कुल्फी बेच रहे इस युवा के बारे में जान कर हैरान रह जाते हैं लाेग, पढ़ें पूरी खबर
पिता के साथ कुल्फी बेच रहा यह युवा चार बार का नेशनल चैंपियन बाॅक्सर दिनेश है। उभरता बॉक्सर दिनेश गरीबी और संसाधनों के अभाव में कम उम्र में ही खेल से दूर होने को मजबूर हो गया।
भिवानी, [सुरेश मेहरा]। बदकिस्मती या अव्यवस्था जाे भी कह लीजिये, लेकिन यह झकझोर देने वाला दृश्य कइ्र सवाल पैदा करता है। खिलाडियों पर धन बरसाने वाले राज्य हरियाणा में यह हालात हैरान करता है। बााक्सिंग में लगातार चार साल राष्ट्रीय चैंपिंयन रहा एक खिलाड़ी आज सड़क किनारे कुल्फी बचने को मजबूर है। कुल्फी ले लो-कुल्फी ले लो की आवाज लगाने वाला यह युवा है बॉक्सर दिनेश। वह बाक्सिंग के सब जूनियर वर्ग में चार साल तक नेशनल चैंपियन रहा। वह किसी तरह कुल्फी बेचकर अपनी और परिवार की आजीविका चला रहा है।
चार बार लगातार बाक्सिंग का नेशनल चैंपियन दिनेश fभिवानी में कुल्फी बेचने काे मजबूर
भिवानी के खाड्डी मोहल्ला निवासी बाॅक्सर दिनेश नेशनल बाक्सिंग में सब जूनियर स्पर्धा के 51 किलो वर्ग में वह लगातार चार साल 2001 से 2004 तक तक गोल्ड मेडलिस्ट रहा। उसने सीनियर नेशनल और सब जूनियर वर्ल्ड चैंपियनशिप में भी भाग लिया। दिनेश की तमन्ना थी कि वह देश के लिए ढेरों पदक जीते। राष्ट्रमंडल और ओलंपिक खेलों में पदक जीत भारत का नाम दुनिया में रोशन करें। मगर पदक जीतने की राह में गरीबी उसके आगे रोड़ा बनकर आ खड़ी हुई।
सब जूनियर वर्ग में 2001 से 2004 तक लगातार चार बार का गोल्ड मेडलिस्ट बॉक्सर दिनेश
दिनेश ने बताया कि उसके पिता राजकरण रेहड़ी पर कुल्फी बेचकर परिवार का भरण पोषण करते हैं। मां सावित्री देवी बीमार रहती हैं। उनकी बीमारी पर भी काफी पैसा खर्च होता है। ऐसे में बमुश्किल घर का खर्च चल पाता है। मजबूरी में उन्हें भी पिता के साथ रेहड़ी पर आवाज लगाकर कुल्फी बेचनी पड़ती है। इसके साथ ही वह कुल्फी बनाने में भी पिता का हाथ बंटाते हैं।
पिता के साथ कुल्फी बेचता चैंपियन बॉक्सर रहा दिनेश।
कदम-कदम पर बदकिस्मती की मार
दिनेश ने बताया कि आमतौर से स्टेट चैंपियन को ही नेशनल के लिए चयनित किया जाता है लेकिन उसके साथ ऐसा भी हुआ कि स्टेट में गोल्ड जीतने के बावजूद उसकी जगह दूसरे को भेज दिया गया। विरोध जताया पर कोई सुनवाई नहीं हुई।
2007 में सड़क दुर्घटना में हुआ घायल, चार साल नहीं उबर पाया
दिनेश ने बताया कि 2007 में वह अपनी साइकिल से अभ्यास के लिए साई खेल छात्रावास जा रहा था। अचानक एक बाइक सवार ने उसकी साइकिल को टक्कर मार दी। इससे उसे नाक और दिमाग पर गहरी चोटें आईं। गरीबी की वजह से वह सही से उपचार भी नहीं करा पाया। जल्दी रिकवरी हो सके, इसके लिए सही खुराक भी नहीं मिल पाई। वह और परिवार गरीबी के चलते खुद को असहाय पा रहे थे। चार साल तक वह उस सदमे से उबर नहीं पाया।
उधार रुपये लेकर पापा ने भेजा था उज्बेकिस्तान
दिनेश ने बताया कि सब जूनियर वर्ल्ड चैंपियनशिप में भाग लेने के लिए पापा ने रुपये उधार लेकर उसको उज्बेकिस्तान भेजा था। वहां वह मामूली अंतर से पदक से वंचित रह गया था। आर्थिक तंगी के चलते परिवार के लिए उसे अच्छा प्रशिक्षण दिलाना, विदेश भेजना और उसकी डाइट का बोझ उठाना संभव नहीं था। आर्थिक सहायता भी कहीं से मिली नहीं, सो न चाहते हुए भी उसे बॉक्सिंग से दूर होना पड़ा।
न रोजगार मिला और न ही स्वरोजगार का साधन
दिनेश बताता है कि वह 12वीं तक पढ़ा है। पढ़ाई और खेल दोनों में ही उसके लिए गरीबी बाधा बनी। अब तो बाक्सिंग में देश के लिए पदक जीतने के सपने मन में ही दफन हो गए हैं। लेकिन उसने हार नहीं मानी है। अब वह नए खिलाडिय़ों विशेष कर गरीब बच्चों की मदद करता है और उन्हें बॉक्सिंग के गुर सिखाता है।
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''दिनेश बहुत ही प्रतिभाशाली खिलाड़ी रहा है। गरीबी की वजह से वह आगे नहीं बढ़ पाया। इसका दिनेश के साथ-साथ मुझे भी मलाल है। गरीबी की वजह से किसी उदीयमान खिलाड़ी का कॅरियर प्रभावित न हो, इसके ठोस कदम उठाए जाने चाहिए।
- विष्णु भगवान, बॉक्सिंग कोच।