सीने में गोलियां लगीं फिर भी मार गिराए आतंकी, आज स्मारक के लिए ठोकरें खा रहा परिवार
उमेश भार्गव, अंबाला शहर: वह खून कहो किस मतलब का जिसमें उबाल का नाम नहीं, वह खून कहो
उमेश भार्गव, अंबाला शहर:
वह खून कहो किस मतलब का जिसमें उबाल का नाम नहीं, वह खून कहो किस मतलब का जो आ सके देश के काम नहीं। शहीद मेजर योगेश गुप्ता इन जोश भरी पंक्तियों के जीते जागते साक्षी बने। सीने में आतंकियों ने गोलियां दाग दीं, लेकिन उनका खून ठंडा नहीं पड़ा। बहते खून की परवाह किए बना गोलियां लगने पर भी दो आतंकी मार गिराए। जम्मू कश्मीर में सूरन कोट में कुल चार आतंकी मार गिरने वाले मेजर योगेश गुप्ता ने अंबाला सहित पूर्व देश का सीना फर्क से चौड़ा कर दिया। भारत मां का यह वीर सपूत देश की रक्षा करते-करते वर्ष 2002 में शहीद हुआ, लेकिन जिस देश के लिए अंबाला की डिफेंस कालोनी निवासी योगेश गुप्ता ने अपने प्राण न्योछावर का दिए, उसी ने शहीद के परिवार को भुला दिया। मेजर योगेश गुप्ता को आर्मी हेड क्वार्टर ने अशोक चक्र से सम्मानित करने की अनुशंसा केंद्र सरकार से की। अशोक चक्र मिलना तो दूर आज तक उनकी याद में न तो कोई चौक बन पाया न ही कोई अन्य शहीद स्मारक। परिवार मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक गुहार लगा चुका है, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है। बेटे को आने वाली पीढि़यां याद रखें और शहीद योगेश गुप्ता का अविस्मरणीय योगदान इतिहास के पन्नों में लिखा जाए। इसी आखिरी इच्छा के साथ मां ललित मोहनी ने आखिरी सांसें लीं, लेकिन प्रशासन की नींद नहीं टूटी।
2003 से अब तक परिवार नहीं बना किसी सम्मान समारोह का हिस्सा
वर्ष 2003 से लेकर आज तक शहीद मेजर योगेश गुप्ता का परिवार किसी सम्मान समारोह में शरीक नहीं हुआ। पिता वेद प्रकाश गुप्ता व शहीद के भाई विकास गुप्ता ने बताया कि हर 26 जनवरी और 15 अगस्त को परिवार को जिला प्रशासन की ओर से निमंत्रण तो आता है, लेकिन जाता कोई नहीं। शहीद मेजर योगेश के भाई विकास गुप्ता ने रुंधे कंठ से दैनिक जागरण के समक्ष अपनी पीड़ा जाहिर करते हुए कहा कि भाई को शहीद हुए 16 साल हो गए। हर उस शख्स से गुहार लगा चुके हैं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। एक चौक तक बनवाने के लिए उन्हें प्रशासन से मिन्नतें करनी पड़ रही हैं, लेकिन प्रशासन पर कोई असर नहीं पड़ रहा।