स्वच्छ भारत ग्रामीण को लगाया पलीता, सरकार से करोड़ों मिले पर खर्च नहीं कर पा रहे
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अति महत्वकांक्षी योजना को जिला प्रशासन जम
उमेश भार्गव, अंबाला शहर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अति महत्वकांक्षी योजना को जिला प्रशासन जमकर पलीता लगा रहा है। गांव को स्वच्छ बनाने के उद्देश्य से सरकार ने पूरे साल जो मुहिम चलाई उसे जिला प्रशासन अमल में ही नहीं ला पाया। केंद्र सरकार ने इस सपने को साकार करने के लिए जिला प्रशासन को कुल 1 करोड़ 83 लाख रुपये का बजट दिया। हैरत की बात है कि इसमें से ज्यादातर राशि प्रशासन खर्च ही नहीं कर पाया। जितना खर्च किया उसका मनमर्जी से और धड़ल्ले से दुरुपयोग हुआ। किसी ने इस ओर ध्यान देना तक लाजमी नहीं समझा। अब दैनिक जागरण को आरटीआइ से पूरे मामले की जानकारी मिली है। वहीं, एडीसी कार्यालय की ओर से पिछले दो साल में शौचालय बनवाने पर किसी भी गांव में एक रुपया प्रोत्साहन राशि नहीं दिया गया। यह बात भी आरटीआइ में दी गई जानकारी में कार्यालय ने स्वीकार की है।
408 गांव, किसी में भी नहीं बना शौचालय
केंद्र सरकार ने स्वच्छ भारत ग्रामीण अभियान के लिए 1.10 लाख व राज्य ने 73.30 लाख राशि इस साल दी। इस बजट को केवल फ्लैक्स बोर्ड व बैनर आदि पर खर्च किया गया। किसी गांव में एक भी शौचालय नहीं बना। जिला प्रशासन का तर्क है कि अंबाला में अब किसी भी गांव में शौचालय की जरूरत ही नहीं है जबकि हकीकत यह है कि वर्तमान में भी शौचालय बनवाने के लिए लोग बीडीपीओ व एडीसी कार्यालय के धक्के खा रहे हैं।
बिना कुटेशन के कैसे बनाए गए होर्डिंग व बैनर
आरटीआइ के तहत जानकारी देते हुए एडीसी कार्यालय ने कहा है कि स्वच्छ भारत ग्रामीण के लिए उन्होंने होर्डिंग, बैनर और फ्लैक्स नियमानुसार तैयार कराए, लेकिन किसी भी होर्डिंग व बैनर के लिए कोई कुटेशन नहीं ली। इस अभियान के प्रचार प्रसार के लिए वर्ष 2017-18 में 2 लाख 15 हजार 495 रुपये के फ्लैक्स, होर्डिंग्स व बैनर तैयार कराए गए जबकि इस साल अभी तक 2 लाख 29 हजार 952 रुपये के फ्लैक्स व होर्डिंग्स बनवाए गए। अब सवाल यह है कि जब इनके लिए कोई कुटेशन नहीं ली गई तो यह बैनर, होर्डिंग्स और फ्लैक्स किससे और कैसे तैयार कराए गए। यदि डीपीआरओ रेट पर यह तैयार कराए गए थे तो इस बात की जानकारी भी आरटीआइ में क्यों नहीं दी गई?
नुक्कड़ नाटक व स्वच्छता रैलियों तक सिमटा अभियान
एडीसी कार्यालय ने स्वीकार करते हुए कहा है कि नुक्कड़ नाटक, स्कूल बच्चों की रैलियां, मोटीवेटर और वालेंटियर द्वारा लगाए गए जागरूकता कैंप, हर गांव में निगरानी कमेटियों का गठन कर और सरकारी भवनों पर सफेदी कराकर स्वच्छता अभियान को चलाया गया। यानी इसके अतिरिक्त जमीनी स्तर पर एक भी काम नहीं हुआ। यही कारण है कि आज भी गांव में ज्यादातर लोग खुले में शौच करने को मजबूर हैं।
7 माह में खर्च किए सिर्फ 2.29 लाख, अब छह माह में खर्च होंगे 1.81 करोड़
अधिकारियों की लापरवाही का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सात माह में महज 2.29 लाख रुपये ही जिला प्रशासन इस साल खर्च कर पाया है। अभी भी 1.81 करोड़ रुपया सरकारी खजाने में बचा है। यदि 31 मार्च तक इस राशि का प्रयोग नहीं हुआ तो यह राशि लैप्स हो जाएगी।