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लोकतंत्र के प्रहरी -85 वर्षीय कामरेड बलबीर को याद है सिगरेट से पूरा बदन दागने का वह मंजर

सुरेश मेहरा भिवानी आपातकाल का वो काला अध्याय 85 वर्षीय कामरेड बलबीर शर्मा को आज भी या

By JagranEdited By: Published: Fri, 21 Jun 2019 05:59 PM (IST)Updated: Fri, 21 Jun 2019 05:59 PM (IST)
लोकतंत्र के प्रहरी -85 वर्षीय कामरेड बलबीर को याद है सिगरेट से पूरा बदन दागने का वह मंजर
लोकतंत्र के प्रहरी -85 वर्षीय कामरेड बलबीर को याद है सिगरेट से पूरा बदन दागने का वह मंजर

सुरेश मेहरा, भिवानी : आपातकाल का वो काला अध्याय 85 वर्षीय कामरेड बलबीर शर्मा को आज भी याद है। रोहतक कोर्ट परिसर के बाहर जनसभा को संबोधित करते समय उनको पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था। वे 19 माह तक जेल में रहे। चार जुलाई 1975 को उनको नजर बंद कर दिया गया और सात फरवरी 1977 को जेल से रिहा किया गया। उनकी गिरफ्तारी से पहले और बाद में परिवार को भी खूब प्रताड़ित किया गया। कामरेड बलबीर शर्मा पुराने दिनों को याद करते हुए बताते हैं कि उन पर पुलिस ने डकैती और धारा 307 के तहत मुकदमे बना दिए थे। उनको रोहतक से गिरफ्तार करने के बाद उनको भिवानी शहर थाना लाया गया। इसके बाद सीआईए स्टाफ ने उनको अपने कब्जे में ले लिया। दो दिन तक अपने पास रखा और पूछताछ की। इन दो दिनों में सीआईए पुलिस ने उनके साथ अमानवीय व्यवहार किया। उनको नंगा कर उलटा लटका दिया गया और जलती सिगरेट से उनके पूरे बदन को दागते रहे। उनकी प्रताड़ना का कारण यह भी रहा कि उनका अपना अखबार था और जनता की आवाज बुलंद की जा रही थी। सरकार को यह मंजूर नहीं था।

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कामरेड बलबीर शर्मा कहते हैं कि उनको पहले ही भनक लग गई थी कि पुलिस उन पर नजर रखे हुए है और कभी भी गिरफ्तारी हो सकती है। इसलिए 26 जून को वे घर से निकल लिए। इस दौरान पुलिस ने उनके परिवार के सदस्यों पिता बाबूराम शर्मा, बेटे नरेंद्र, प्रह्लाद शर्मा, भाई श्रीनिवास को उठा लिया। लेकिन घर वालों को भी पता नहीं था। पुलिस को भनक लग गई कि कामरेड 4 जुलाई को रोहतक में जनसभा को संबोधित करने वाले हैं। पुलिस मौका पा कर वहां पहुंच गई और उनका भाषण खत्म भी नहीं हुआ था कि उनको गिरफ्तार कर भिवानी लाया गया।

अलग-अलग जेलों में रहे कामरेड बताते हैं कि सबसे पहले उनको हिसार जेल में रखा गया। वहां पर करीब 20 दिन रखा गया। इसके बाद उनको करनाल जेल भेजा गया जहां पर वह करीब एक माह तक रहे। करनाल के बाद अंबाला जेल भेजा गया। वहां से 7 फरवरी 1977 तक रहे। कामरेड बलबीर शर्मा बताते हैं कि आपातकाल का वह दौर बहुत ही विकट काल रहा। जिसने भी जनता की आवाज उठाने की कोशिश की उनको जेलों में ठूंस दिया गया। यह लोकतंत्र की हत्या थी लेकिन लोग फिर भी चुप नहीं रहे आपात काल की परवाह नहीं की। पुराने दिनों को याद करते हुए कामरेड कहते हैं कि अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार सबको है। आपातकाल में आजादी पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई थी। ऐसा काला अध्याय कभी न आए।

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