माथे पर त्रिशूल व ऊँ के तिलक लगा भोले के रंग में रंग रहे श्रद्धालु
जागरण संवाददाता अंबाला हिंदू रीति रिवाज में माथे पर तिलक लगाना अत्यंत प्राचीन है। माना जाता
जागरण संवाददाता, अंबाला: हिंदू रीति रिवाज में माथे पर तिलक लगाना अत्यंत प्राचीन है। माना जाता है कि मनुष्य के मस्तक के मध्य में विष्णु भगवान का निवास होता है और तिलक ठीक इसी स्थान पर लगाया जाता है। लेकिन बदलते समय व भागदौड़ भरी जिदगी के बीच माथे पर तिलक केवल शुभ कार्य, त्योहार तक ही सीमित होता जा रहा है। यहीं कारण है कि मंदिरों में अब तिलक के प्रति लोगों का रूझान बढ़ाने के लिए इसे अलग रूप दिया जा रहा है। पुजारी के तिल्ले व अंगुली की जगह पर प्लास्टिक व तार के सांचे का इस्तेमाल कर रहे हैं। जिसके जरिए भक्त के माथे पर ऊँ, त्रिशुल बने तिलक ही नहीं बल्कि स्वास्तिक का भी तिलक लगया जाता है। जिसे देखकर ऐसा लगता है मानों माथे पर टैटू बनवाया हो। यह काफी आकर्षक भी होने के कारण युवा से लेकर बच्चे, बुजुर्ग व महिलाएं सभी इन्हें काफी पसंद करती है। कुछ ऐसा ही नजारा महाशिवरात्रि पर ट्विन सिटी में विभिन्न शिवालयों में भी देखने को मिला। मंदिर में माथा टेकने वाले भक्तों के सिर ही नहीं बल्कि माथे पर भोले की दीवानगी बोल रही थी। यह नजारा काफी अछ्वुत लग रहा था।
चंदन व खुशबू वाले तिलक का कर रहे इस्तेमाल
त्रिशुल, स्वास्तिक व ऊं का निशान बनाने के साथ-साथ चंदन व खुशबू का भी इस्तेमाल किया जा रहा है। ताकि भक्त के माथे पर तिलक लगते ही वह महक उठाते। इसके अलावा अधिकतर मंदिरों में कुमकुम, मिट्टी, हल्दी, भस्म आदि का तिलक लगाने का विधान है। हल्दी का तिलक लगाने का एक कारण यह भी है कि त्वचा शुद्ध होती है। हल्दी में एंटी बेक्ट्रियल तत्व होते हैं, जो रोगों से मुक्त करता है। शिव मंदिर के पुजारी संजय भट्ट का कहना है कि माथे पर ऊँ व त्रिशुल बनने से भक्तों को काफी खुशी होती है और बच्चे व युवा भी इसे उत्साह से लगवाते हैं। समय के साथ बदलाव होना भी काफी जरुरी है।