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एंकर::: मोटे अनाज की राह में एमएसपी बनी रोड़ा

आढ़तियों की मनमानी से बचने को किसान गेहूं-धान की कर रहे खेती 82 हजार हेक्टेयर में महज एक हजार हेक्टेयर में ही की जाती है दलहल की खेती।

By JagranEdited By: Published: Mon, 02 Sep 2019 07:17 AM (IST)Updated: Mon, 02 Sep 2019 07:17 AM (IST)
एंकर::: मोटे अनाज की राह में एमएसपी बनी रोड़ा
एंकर::: मोटे अनाज की राह में एमएसपी बनी रोड़ा

जागरण संवाददाता, अंबाला शहर: धान की फसल में दिनों-दिन बढ़ रहे खर्च से परेशान किसान मोटे अनाज की खेती करना चाहते हैं। लेकिन मोटे अनाज की राह में एमएसपी रोड़ा बन रही है। जब किसान गेहूं-धान को छोड़कर दूसरी फसल उगाना चाहते हैं तो उनकी फसल की मंडी में उचित दाम पर खरीद नहीं होती, बल्कि मजबूरी में किसानों को औने-पौने दामों पर अपनी फसल बेचनी पड़ती है। यही वजह है कि जिला में 82 हजार हेक्टेयर में से महज एक हजार हेक्टेयर में ही दलहन की खेती हो रही है।

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बलाना गांव के किसान इंद्रजीत सिंह, नैब सिंह, हरमिद्र सिंह, साहब लदाना, हरपाल मिर्जापुर, अवतार बेगोमाजरा, सुखदेव जलबेहड़ा ने बताया कि अगर किसान गेहूं और धान के अलावा दूसरी फसलों की खेती करते हैं तो उक्त फसल की सही कीमत नहीं मिलती। क्योंकि सरकारी खरीद न होने के कारण मंडी में आढ़ती मनमाने रेट लगाते हैं। जिस कारण किसान को नुकसान होता है। दूसरा उन फसलों की पैदावार भी कम होती है। खुद के लिए भी खरीद कर खाते हैं किसान

दलहल, सरसों का तेल वगैरह कभी किसान अपने खेत में खुद फसल से ले लेते थे। खेत में ही मूंग, उडद आदि दालों की फसल उगा लेते थे। जिन्हें अपने घर में रखने के बाद जो बच जाती थी उसे बेच देते थे। ऐसे ही सरसों से उसका तेल निकलवाकर अपने लिये बिना मिलावट का तेल इस्तेमाल कर लेते थे। लेकिन अब अपने लिये भी दुकान से ºरीद कर ला रहे हैं। जिला में 400-500 हेक्टेयर में चन्ना, मसरी और 400-500 हेक्टेयर में ही मूंग, उडद की खेती की जाती है। करीब 12 हजार हेक्टेयर में गन्ना की खेती की जाती है। किसानों ने बताया इस बार गन्ना मिल ने पेमेंट के लिए किसानों को परेशान किया। ऐसे में आने वाले समय में गन्ना में भी कमी आ सकती है। 1985 के बाद बदले हालात

जलबेहड़ा के किसान सुखविद्र सिंह ने बताया कि 1985 तक क्षेत्र के किसान मक्की, सब्जी, कपास और गेहूं की खेती करते थे। लेकिन बाद किसानों की फसलों की अनदेखी होने लगी। जिस कारण किसानों को मजबूरी में समय की मांग और हालातों से समझौता करना पड़ा। इतना ही नहीं अंबाला-पंचकूला क्षेत्र में भारी मात्रा में चन्ना का उत्पादन होता था।


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