पानी को तरस रहे हैं लोहारू के किरयाणा तालाब व गोघाट
पिलानी रोड पर नवाब विला के पास प्राचीन स्थापत्य कला का जीवंत नमूना है किरयाणा तालाब। इस पर लगा पत्थर बोल रहा है कि इसका निर्माण विक्रमी संवत 1972 में काजड़ा के सेठ हरनारायण दास ने करवाया था।
एमके शर्मा, लोहारू
जल संचय, जल संरक्षण, वन्य जीव तथा प्रकृति से मित्रता का बेहतरीन सबूत है लोहारू का किरयाणा तालाब व गोघाट। प्रकृति प्रेम के 105 वर्ष पुराने साक्षात गवाह ये सूखे जलाशय वर्तमान पीढ़ी की उदासीनता पर खून के आंसू बहा रहे हैं। वर्तमान व्यवस्थाएं इस तरह के नए जलाशय बनाना तो दूर बल्कि इन्हें इस तपमी गरमी में पानी से भरकर इनका सदुपयोग भी नहीं कर पा रही हैं।
पिलानी रोड पर नवाब विला के पास प्राचीन स्थापत्य कला का जीवंत नमूना है किरयाणा तालाब। इस पर लगा पत्थर बोल रहा है कि इसका निर्माण विक्रमी संवत 1972 में काजड़ा के सेठ हरनारायण दास ने करवाया था। तत्कालीन नवाब अमरूद्दीन बहादुर ने इसके नीचे 1100 बीघा गोचर भूमि प्रकृति व वन्य जीव-जंतुओं के संरक्षण के लिए दी थी।
बुजुर्गों ने बताया कि इस तालाब व गोघाट का निर्माण कुशल वास्तुकला के साथ इस तरीके से कराया गया था कि यह 12 महीने पानी से भरा रहे। इसके चारों ओर जोहड़ों के नाले इस तालाब व गोघाट से जुड़े हुए बताए गए हैं। बारिश के दिनों में इन्हीं नालों के जरिए पानी तालाब में आता था। लेकिन अब इसके चारों ओर के जोहड़ व वृक्ष खत्म कर दिए गए हैं। लोगों ने यहां की मजबूत चिकनी मिट्टी का पूरी तरह से खनन कर डाला है। खनन से बने गड्ढों को नगर के कूड़े-करकट से भर दिया गया। इस वजह से अब तालाब को 12 महीने पानी से भरे रखने के सभी स्रोत बंद हो गए।
इसकी सुध लेते हुए करीब डेढ़ दशक पूर्व लोहारू के तत्कालीन सरपंच अश्विनी नकीपुरिया ने तालाब में हमेशा पानी भरने के लिए नलकूप बनवाया था। लेकिन बताते हैं कि कुछ दिनों बाद ही चोरों ने इस नलकूप की तारें व मोटर आदि चुरा ली थी। बीच-बीच में इस नलकूप को चलाने की कोशिशें भी की गई, लेकिन सिरे नहीं चढ़ी। समाजसेवी रविद्र कास्वां रहीमपुर ने बताया कि सांसद धर्मवीर ने वादा किया था कि वे सांसद निधि से इस नलकूप को पुन: चालू कराएंगे। लेकिन आज तक इस पर कोई कार्य नहीं किया गया।
नौतपा के दौरान 45 डिग्री तापमान में वन्य जीव-जन्तु इस तालाब और गोघाट की ओर अपनी प्यास बुझाने के लिए आते हैं, लेकिन इन्हें सूखा देखकर ये जीव-जन्तु निराश होकर लौट जाते हैं। इन वन्य जीव-जंतुओं, पक्षियों की प्यास बुझाने के लिए आसपास कहीं भी कोई जल स्रोत नहीं है। लोग अक्सर सरकार से मांग करते रहे हैं कि इस तालाब को पांच किमी दूर बहने वाली नहर से जोड़ दिया जाए ताकि यह पानी से 12मासी भरा रहे और किसानों का खत्म होता जा रहे भूमिगत जल का स्तर भी ऊपर उठ सके। लेकिन अभी तक इस तरफ कोई कदम नहीं उठाया गया है। इस बारे में नगरपालिका सचिव तेजपाल सिंह तंवर ने बताया कि किरयाणा तालाब व पुराने शहर के वाल्मीकि बस्ती के तालाब के संरक्षण के लिए सरकार ने एक-एक करोड़ रुपये के एस्टीमेट प्रशासनिक एवं तकनीकी मंजूरी के लिए निदेशालय पंचकूला भेजे हुए हैं। किरयाणा तालाब, गोघाट और इसके नीचे आने वाली 1100 बीघा गोचर भूमि तो लोहारू नगर के लिए सोने पर सुहागा है। नगरपालिका व सरकार इस तालाब व क्षेत्र को पर्यटन नगरी के रूप में विकसित करेगी। नपा सचिव ने कहा कि गर्मी के इस सीजन में तो यह संभव नहीं है, लेकिन अगले वर्ष तक अब तक जैसे हालात इस तालाब के नहीं होंगे। लोहारू के सुंदरीकरण व प्रकृति संरक्षण के लिए नगरपालिका पूरी तरह प्रयासरत है। शीघ्र ही इसके परिणाम देखने को मिलेंगे।