पंजाब के ध्यानार्थ: पूरी जिदगी रोने से अच्छा है अब कुछ दिन रो लें हमारे बच्चे
- महिला किसान दिवस पर टीकरी बॉर्डर पर चल रहे आंदोलन में शामिल होने पंजाब से आई महिलाएं
- महिला किसान दिवस पर टीकरी बॉर्डर पर चल रहे आंदोलन में शामिल होने पंजाब से आई काफी संख्या में महिलाएं
- महिलाएं बोली- खेती हमारी जिदगी है और इस जिदगी बचाण नू वास्ते असी यहां आए
- बच्चों को छोड़कर आई हैं पिड की दूसरी महिलाओं के जिम्मे फोटो- 18: जागरण संवाददाता, बहादुरगढ़ (झज्जर):
तीन कृषि कानूनों को रद कराने की मांग को लेकर धरनारत किसानों की ओर से महिला किसान दिवस मनाया गया। पंजाब से भी भारी संख्या में महिला किसानों ने भाग लिया। रविवार देर शाम व सोमवार सुबह पंजाब से रेल व बसों के माध्यम से महिलाएं टीकरी बॉर्डर पर पहुंचीं। महिलाओं ने अपने-अपने गांवों के जत्थों में शामिल किसानों का हौसला बढ़ाया। पंजाब के संगरूर जिले के गांव दूलड़ कला की रहने वाली हरमेश कौर ने बताया कि वे रविवार को टीकरी बॉर्डर आई हैं। छोटे बच्चों को छोड़कर यहां आई है। अपने घर का काम व बच्चों को संभालने का जिम्मा वह पड़ोस की महिलाओं को देकर आई हैं। हरमेश बताती हैं कि पंजाब में घर व खेती का काम इन दिनों अमूमन महिलाएं ही आपस में मिलजुलकर संभाल रही हैं। पुरुष आंदोलन में शामिल हैं। हमने भी उन्हें बोल रखा है कि जब तक कानून रद नहीं होते वे वापस घर न आएं। आज महिला किसान दिवस मनाने वास्ते मैं भी आंदोलन में अपने छोटे बच्चों को छोड़कर आई हूं। बच्चे मां के बिना रोते हैं। मगर इन कानूनों की वजह से जिदगी भर रो लेने से अच्छा है वे कुछ दिन रो लें। संगरूर जिले के गांव रोडेवाला की हरप्रीत कौर बताती हैं कि हम अपने बच्चों के भविष्य के वास्ते इन कानूनों को रद करने की मांग कर रही हैं। बच्चे किसे अच्छे नहीं लगते। बच्चे उनके बिना रोते हैं। उनका दिल नहीं लगता। मगर जमीन बचेगी तभी तो बच्चों की परवरिश अच्छे से होगी। हरप्रीत कौर ने बताया कि वे 19 महिलाएं इकट्ठा होकर यहां आंदोलन में आई हैं। उनके घर का काम पिड की दूसरी महिलाएं करेंगी। जब से आंदोलन चल रहा है तब से ही पूरे पिड की महिलाएं आपस में एकजुट मिल-जुलकर ही एक-दूसरे का काम करवा रही हैं। यह सिलसिला तब तक चलेगा, जब तक कानून रद नहीं हो जाते। वे अब 26 जनवरी को भी होने वाले ट्रैक्टर मार्च में भी भाग लेंगी।