संतों की शरण में आएं : कंवर महाराज
जागरण संवाददाता भिवानी संतों की शरण में आओ। क्योंकि संतों के पास केवल एक ही विद्या है अ
जागरण संवाददाता, भिवानी
संतों की शरण में आओ। क्योंकि संतों के पास केवल एक ही विद्या है और वो है परमात्मा से मिलाने की। सूरत शब्द के योग की। आपका अक्षर ज्ञान आपको केवल कथनी और बहस में ही उलझाएगा। कमाई केवल शब्द की ही काम आएगी। संतमत करनी का मत है। इसमें वाचक ज्ञान कोई मायने नहीं रखता। ना ही इसमें कोई बुद्धि का काम है। बुद्धि छोड़कर जो करनी करता है वहीं राधास्वामी दयाल के दरबार में पहुंच पाता है। यह सत्संग वचन परमसंत कंवर साहेब महाराज ने दिनोद गांव में स्थित राधास्वामी आश्रम में कहे।
हुजूर महाराज ने कहा कि जब तक मन में कपट है तब तक कितने ही ग्रन्थ पढ़ों, कितने ही ध्यान भजन के दावे करो कोई फायदा नहीं। बिना करनी के भक्त वैसा ही है जैसे बिना हथियार का सैनिक।वाचक ज्ञान के व्यक्ति समय आने पर ऐसे ही भाग जाते है जैसे दुश्मन के सामने आने पर कायर भाग जाता है। अज्ञान सतगुरु सुजान के आगे ऐसे भागता है जैसे बिल्ली आने पर चूहों में भगदड़ मच जाती है। गुरु महाराज ने विद्या के गुलामों को फटकार लगाते हुए कहा कि ऐसी विद्या तो अविद्या के समान है। क्योंकि चार अक्षर पढ़ कर ये संतों की वाणी में मीन मेख निकालने लग जाते हैं। प्रतिष्ठा के फेर में ऐसे बहुत से लोग कलयुग के जाल में फंसे हुए हैं।
हुजूर ने कहा कि बातों के टीकाकार अर्ध संपदा को ही खजाना माने बैठे हैं। पोथियों को ही ज्ञान मानने वाले ये भूल जाते हैं कि उनके पास अनुभव का ज्ञान नहीं है। गुरु महाराज ने कहा कि अनुभव के समुद्र तो सन्त हैं। गुरु महाराज ने कहा कि सतगुरु जड़ और चेतन की गांठ खोल कर आपको आपके अंतर में ही परमात्मा मिलने का साधन सुझाते हैं। उन्होंने कहा कि जब सतगुरु की रहनुमाई में आप इस अंतर चढ़ाई को चढ़ लोगे तो रूप रंग वर्ण की रेखा बहुत नीचे रह जाएगी। सूरत शब्द के योग को करने वाला बून्द और सिधु के बीच का अंतर भी समझ जाता है। उन्होंने फरमाया कि जो मन से माया का त्याग नहीं करते वे बाद में इसमें बहुत बुरे फंस जाते हैं। ऐसे व्यक्ति भिन्न भिन्न मुखौटे पहन कर रहते हैं। जब उन्हें धन मिलता है तो धन के गुलाम बने रहते हैं और जब धन नहीं मिलता तो अपने आप को त्यागी दिखाने की कोशिश करते हैं।