कर्महीन को नहीं मिलती संसार की सारी वस्तुएं : कंवर महाराज
काल के खेल में जीव को सुध नहीं रहती कि वो आया किस काम से था औ
जागरण संवाददाता, भिवानी : काल के खेल में जीव को सुध नहीं रहती कि वो आया किस काम से था और कर क्या रहा है। जीव भूल जाता है और इस काल देश को अपना समझ कर गाफिल होता है। जब इंसान उम्र के आखिरी पड़ाव में आता है तब वो इस आवागमन के चक्कर से छुटकारा पाने के लिए छटपटाता है। अगर समय रहते इंसान पूर्ण सतगुरु की शरण ले ले तो उसकी ये छटपटाहट नहीं रहेगी। यह सत्संग वाणी राधा स्वामी दिनोद के परमसंत हु•ाूर कंवर साहेब महाराज रविवार को गांव दिनोद स्थित राधास्वामी आश्रम में संगत के समक्ष कर रहे थे।
महाराज ने फरमाया कि सामान्य इंसान के आगे चाहे कितना ही कीमती हीरा रख दो वो उसकी पहचान नहीं कर सकता। हीरे की परख जौहरी ही कर सकता है। सतगुरु जौहरी की भांति है इसलिए वो बार बार चेताते हैं कि इस अनमोल हीरे जैसे जन्म को कौड़ी की भांति न गंवा। गुरु महाराज ने कहा कि हम अपना आपा नही खोजते। बेटे पोते भाई कुल कुटुंब के लिए इंसान खुद का समय बर्बाद कर लेता है। जो आप से सामर्थ्यवान है उसकी शरणाई करो क्योंकि समर्थ की शरणाई में जाकर भय खत्म हो जाता है और सबसे समर्थ सतगुरु है। इंसान को अपने कल्याण का मार्ग ढूंढना चाहिए। हमारी रूह परमात्मा से ही बिछड़ कर आई थी इसका कल्याण भी परमात्मा से मिलन होने पर ही होता है। गुरु महाराज ने जीवन के मुख्य सुखों का जिक्र करते हुए फरमाया की पहला सुख निरोगी काया का होना है।
अगर काया में दुख है तो भक्ति तो क्या छोटी सी छोटी बात में भी मन नहीं लगेगा। दूसरा सुख घर मे माया का है। लेकिन माया हक हलाल की कमाई की हो। तीसरा सुख सुलक्षणी नारी का होता है। नारी अगर चरित्रवान है सुलक्षणी है तो वो कई पीढि़यों का उद्धार कर देती है। चौथा सुख पुत्र का आज्ञाकारी होना है। अगर पुत्र निकम्मा है तो जीवन नरक बन जाता है। उन्होंने कहा कि विशाल हृदय वाले बनो। सारी वस्तुएं इस संसार मे हैं लेकिन कर्महीन को वो नही मिलती।