आत्मा को जानना ही धर्म का अर्थ : जैन मुनि
जागरण संवाददाता, चरखी दादरी : धर्म मात्र बौद्धिक उपलब्धि नहीं है, मनुष्य की स्वाभाविक आत्मा ह
जागरण संवाददाता, चरखी दादरी :
धर्म मात्र बौद्धिक उपलब्धि नहीं है, मनुष्य की स्वाभाविक आत्मा है लेकिन वह शरीर और कर्म के आवरण से ढकी हुई है। आवरण से चैतन्य ढका हुआ है पर उसका अस्तित्व विस्मृत नहीं है। यह बात शनिवार को जैन मुनि सत्यप्रकाश ढाणे दो ने जैन समाज के श्रद्धालुओं के समक्ष कही। वे पंजाब से चातुर्मास के बाद राजस्थान के नीम का थाना जाते हुए दादरी नगर में एक दिवसीय अल्प विश्राम के लिए रूके थे। जैन मुनि ने प्रवचन के बाद आगामी धर्म प्रचार के लिए प्रस्थान भी किया। जैन समाज के व्यक्तियों ने नगर की सीमा तक उन्हें विदाई दी। जैन मुनि ने कहा कि धर्म का अर्थ है आत्मा से आत्मा को देखना, जानना व स्थित होना। जहां त्याग व भोग
की रेखाएं आसपास हो जाती हैं। धर्म अर्थ से संयुक्त होता है वहां धर्म अधर्म से भी अधिक भयंकर हो जाता है। यदि हम चाहते है कि धर्म पुन: प्रतिष्ठित हो तो हम उसके विशुद्ध रूप का अध्ययन करे। धर्म का मूल अ¨हसा से ही आरंभ होता है, क्योंकि यही से दया भाव का प्रारंभ होता है। इस अवसर पर मुकेश जैन, डा. एनके जैन, धीरज जैन, संदीप जैन, कपिल जैन, लक्की जैन, इंद्र जैन, टीनू जैन, आईसी जैन, दीपक जैन, निर्मला जैन सहित जैन समाज के कई नागरिक उपस्थित थे।