13 गांवों की 3 हजार एकड़ भूमि से हटेगा सेम का साया
जागरण संवाददाता, चरखी दादरी : दादरी जिले में वर्षा का पानी जमा होने के चलते करीब 13 गांव
जागरण संवाददाता, चरखी दादरी :
दादरी जिले में वर्षा का पानी जमा होने के चलते करीब 13 गांवों की करीब 3 हजार एकड़ भूमि बंजर हो चुकी है। यह सिलसिला पिछले 7-8 वर्षो से चला आ रहा है। इन गांवों के अनेक किसान मजदूरी कर करके अपने परिवार को चला रहे हैं। दादरी जिले के रोहतक-दिल्ली रोड के अनेक गांवों के किसानों की खेती लायक जमीन अब बंजर होने लगी है। इसका मुख्य कारण है बरसाती पानी। इन गांवों की जमीन पर पिछले 6-7 साल से मानसून के दौरान पानी जमा हो जाता है। प्रशासन की लापरवाही के कारण पानी की निकासी समय पर नहीं हो पा रही। इस कारण से पानी इन खेतों में लगातार जमा होता रहा है। प्रशासन कभी बिजली होने का हवाला देता है तो कभी संसाधनों की कमी का। किसानों द्वारा बार-बार संबंधित विभाग को पानी निकासी के लिए गुहार लगाने के बाद भी समस्या जस की तस बनी हुई है। लेकिन अब जल्द ही बंजर भूमि के दिन फिरने वाले हैं। बाक्स :
वाप्कोस कंपनी ने किया था सर्वेक्षण
पिछले दिनों वाप्कोस कंपनी के विशेषज्ञों ने दादरी जिले की बंजर भूमि का सर्वे किया था। इसके बाद कंपनी विशेषज्ञों की टीम ने सर्वेक्षण कर समाधान का खाका तैयार किया है। विशेषज्ञों की रिपोर्ट प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा सरकार को भेजी जाएगी। रिपोर्ट पर सरकार की मंजूरी मिली तो कई वर्षो से दंश झेल रहे किसानों को आर्थिक रूप से राहत मिलेगी। विशेषज्ञों ने अपनी रिपोर्ट में जमीन के उपरी सतह से निपटने व जमीन के अंदर लवणता वापिस लाने के जमीन सुधार की योजना व समाधान के बारे में बताया गया है।
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3000 एकड़ भूमि हुई सेमग्रस्त
दादरी जिले के दर्जनों गांवों में पिछले कई वर्षो से लागातार जलभराव के कारण करीब तीन हजार एकड़ जमीन सेमग्रस्त होते हुए बंजर हो चुकी है। जिसके कारण यहां के किसानों को अपने खेत बिजाई से वंचित रखने पड़ रहे हैं। लगातार बिजाई नहीं होने के कारण किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है। हालांकि दो वर्ष पूर्व हरियाणा सरकार द्वारा सेमग्रस्त हो चुकी जमीन पर मछली पालन योजना शुरू करने की घोषणा भी की गई थी। लेकिन किसानों ने योजना का विरोध किया तो यह ठंडे बस्ते में चली गई। किसानों ने हार नहीं मानी और अपनी बंजर हो चुकी जमीन के समाधान के लिए प्रदर्शन करते रहे। बावजूद इसके किसी भी प्रकार से किसानों की समस्या का समाधान नहीं हुआ।
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कई वर्षो से नहीं हुई बिजाई
कई वर्षो से लगातार बिजाई से वंचित जमीन का समाधान करने के लिए मनीषा सांगवान फाउंडेशन ने पहल करते हुए केंद्र सरकार की वाप्कोस कंपनी से संपर्क करके विशेषज्ञों की टीम से सर्वेक्षण करवाया। जिला प्रशासन के सहयोग से केंद्र सरकार की वाप्कोस कंपनी के विशेषज्ञों की टीम ने जलभराव व सेमग्रस्त हो चुकी जमीन का सर्वे कर उसके समाधान के लिए कई पहलुओं की तलाश की। विशेषज्ञों की टीम ने बंजर जमीन में दोबारा से खेती करने के पहलु तलाशते हुए पूरा खाका तैयार किया है। सबसे पहले इस क्षेत्र के खेतों में जमा पानी की निकासी के लिए पुख्ता प्रबंध करने के लिए स्थाई रूप से ड्रेन का निर्माण करने की योजना तलाशी।
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13 पेज की बनाई रिपोर्ट
सेमग्रस्त भूमि से पानी निकासी के बाद किसान यहां कौन सी फसल और कब कैसे ले सकते हैं। टीम द्वारा 13 पेज की तैयार की गई रिपोर्ट में बताया गया है कि जलभराव से बंजर हुई जमीन पर योजना अनुसार कार्य किया जाए तो यहां खेती लायक जमीन तैयार हो सकती है। रिपोर्ट के अनुसार जलभराव ग्रस्त क्षेत्रों में नालियां व ड्रेन के माध्यम से पानी निकालकर उपरी सतह को साफ किया जा सकता है। वहीं जमीन के अंदर लवणता कायम रखने के लिए तीन प्रकार की योजना तैयार की है।
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प्रशासन और सरकार को भेजेंगे रिपोर्ट
एक्सपर्ट टीम के विशेषज्ञ डा. एके चावला व केपीएस मलिक ने बताया कि जमीन का विकास को लेकर रिपोर्ट तैयार की गई है। रिपोर्ट में दादरी जिले के कई गांव को सेमग्रस्त व बंजर जमीन से कैसे मुक्त किया जा सकता है, इसका पूरा खाका तैयार किया गया है। टीम सदस्यों ने बताया कि बंजर भूमि की रिपोर्ट प्रशासन व सरकार के पास भेजेंगे। जिसके बाद ही सरकार तय करेगी कि किस योजना के तहत इस क्षेत्र की बंजर भूमि का समाधान हो सके।
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बंजर जमीन का हो सकेगा स्थाई समाधान
मनीषा सांगवान फाउंडेशन की चेयरपर्सन मनीषा सांगवान ने बताया कि बंजर हो चुकी हजारों एकड़ भूमि के कारण किसानों को लगातार नुकसान हो रहा है। इसलिए इस जमीन का सदुपयोग करने के लिए उन्होंने केंद्र सरकार के अधीन कार्यरत वाप्कोस कंपनी से संपर्क कर एक्सपर्ट टीम से जमीन के सदुपयोग की रिपोर्ट प्रशासनिक अधिकारियों के साथ मिलकर तैयार हुई है। रिपोर्ट के आधार पर किसानों को भविष्य में जमीन का सदुपयोग करने की योजना बनाई है। अगर यह योजना सिरे चढ़ी तो दादरी जिले की करीब तीन हजार एकड़ पर किसानों को काफी फायदा होगा।