानी परंपराओं को तोडऩा मुनासिब नहीं समझा और नतीजा वही ढाक के तीन पात। जलघर की आपूर्ति आम उपभोक्ता तक समुचित पहुंचाने को लेकर चारों दिशाओं में बुस्टिग स्टेशन बनाये गये हैं और बुस्टिग स्टेशनों तक जलघर का पानी नहीं पहुंच रहा है। वाबजूद इसके लाखों रूपये की बिजली बिल व लाखों रूपये के मरम्मत खर्च विभाग पर भारी पड़ रहे हैं। तत्कालीन मंत्री किरण चौधरी ने कसबे की जलापूर्ति चुस्त व दुरूस्त करने के अलावा पर्याप्त सप्लाई के लिए करीब 10 करोड़ रूपये की लागत से जलघर बनाया था और 12 वर्ष बीतने को है। जलघर तो बना लेकिन सप्लाई देने में विभाग की नीयत में खोट साबित हो रही है। कसबे के 80 से 85 प्रतिशत लोग नीति जल सप्लाई पर निर्भर हैं तो शेष लोग विभाग की लड़खड़ाई व अपर्याप्त सप्लाई के भरोसे पर टीके हैं। यहां उल्लेखनीय है कि जो 15 से 20 प्रतिशत लोग विभाग की जलापूर्ति का उपभोग कर रहे हैं वो भी जलघर के नहरी पानी की बजाय भूमिगत पानी की होती है। जो विभाग की लैब में पीने के काबिल नहीं माना गया है। पानी में प्रचूर मात्रा में सोडियम क्लोराइड जैसे केमिकल घुले हुए हैं। भूमिगत पानी से फसलें तो उगाई जा सकती पीने के काबिल नहीं है। क्षेत्र के अधिकतर लोग आरओ का पानी पांच सौ रुपये महीना प्रति 14 लीटर का भुगतान करके पी रहे हैं। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि जिस दिन लोगों को जलघर से नहरी पानी की सप्लाई घरों में पहुंचेगी तो अपने आपको खुश नसीब समझेगा। लेकिन विभाग की कार्य प्रणाली व्यवस्थाओं को देखा व समझा जाए तो कल में आज में कोई अंतर नजर आता है और लोगों के लिए जल विभाग की आपूर्ति सपना थी और सपना है।