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दिवाली में एंटीक दीये से घर सजाने की हो रही तैयारी

चरखी दादरी : इस बार दीपावली पर्व पर मिट्टी के दीयों की मांग बढ़ने से त्योह

By JagranEdited By: Published: Mon, 05 Nov 2018 06:58 PM (IST)Updated: Mon, 05 Nov 2018 06:58 PM (IST)
दिवाली में एंटीक दीये से घर सजाने की हो रही तैयारी
दिवाली में एंटीक दीये से घर सजाने की हो रही तैयारी

जागरण संवाददाता, चरखी दादरी : इस बार दीपावली पर्व पर मिट्टी के दीयों की मांग बढ़ने से त्योहार का रंग अलग ही नजर आ रहा है। लगातार हर वर्ष दीवाली पर मिट्टी के दीयों की मांग घटने, फैंसी लाइटों, बिजली की लड़ियों की मांग बढ़ने से मायूसी के दौर से गुजर रहे स्थानीय कुंभकार वर्ग के लोगों के चेहरों पर रौनक दिखाई दे रही है। दीवाली पर दादरी में लगने वाली दीयों सहित अन्य मिट्टी के सामान की स्टालों की संख्या बढ़ी है तथा हाथ से काम करने इस व्यवसाय से पुस्तैनी रूप से जुड़े लोगों के लिए रोजगार के अवसर मिले है। पिछले वर्ष तक दीपावली पर केवल शगून व परंपरा निभाने के लिए आम लोग नाममात्र के मिट्टी के दीये खरीदते थे। वहीं इस वर्ष फैंसी रंगीन लाइटों, लड़ियों के स्थान पर शुद्ध सरसों के तेल से दीयों को जलाने की तैयारियों में लोग जुटे दिखाई दे रहे है। यहां यह भी माना जा रहा है कि पिछले कुछ समय से चीन के साथ चल रही तनातनी, स्वदेशी मुहिम में जुड़ी संस्थाओं, संगठनों की अपील के कारण लोगों का रूझान सस्ती चीनी लाइटों, लड़ियों की बजाय मिट्टी के दीयों की ओर बढ़ा है। इस बात को कुंभकार वर्ग के स्थानीय लोग भी स्वीकार कर रहे है। त्योहार की पवित्रता, पावनता व परंपरा को देखते इस बदलाव को वैसे भी सार्थक माना जा रहा है।

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पहले से बढ़ी है बिक्री : नीरज

दादरी नगर निवासी नीरज शर्मा ने कहा कि इस बार दीपावली के पर्व से पूर्व पिछले वर्षो की अपेक्षा मिट्टी के दीयों की मांग बढ़ी है। बिक्री से दो से तीन गुणा तक बढ़ गई है। पहले जहां लोग केवल पूजन के लिए दो दर्जन तक दीये खरीदते थे अब वे सैकड़ों एक साथ ले रहे है। आया है बदलाव : सुनील

स्थानीय व्यवासायी सुनील गुप्ता ने कहा कि बाजारों में मोमबत्तियों, बिजली की लाइटों, लड़ियों की अपेक्षा इस बार दिवाली से पूर्व मिट्टी के दीयों की बिक्री अधिक हो रही है। इससे काफी लोगों को रोजगार मिला है।

समय में आया बदलाव: रामफल

स्थानीय निवासी संजय रामफल के मुताबिक पहले जहां सड़क पर चलते, दिवाली पर खरीददारी करते लोगों को वे रोक-रोक मिट्टी के दीये खरीदने की याद दिलाते थे। अब स्थिति बदली है। लोग स्वयं दीये खरीदने में रूचि दिखा रहे है। इसका असर निश्चित तौर पर कुंभकार वर्ग पर पड़ा है।


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