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लिपिक से प्राचार्य तक के सफर में दिलाए ऊंचे मुकाम

सुरेश मेहरा भिवानी जब जुनून सवार हो तो मुकाम खुद ब खुद पास चला आता है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 06 Sep 2020 05:28 AM (IST)Updated: Sun, 06 Sep 2020 06:16 AM (IST)
लिपिक से प्राचार्य तक के सफर में दिलाए ऊंचे मुकाम
लिपिक से प्राचार्य तक के सफर में दिलाए ऊंचे मुकाम

सुरेश मेहरा, भिवानी :

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जब जुनून सवार हो तो मुकाम खुद ब खुद पास चला आता है। अभी 31 अगस्त को प्राचार्य से सेवानिवृत्त हुए रमेशचंद्र बूरा इसके उदाहरण कहे जा सकते हैं। वे जिस भी स्कूल में गए उसे शून्य से शिखर तक पहुंचाया। उनका यह सफर 31 मार्च वर्ष 1989 में शिक्षा निदेशालय चंडीगढ़ में लिपिक के रूप में शुरू हुआ था। 30 अक्टूबर 1991 में वे एसएस अध्यापक के रूप में राजकीय उच्च विद्यालय जाटू लुहारी में नियुक्त हुए। सुंदरीकरण में स्कूलों को शानदार बनाने, परिणाम सुधारने के साथ उन्होंने खुद को प्रोमोट करने के लिए भी संघर्ष जारी रखा। नौकरी के दौरान राजनीतिक शास्त्र में एमडीयू में 1995 में गोल्ड मेडलिस्ट रहे। वर्ष 2002 में राजकीय उच्च विद्यालय छपार रांगड़ान में हेडमास्टर बने। वर्ष 2009 में बापोड़ा स्कूल में बतौर प्राचार्य ज्वाइन किया। प्राचार्य बूरा के नाम रहे अनेक अवार्ड

रमेशचंद्र बूरा 16 जून 2012 को शहर के राजकीय कन्या वरिष्ठ माध्यमिक स्कूल में प्राचार्य के रूप में पहुंचे तो स्कूल की हालत ठीक नहीं थी। स्कूल की इमारत से लेकर परिणाम तक सही नहीं था। उनकी मेहनत रंग लाई और स्कूल को जिला स्तर पर मुख्यमंत्री सुंदरीकरण का अवार्ड दिलाया। बेटियों की शिक्षा के लिए इन्होंने विशेष कदम उठाए। स्कूल में बेटियों की सुरक्षा के लिए स्पेशल ड्यूटियां तय की। शिकायत पेटी लगाई। इनकी मेहनत के चलते स्कूली छात्राओं ने हर क्षेत्र में उपलब्धियां हासिल की। मिताथल स्कूल को भी दिलाया अवार्ड

प्राचार्य रमेशचंद्र बूरा ने वर्ष 2017 में राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक स्कूल मिताथल में ज्वाइन किया तो इस स्कूल को भी मुख्यमंत्री सौंदर्यकरण अवार्ड दिलाया। बतौर उनके जब इस स्कूल में ज्वाइन किया तो स्कूल की हालत सही नहीं थी। पहले ही दिन काम शुरू किया। गांव वालों को साथ लिया और 2018-19 में स्कूल को जिला में शून्य से शिखर पर पहुंचा दिया। उनको 26 जनवरी 2019 को यह अवार्ड मिला। अपने वेतन का 10 फीसद हमेशा स्कूल पर खर्च

प्राचार्य रमेशचंद्र बूरा कहते हैं कि अब वह सेवानिवृत्त हो गए हैं। उन्होंने जिस भी स्कूल में काम किया पूरी इमानदारी से किया। उनका जीवन का ध्येय रहा है कि अपने वेतन का कम से कम 10 फीसदी स्कूल और बच्चों पर खर्च किया। ऐसा वह वर्षों से करते आ रहे हैं। सुंदरीकरण और बेहतर परिणाम उनकी प्राथमिकताओं में शामिल रहा। मैं दूसरे शिक्षकों से भी आग्रह करना चाहता हूं कि वे इमानदारी से काम करें। मेहनत करें मुकाम खुद मिलेगा।


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