झकझोर देती है इन 26 बच्चों की दास्तां, जानें माता-पिता जिंदा फिर भी वे क्यों हैं अनाथ
अंबाला के मसी्र होम में रह रहे 26 बच्चों की दास्तां दिल झकझोर देने वाली है। ये बच्चे माता-पिता के जीवित होते हुए भी अनाथ हैं।
अंबाला शहर, [उमेश भार्गव]। यहां मर्सी हाेम में रहे 26 बच्चों की कहानी दिल को झकझोर देती है। ये बच्चे माता-पिता के जीवित होते हुए अनाथ हैं। माता-पिता के होते हुए भी मर्सी होम में मासूमों को अनाथ बनाकर रखा जा रहा था। इन बच्चों को यहां से दूसरे जिलों के शेल्टर होम में शिफ्ट किया गया है। इन सभी के माता-पिता जीवित हैं, लेकिन ये छोटे बच्चे इससे अनजान हैं। यहां रहने वाले 6-7 लड़के-लड़कियों की उम्र 18 से 21 वर्ष और छह से ज्यादा की उम्र 13 से 17 वर्ष के बीच है।
सभी बच्चों के जिंदा हैं माता-पिता, बिना रजिस्ट्रेशन रखे जा रहे थे मासूम
इन लड़के-लड़कियों को शिफ्ट किया जाने लगा तो ज्यादातर के माता-पिता मर्सी होम पहुंच गए। नेपाल की मनकला अपनी 21 साल की बेटी रीधिका और 14 साल के बेटे एलिया को लेने पहुंची तो फरीदाबाद से भगवानदास अपनी 14 साल की बेटी नेहा और 21 साल के बेटे रवि को लेने पहुंचे। अंबाला शहर निवासी सिमरण अपनी 13 साल की बेटी आंचल और 10 साल के बेटे अभिजीत को ले जाना चाहते थे।
छावनी एयर फोर्स स्टेशन एरिया की पुष्पा अपनी 15 साल की बेटी भारती और 12 साल की बेटी पलक को, उषा अपनी बेटे राम और श्याम को, ऋषिकेश (उत्तराखंड) की शीला 17 वर्षीय बेटी मारथा और चार साल के पौते अभय को लेने पहुंची। कुछ अभिभावक रास्ते में थे। सभी गरीब परिवारों से हैं।
सीडब्ल्यूसी भी करती रही इंतजार
मर्सी होम बगैर पंजीकरण के चलते रहा, लेकिन जिला बाल कल्याण समिति और जिला बाल संरक्षण अधिकारी हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे। उन्हें पता था कि यहां 18 साल से ज्यादा उम्र के लड़के और लड़कियों तक को एक साथ रखा जा रहा है फिर भी कोई कार्रवाई नहीं की गई।
क्या है बच्चों को रखने के नियम
जेजे एक्ट के अनुसार किसी भी चाइल्ड केयर होम में बच्चों को बिना जिला बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) की अनुमति के नहीं रखा जा सकता। बच्चा मिलने पर पहले उसे सीडब्ल्यूसी के समक्ष पेश किया जाएगा। वही तय करेगी कि बच्चे को कहां भेजा जाना है।
चाइल्ड लाइन दो-दो, चाइल्ड केयर इंस्टीट्यूट कोई नहीं
अंबाला में दो-दो चाइल्ड लाइन बना दी गई। जिला युवा विकास संगठन की ओर से संचालित चाइल्ड लाइन पिछले 10 वर्षों से चल रही है। रेलवे के लिए नई चाइल्ड लाइन बना दी गई। इसीलिए अब धड़ाधड़ बच्चे मिल रहे हैं लेकिन इन बच्चों को रेस्क्यू करने के बाद रखा कहां जाए इसकी आज तक कोई व्यवस्था नहीं कर पाया। इसी का फायदा मर्सी होम जैसी संस्थाएं उठाती हैं।
जब मासूमों को गुरुद्वारे में दिया गया आसरा
मर्सी होम में विदेशी लोग भी पहुंचते थे। उन्हें दिखाया जाता था कि यहां अनाथ बच्चों को रखा जा रहा है। इसके बाद विदेशी उन्हें आर्थिक सहायता उपलब्ध कराते थे। कुछ समाजसेवी भी खाने-पीने की वस्तुएं और आर्थिक मदद भी देते थे।
13 बच्चों को पकड़ा था
करीब तीन माह पहले सीडब्ल्यूसी और डीसीपीओ की संयुक्त कार्रवाई में 13 बच्चों को बाल मजदूरी करते हुए पकड़ा गया। जगह नहीं मिलने पर उनको गुरुद्वारे में रखा गया।
पिछले एक सप्ताह के प्रमुख केस
जिला युवा विकास संगठन की चाइल्ड लाइन को अाठवीं कक्षा की बच्ची मिली। यह बच्ची नोएडा में क्राइम पेट्रोल देखकर घर से भागी थी। इसी दिन रेलवे चाइल्ड लाइन को तीन बच्चे मिले थे। इनमें एक को कोई उसके घर से भगाकर लाया था तो एक लड़की अंबाला छावनी में घर से भागी थी।
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प्रदेश में सबसे ज्यादा केस अंबाला चाइल्ड लाइन के
प्रदेश में सबसे ज्यादा ट्रेनों का ठहराव अंबाला में होता है। यहां से रोजाना 325 ट्रेनें निकलती हैं। इन्हीं ट्रेनों के जरिए बच्चों को इधर से उधर भी किया जाता है। यही कारण है कि प्रदेश में सबसे ज्यादा केस अंबाला चाइल्ड लाइन में हैं। गत वर्ष जिला युवा बाल संगठन की रेलवे चाइल्ड लाइन की टीम के पास 594 बच्चों के केस आए। नवंबर 2018 तक 425 केस चाइल्ड लाइन और 60 केस रेलवे चाइल्ड लाइन को मिल चुके हैं। इसके बावजूद जिले में कोई भी शेल्टर होम नहीं है।
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'' सभी बच्चों के माता-पिता जीवित हैं। मर्सी होम में सभी अपनी मर्जी से बच्चों को छोड़कर गए थे। उनका रो-रोकर बुरा हाल है। प्रशासन ने हमारे साथ ज्यादती की है। जिनके खिलाफ हमने शिकायत दी हुई थी उनके हाथों में ही बच्चों की सुरक्षा का जिम्मा दिया हुआ है। हम हाईकोर्ट में अपील करेंगे। जरूरत पड़ी तो सुप्रीम कोर्ट भी जाएंगे।
- फिलिप मसीह, मर्सी होम के संचालक।