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तीन पर्यावरण प्रेमियों ने किया कमाल, खिल उठी दुल्‍हन सी धरती की चुनरी

बहादुरगढ़ में तीन पर्यावरण प्रेमियों ने एेसा कमाल किया कि बंजर धरती की चुनरी भी दुल्‍हन सी खिल उठी। बहादुरगढ़ सरकारी अस्‍पताल की अभी खाली पड़ी जमीन पर आज हरियाली छाई हुई है।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Fri, 16 Nov 2018 09:48 AM (IST)Updated: Fri, 16 Nov 2018 09:48 AM (IST)
तीन पर्यावरण प्रेमियों ने किया कमाल, खिल उठी दुल्‍हन सी धरती की चुनरी
तीन पर्यावरण प्रेमियों ने किया कमाल, खिल उठी दुल्‍हन सी धरती की चुनरी

बहादुरगढ़, [प्रदीप भारद्वाज]। तीन पर्यावरण प्रेमियों ने ऐसा कमाल दिखाया की धरती दुल्‍हन की चुनरी की तरह खिल उठी। कभी बंजर और खाली पड़ी सरकारी जमीन पर आज हरियाली लहरा रही है। खास बात यह कि इनके द्वारा लगाए गए 20 हजार पेड़-पौधों में विलुप्त हो रही प्रजातियों के भी अनेक पेड़-पौधे हैं। लोगों को भी प्रोत्साहित करते हैं। पौधे बांटकर हरियाली का दायरा बढ़ाने में लगे इन पर्यावरण प्रेमियों का यह कारवां तो छोटा है, मगर इसका मुकाम काफी बड़ा है।

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विलुप्त होती वनस्पतियों को सहेज कर बांट रहे हैं हरियाली

बहादुरगढ़ के हरियाणा के सरकारी अस्पताल के पीछे पड़ी खाली जमीन अब एक हरे-भरे बगीचे में तब्दील हो चुकी है। एक डॉक्टर, एक बुजुर्ग और एक युवा स्वास्थ्य कर्मी की तिकड़ी पौधरोपण के लिए जुनूनी है। अपना काम करते हुए इन्होंने सरकारी अस्पताल परिसर को हरियाली से पाट दिया है। जिन वनस्पतियों को हम खो चले हैं, यह तिकड़ी उन्हें न केवल संजो रही है बल्कि घर-घर पहुंचा भी रही है। इनके इस प्रयास से महज चार साल में ही 20 हजार से ज्यादा पौधे लगाए जा चुके हैं। रोजाना नए-नए पौधों को जुटाना और नई पौधे तैयार करना इनकी जिंदगी का हिस्सा है।

ऐसे हुई शुरुआत

कुछ साल पहले तक बहादुरगढ़ के सरकारी अस्पताल के पीछे का हिस्सा खाली था। यहां तबादला होकर आए डॉ. मुकेश इंदौरा ने इस ओर ध्यान दिया तो स्थिति बदल गई। उन्हें 76 वर्षीय बुजुर्ग ओमप्रकाश किंकाण का साथ मिला। दोनों ने तय किया खाली जमीन को हरियाली से भर देंगे। दोनों ने पेड़-पौधे की उन प्रजातियों को जुटाना शुरू किया जो हर तरह से औषधीय हैं और विलुप्त हो चली हैं। इस काम में इनको तीसरा साथी मिला अस्पताल का ही चतुर्थ श्रेणी कर्मी बजरंगी। फिर तो तीनों के मकसद को पंख लग गए और नतीजा सबके सामने है।

हर किसी को लुभाती है हरियाली

इन्होंने अपने विशाल बगीचे में 100 से भी ज्यादा पेड़-पौधों की प्रजातियां संजो रखी हैं। इनके अलावा पांच तरह की तुलसी, बेलपत्र, लैमनग्रास, काला बांसा, जलजमनी, स्तावर, बोगनबेलिया, हरड़, बहेड़ा, अंजीर, आंवला के अलावा हर तरह की परंपरागत और उपयोगी वनस्पति की प्रजाति यहां मौजूद है। इन्होंने यहां नर्सरी भी विकसित की है, जिसमें हर साल हजारों पौधे तैयार होते हैं। अब तो इनका कारवां भी बड़ा होने लगा है। शहर के लोग इनकी मुहिम से जुड़ रहे हैं, जिन्हें ये अपनी नर्सरी से पौधे भेंट करते हैं।

डॉ. मुकेश इंदौरा कहते हैं, औषधीय पौधों और वनस्पति को बचाना जरूरी है। यदि हम पेड़-पौधों से जुड़े रहेंगे, तो स्वास्थ्य खुद ही ठीक रहेगा। आज कितने लोगों को पुनर्नवा के बारे में जानकारी है। जबकि यह एक विशेष औषधीय वनस्पति है, जो खेतों और खाली जमीन पर उग आती है। अपने आप में अचूक दवा होती है।

उनका कहना है कि ऐसी ही बहुत सी वनस्पतियां हैं, जिनसे हम दूर हो रहें हैं। हमें भविष्य के लिए चेतना होगा। ओमप्रकाश किंकाण कहते हैं, हम विभिन्न पौधे जुटा रहे हैं। कुल्लू, हैदराबाद समेत कई जगहों से इन्हें चुनते हैं। प्रयास यही रहता है कि ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाए जाएं और लोगों में बांटे जाएं। 


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