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सिविल अस्पताल में जीवनरक्षक दवाओं और बजट का अकाल

मरीजों को जीवनदान देने वाले जिला नागरिक अस्पताल में जीवन रक्षक दवाओं का अकाल पड़ गया है। मनोरोगियों को दिए जाने वाली लगभग सभी दवाएं भी खत्म हो चुकी हैं।

By JagranEdited By: Published: Mon, 22 Apr 2019 09:58 AM (IST)Updated: Mon, 22 Apr 2019 09:58 AM (IST)
सिविल अस्पताल में जीवनरक्षक दवाओं और बजट का अकाल
सिविल अस्पताल में जीवनरक्षक दवाओं और बजट का अकाल

उमेश भार्गव, अंबाला शहर: मरीजों को जीवनदान देने वाले जिला नागरिक अस्पताल में जीवन रक्षक दवाओं का अकाल पड़ गया है। मनोरोगियों को दिए जाने वाली लगभग सभी दवाएं भी खत्म हो चुकी हैं। उल्लेखनीय है कि मनोरोगियों को दी जाने वाले दवाएं आसानी से बाहर भी नहीं मिलती, क्योंकि इन पर सरकार ने ही रोक लगाई है। दैनिक जागरण की पड़ताल में इस बात से पर्दा उठा। एक-दो दिन नहीं एक माह से यह दवाएं अस्पताल में नहीं है। इसका असर अब साफ तौर पर अस्पताल में आने वाले मरीजों की संख्या पर भी पड़ने लगा है। अस्पताल में पिछले करीब चार दिनों की ओपीडी घट गई है। हालांकि पहले डाक्टर लोकल स्तर पर खरीद कर रहे थे लेकिन अब लोकल खरीद के लिए भी बजट खत्म हो चुका है। हालात यह हैं कि पहले से लोकल स्तर पर खरीदी गई करीब 20 फीसद दवाओं के बिलों का भुगतान भी नहीं हो सका है। इसीलिए लोकल डीलरों ने भी दवा देनी बंद कर दी हैं।

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मशीनें खराब हुई तो नहीं होगा इलाज

जिला नागरिक अस्पताल में लगी एक्सरे मशीन, अल्ट्रासाउंड मशीन, सीटी स्कैन मशीन, सिक न्यू बोर्न यूनिट में लगाई गई बच्चों को रखने की मशीनें, लैब में टेस्ट में इस्तेमाल होने वाली मशीनें, आपरेशन थियेटर में होने वाली मशीन सीआरएम इत्यादि मशीन इन सभी की समय-समय पर मरम्मत की जरूरत होती है। इसके लिए हर साल सरकार बजट जारी करती है लेकिन इस बार अभी तक यह बजट भी जारी नहीं हुआ। ऐसे में आपरेशन थियेटर की मशीन खराब हुई तो उसकी मरम्मत ही नहीं हो सकेगी। यही हालत एक्सरे और अल्ट्रासाउंड मशीनों की होने से इनसे जुड़े मरीजों को भी परेशानियां झेलनी पड़ेंगी।

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एसेंसल ड्रग लिस्ट में शामिल दवाएं भी खत्म

नारकोटिक दवाएं जोकि मनोचिकित्सक मनोरोगियों के लिए लिखते हैं वह सारी खत्म हो चुकी हैं। जैसे ट्रामाडोल। हालांकि यह दर्द निवारक दवा है। लेकिन यह बाहर से नहीं मिलती। इसी तरह सामान्य बुखार व बीमारियों में इस्तेमाल होने वाली एंटी बायोटिक दवाएं जैसे अमोक्सिक्लेव, अजीथरोमाइसिन, रिसपैरीडोन, क्लोनाजीपाम, लिवोफ्लोक्सिन, प्रोपेनालोल यह भी खत्म हो चुकी हैं। इसी तरह हड्डियों के डाक्टर दर्द के लिए एसीप्लोफिनेथ, थायोकोलसिकोसाइट, डाइक्लोजेल ट्यूब, गर्म पट्टियां इत्यादि लिखते हैं लेकिन यह दवाएं भी यहां नहीं हैं।

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गर्भवती और बच्चों के लिए भी नहीं हैं दवाएं

लेक्टोलूज सिरिप यह एक ऐसी दवा है जिसका ज्यादा इस्तेमाल कब्ज से छुटकारे के लिए किया जाता है। गर्भवती महिलाओं को अकसर यह दवा दी जाती है। बाहर से यह दवा करीब 100 रुपये की मिलती है। आमतौर पर यह दवा स्टॉक में आती है लेकिन यह करीब दो माह से खत्म है। इसी तरह छोटे बच्चों को दी जाने वाली विटामिन डी ड्रोप, मल्टी-विटामिन ड्रोप भी नहीं हैं। माताएं छोटे-छोटे बच्चों को लेकर एक घंटे तक खिड़की पर अपने नंबर आने का इंतजार करती हैं बाद में पता चलता है कि यह तो दवाएं हैं ही नहीं।

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तीन माह बाद मिलेगा वेतन

आउट सोर्सिंग के तहत जिला नागरिक अस्पताल में लगे करीब 100 कर्मियों का पिछले तीन माह से वेतन नहीं मिला, क्योंकि बजट ही नहीं आया था। लेकिन अब सरकार ने 9.22 करोड़ रुपये का बजट जारी कर दिया है। संभवत: सोमवार को वेतन खाते में डाल दिया जाएगा।

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शराब छुड़वाने के लिए मेरा इलाज डॉ. कर्ण राणा के पास चल रहा है। डाक्टर ने चार दवाएं लिखी हैं। अंदर से केवल दो ही मिलीं। खिड़की पर जाते हैं तो वह कहते हैं कि बाकि दवाएं हमारे पास नहीं हैं।

तरसेम सिंह, जंडली।

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मेरे दिमाग का इलाज डॉ. कर्ण सिंह राणा के पास चल रहा है। हमारी इतनी हैसियत नहीं है कि बाहर से इलाज करवा सकें। सरकारी अस्पताल से तो एक-दो दवाएं ही मिलती हैं। ज्यादातर दवाएं बाहर से लेनी पड़ रही हैं।

पूनम, कंचघर।

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मेरा और मेरी पत्नी के हार्ट का इलाज डॉ. अर्पिता कर रहीं हैं। महीने में 3-4 चक्कर लगते हैं। हर बार अस्पताल से मुझे एक दवा मिलती है जबकि छह दवाएं बाहर से। मेरी पत्नी की दो दवाएं मिलती हैं और चार बाहर से लेनी पड़ती हैं।

भरत लाल, पंजोखरा।

-------------------- मैं अपने पति और बहन की यहां से दवा लेने आती हूं। यहां केवल डाक्टर ही बिठाए गए हैं। केवल इक्का-दुक्का दवा मिलती हैं और कुछ नहीं। सरकार की मुफ्त दवाएं और इलाज के दावे यहां फेल हैं।

रेनू, छावनी।

--------------- हमें एक ही दवा यहां से मिलती है। बाकि हर 10 दिन बाद 1100 रुपये की दवा बाहर से खरीदनी पड़ती है। सरकार की और से जो दवाएं आ रही हैं उसमें सेंटर और स्टेट दोनों की हिस्सेदारी रहती है। फिर भी दवाएं क्यों नहीं मिल रही इसकी जांच होनी चाहिए।

जोगिद्र सिंह, चुडियाली।

----------- पति प्राइवेट जॉब करते हैं। बच्चे का इलाज सिविल अस्पताल में चल रहा है। आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है फिर भी ज्यादातर दवाएं मुझे बाहर से खरीदनी पड़ती हैं। प्रशासन को इस तरफ ध्यान देना चाहिए।

श्वेता, तंदुरा बाजार।

--------------- दवाओं के लिए सरकार ने जो बजट पहले भेजा था उसका यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट हमने भेज दिया है। उम्मीद है कि जल्द ही दवाओं की खरीद के लिए विभाग बजट जारी कर दिया जाएगा। मशीनों की वार्षिक मरम्मत के बजट भी जल्द ही जारी होने की उम्मीद है। आउटसोर्सिंग पर लगे कर्मियों का 9.22 करोड़ रुपये बजट आ चुका है। सोमवार से हम वेतन देना शुरू कर देंगे।

डॉ. संत लाल वर्मा, सिविल सर्जन।


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