सेंट्रल जेल में वारदात हुई तो तड़पेंगे बंदी, फार्मासिस्ट रहता गायब, नर्स की नहीं सुविधा
सेंट्रल जेल में वारदात हुई तो बंदियों का फिर से तड़पना तय है। क्योंकि जेल में उन्हें तुरंत उपचार नहीं मिलेगा। ट्रामा सेंटर पहुंचाने के लिए गार्द की अनुमति लेने तक इंतजार करना पड़ेगा। दो-दो मेडिकल अधिकारी सेंट्रल जेल में होने के बावजूद यह दवा तक देने में असमर्थ होंगे। क्योंकि सेंट्रल जेल में कार्यरत फार्मासिस्ट रोजाना पानीपत से अप डाउन करता है।
उमेश भार्गव, अंबाला शहर: सेंट्रल जेल में वारदात हुई तो बंदियों का फिर से तड़पना तय है। क्योंकि जेल में उन्हें तुरंत उपचार नहीं मिलेगा। ट्रामा सेंटर पहुंचाने के लिए गार्द की अनुमति लेने तक इंतजार करना पड़ेगा। दो-दो मेडिकल अधिकारी सेंट्रल जेल में होने के बावजूद यह दवा तक देने में असमर्थ होंगे। क्योंकि सेंट्रल जेल में कार्यरत फार्मासिस्ट रोजाना पानीपत से अप डाउन करता है। बृहस्पतिवार शाम सेंट्रल जेल में जब गैंगवार हुआ तो फार्मासिस्ट नदारद था। इतना ही नहीं यहां पर कोई नर्स भी तैनात नहीं है। बता दें कि बिना फार्मासिस्ट के डॉक्टर चाह कर भी मरीज को दवा नहीं दे सकते। इसी तरह इंजेक्शन, नीडल आदि उपलब्ध करवाना भी फार्मासिस्ट का काम होता है। नियमानुसार सेंट्रल जेल में कार्यरत फार्मासिस्ट बिना बताए स्टेशन नहीं छोड़ सकता, लेकिन यहां तो रोजाना पानीपत से अप डाउन हो रहा है। इस पर आज तक न तो सेंट्रल जेल अधिकारियों ने कोई आपत्ति जताई न ही सिविल सर्जन ने। यही कारण है कि फार्मासिस्ट अपनी मर्जी से आता-जाता है।
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डॉक्टर बोले- जेल में एमएलआर काटना पक्षपातपूर्ण
सेंट्रल जेल मेडिकल अधिकारियों और ट्रामा सेंटर में ऑन ड्यूटी डाक्टरों में हुए विवाद के दौरान जेल के मेडिकल अधिकारियों ने तर्क दिया कि यदि हम जेल में रहकर बंदियों और कर्मियों के एमएलआर (मेडिको लीगल रिपोर्ट) काटते हैं तो ऐसा करना पक्षपातपूर्ण होगा। क्योंकि बंदी कभी भी आरोप लगा सकते हैं कि डॉक्टर ने किसी के दबाव में ऐसा किया है। सेंट्रल जेल के मेडिकल अधिकारियों ने यहां तक कह दिया कि उनकी तो एमएलआर काटने तक की पावर नहीं है। जब वह न तो एमएलआर काट सकते और न ही उनकी ऐसा करने की पावर है तो फिर उनकी वहां ड्यूटी का क्या औचित्य है इसका जवाब तो अभी तक सिविल सर्जन अंबाला भी नहीं दे सके।
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जेल में ऑनलाइन एमएलआर की नहीं सुविधा
हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि जिस भी मरीज की एमएलआर कटती है उसे ऑनलाइन किया जाए। लेकिन सेंट्रल जेल में आज तक यह सुविधा भी मौजूद नहीं है। इस आड़ में भी डॉक्टरों ने वहां एमएलआर काटने से इंकार कर दिया।
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टांके लगाने के लिए नीडल हो गई खत्म
गैंगवार में घायल बंदियों को जब सेंट्रल जेल के डॉक्टर टांके लगाने लगे तो केवल एक ही बंदी को वह टांके लगा पाए थे। इसके बाद टांके लगाने के लिए नीडल ही खत्म हो गई। हैरत की बात यह है कि क्या सेंट्रल जेल में एक ही नीडल थी? क्योंकि एक नीडल से एक ही मरीज के टांके सीले जा सकते हैं। इसके बाद उसे दोबारा इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
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जेल में ही प्रिट होते हैं एमएलआर रजिस्टर
सेंट्रल जेल में ही एमएलआर रजिस्टर प्रिट होते हैं। लेकिन यहीं पर एमएलआर रजिस्टर मेडिकल अधिकारियों के पास मौजूद नहीं था। ऐसे में सवाल यह उठते हैं कि आखिर जेल में मौजूद दोनों मेडिकल अधिकारियों का ध्यान इस तरफ क्यों नहीं गया? क्यों ऐसी नौबत आइ कि जेल मेडिकल अधिकारियों को यह कहना पड़ा कि उनके पास तो एमएलआर रजिस्टर ही नहीं हैं?
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सेंट्रल जेल में एमएलआर रजिस्टर तो प्रिट होते हैं लेकिन बिना अनुमति के उन्हें हम इस्तेमाल नहीं कर सकते। एक साथ ज्यादा बंदियों को चोटें आई थी इसीलिए जेल के अंदर ही तीन डाक्टरों को बुलाने का प्रयास किया गया था।
लखबीर सिंह, जेल अधीक्षक।