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पति की मौत के बाद अनिल देवी ने संघर्ष कर बच्चों को बनाया सक्षम

12 जनवरी 2002 का दिन शायद ही हड़ौदी गांव के लोग कभी भूल पाए।

By JagranEdited By: Published: Sat, 11 Jan 2020 11:50 PM (IST)Updated: Sat, 11 Jan 2020 11:50 PM (IST)
पति की मौत के बाद अनिल देवी ने संघर्ष कर बच्चों को बनाया सक्षम
पति की मौत के बाद अनिल देवी ने संघर्ष कर बच्चों को बनाया सक्षम

संदीप श्योराण, चरखी दादरी : 12 जनवरी 2002 का दिन शायद ही हड़ौदी गांव के लोग कभी भूल पाए। उस दिन ग्रामीण गांव में बिजली समस्या के समाधान के लिए टाटा 407 में सवार होकर बिजली अधिकारियों से मिलने बाढड़ा बिजली घर पहुंचे थे। जिसके बाद वे गांव में बिजली आपूर्ति दुरुस्त करने के लिए चार बिजली कर्मियों को अपने साथ लेकर गांव लौट रहे थे। लेकिन गांव पहुंचने से पहले ही उनका वाहन सड़क हादसे का शिकार हो गया था। ट्रक व टाटा 407 के बीच सीधी टक्कर से हुए इस हादसे में गांव हड़ौदी के 18 लोगों व 4 बिजली कर्मचारियों सहित कुल 22 लोगों को मौत ने अपने आगोश में ले लिया था। मरने वाले 18 ग्रामीणों में दलबीर सिंह भी शामिल था। जिसकी मौत के बाद परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था। लेकिन उनकी पत्नी ने हार नहीं मानी और संघर्ष जारी रखा। उन्होंने बीते 18 वर्षों तक परिस्थितियों से लड़ते हुए परिवार को संभाला व बच्चों को शिक्षित किया।

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सड़क हादसे में दलबीर सिंह की मौत के बाद उनके परिवार में कोई कमाने वाला नहीं बचा था। लेकिन पति की मौत के बाद भी उनकी पत्नी ने हौसला रखा और अपने बच्चों के पालन-पोषण, शिक्षा में किसी प्रकार की कमी आड़े नहीं आने दी। जिसके चलते उनकी बेटी प्रियंका वर्तमान में जेजेयू हिसार से एमबीए की पढ़ाई कर रही है और वो पहले बीटेक की पढ़ाई पूरी कर चुकी है। इसके अलावा छोटे बेटे ने बीते वर्ष 87 प्रतिशत अंको के साथ बारहवीं कक्षा पास की है और वह अब स्नातक की पढ़ाई के साथ-साथ कोचिग के माध्यम से प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहा है। वहीं बीच का बेटा दिव्यांग हैं और चलने-फिरने में असमर्थ है इसके बावजूद भी उसे शिक्षित करने का प्रयास जारी है और वर्तमान में वह कक्षा नौवीं में पढ़ाई कर रहा है। घर चलाने के लिए करना पड़ा संघर्ष

अनिल देवी ने बताया कि पति की मौत के बाद उसे घर चलाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा। उन्होंने बताया कि उनके पास दो एकड़ जमीन थी। जिस पर खेती कर परिवार को चलाने का प्रयास किया। लेकिन खेती में कम आय होने पर तीन साल बाद वर्ष 2005 में बच्चों के साथ दादरी आकर किराए के मकान में रहना शुरू किया और एक निजी अस्पताल में नौकरी शुरू कर बच्चों की पढ़ाई जारी रखी। बाद में वर्ष 2011 में बतौर आंगनबाड़ी वर्कर उनकी सरकारी नौकरी लग गई। जिसके बाद अब वे दादरी के घीकाड़ा रोड स्थित शिव कालोनी में अपना खुद का मकान बनाकर रह रही है। हादसे के समय बेटे की उम्र थी महज दो माह

हादसे में जान गंवाने वाले दलबीर सिंह की पत्नी अनिल देवी ने बताया कि उसके तीन बच्चें हैं। जिसमें एक बेटी और दो बेटे हैं। उन्होंने बताया कि हादसे के समय बेटी की उम्र चार वर्ष, बीच के बेटे की उम्र ढाई वर्ष और सबसे छोटे बेटे की उम्र महज दो माह थी। तीन छोटे बच्चों के पालन पोषण के अलावा घर संभालने की पूरी जिम्मेवारी थी। वहीं एक बेटा दिव्यांग होने के कारण चुनौती और अधिक थी। लेकिन उन्होंने अपनी जिम्मेवारी को बखूबी निभाया है।


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