विज के शहरी स्थानीय निकाय मंत्री बनने से 115 एकड़ जमीन भू-माफियों से मुक्त होने की उम्मीद जगी
छावनी से विधायक अनिल विज के शहरी स्थानीय निकाय मंत्री बनने से भू-माफिया के कब्जे में दबी करीब 115 एकड़ जमीन मुक्त होने की उम्मीद जगी है। करधान गांव में करीब 115 एकड़ शामलात जमीन की रजिस्ट्रियां कर करोड़ों रुपयों की जमीन की खरीद-फरोख्त हुई थी।
दीपक बहल, अंबाला
छावनी से विधायक अनिल विज के शहरी स्थानीय निकाय मंत्री बनने से भू-माफिया के कब्जे में दबी करीब 115 एकड़ जमीन मुक्त होने की उम्मीद जगी है। करधान गांव में करीब 115 एकड़ शामलात जमीन की रजिस्ट्रियां कर करोड़ों रुपयों की जमीन की खरीद-फरोख्त हुई, लेकिन कई साल बाद भी किसी अधिकारी की न जिम्मेदारी तय हो सकी और न ही जमीन वापस सरकार के पास गई। यहां तक कि एडीसी की जांच में स्पष्ट हो चुका है कि इस घोटाले में उच्च स्तर के अधिकारियों की भूमिका भी संदेह के घेरे में हैं, इसके बावजूद फाइल दबा रखी है। हालांकि, विजिलेंस जांच की सिफारिश जरूर की गई लेकिन मामला दर्ज आज तक नहीं हो सका। 24 रजिस्ट्रियां नियमों को ताक पर रखकर हुई थी
जांच रिपोर्ट में पाया गया था 24 रजिस्ट्रियां छावनी की तहसील से नियमों को ताक पर रखकर हुई थी। दैनिक जागरण ने फरवरी 2015 में करधान की शामलात जमीन की रजिस्ट्रियां होने का मामला प्रकाशित किया था। इसके बाद जिला स्तर पर आला अधिकारी मामले को दबाने में जुटे रहे। लेकिन अंबाला मंडल की आयुक्त रही नीलम कासनी ने इस पर संज्ञान लेते डीसी से जवाब तलब किया था।
करीब चार साल से इस मामले की जांच में लेटलतीफी होती रही। घोटाले में अंबाला के बड़े घराने ही नहीं बल्कि तहसील से डीसी रैंक के अधिकारियों तक की कार्यशैली संदेह के घेरे में हैं। 2016 में ही इस घोटाले की जांच के बाद सच सामने आ गया था, लेकिन आलाधिकारी इसे दबाने में लगे रहे। नतीजा यह रहा कि 30 जून, 2016 की जांच रिपोर्ट भी एक टेबल से दूसरे टेबल पर घूमती रही। जांच रिपोर्ट में स्पष्ट लिखा था कि नियमों को ताक पर रखकर रजिस्ट्रियां की गई हैं जिसमें आलाधिकारी भी लिप्त हैं। एडीसी भी रहे मेहरबान, खुद को बचा गए
एडीसी ने जांच कर सच से पर्दा तो उठा दिया, लेकिन अभी तक कौन-कौन से अधिकारी संदेह के घेरे में हैं इनके नामों और रैंक का खुलासा नहीं किया। स्पष्ट है कि चार साल बाद भी घोटाले में लिप्त अफसरों के नाम सार्वजनिक करने पर सुस्ती बरती जा रही है। रिपोर्ट में किस-किस की रजिस्ट्री कब कब हुई उनके नामों और तारीख का उल्लेख किया गया है, लेकिन करने वाले अधिकारियों व कर्मचारियों के नाम छिपा लिया गया है। विजिलेंस की जांच में अब इन लोगों के नाम सार्वजनिक हो सकेंगे। सेटिग पर हुआ सारा खेल
जिले के कलेक्टर एवं डीसी के पास विचाराधीन होने के बावजूद भू-माफियों ने करोड़ों रुपयों की जमीन की रजिस्ट्रियां करवा दी। अंबाला छावनी तहसील से सेटिग कर यह भूमि घोटाला किया गया है। डीसी को फाइनल करना था कि शामलात जमीन का हिस्सेदारी की जानी है या नहीं। इसके बावजूद आनन-फानन में 11 रजिस्ट्रियां कर दी गई। इस घोटाले में एक आला अधिकारी की भूमिका भी संदेह के घेरे में है, जिन्होंने मौखिक रूप से नायब तहसीलदार को इस संबंध में आदेश जारी किए थे। यदि, विजिलेंस ने मुकदमा दर्ज किया तो शिकंजे में फंस चुके नायब तहसीलदार उस आला अधिकारी का नाम तक सार्वजनिक कर सकता है। भ्रष्टाचारियों को बचाने की कवायद जरूर की गई क्योंकि सारा रिकार्ड उपलब्ध होने के बावजूद किसी कर्मी या अधिकारी का नाम तो दूर रैंक तक नहीं लिया गया है।