26 साल की कानूनी लड़ाई में बब्याल वासियों को झटका
अंबाला के बब्याल वासियों से लीज पर ली गई अरबों रुपये की बेशकीमती जमीन के मुआवजे को लेकर करीब 26 साल से चल रही कानूनी लड़ाई में अब फिर से मामला अटक गया है।
उमेश भार्गव, अंबाला शहर
ब्रिटिश सरकार द्वारा बब्याल वासियों से लीज पर ली गई जमीन अब सरकार और बब्याल वासियों के लिए जी का जंजाल बन गई है। अरबों रुपये की बेशकीमती जमीन के मुआवजे को लेकर करीब 26 साल से चल रही कानूनी लड़ाई में अब फिर से पेंच अटक गया है। निचली कोर्ट के फैसले से उत्साहित बब्याल वासियों को उम्मीद थी कि हाईकोर्ट से भी उनके हक में फैसला आएगा। लेकिन यहां इसके विपरीत हुआ। हाईकोर्ट ने बब्याल वासियों को झटका देते हुए इस केस को फिर से निचली अदालत में भेज दिया। अलबत्ता वर्ष 2008 में जहां से याचिकर्ता चले थे अब उन्हें फिर वहीं से लड़ाई लड़नी होगी। अब अंबाला की अतिरिक्त जिला न्यायालय को तय करना होगा कि बब्याल वासियों को हजारों एकड़ जमीन का मुआवजा भारत सरकार देगी या नहीं।
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छावनी के हजारों लोग जुड़े हैं इस फैसले से
कोर्ट के इस फैसले से छावनी के हजारों लोग जुड़े हैं। बता दें कि पूरी अंबाला छावनी बब्याल की जमीन पर बसी है। सीधे तौर पर इस समय कोर्ट के इस फैसले से गांव छबियाना, महेश नगर, गांव बब्याल, बोह, कलारेहड़ी, टूंडला, टूंडली, धनकौर, गरनाला, बरनाला, धूलकोट, जंडली, अंबाला जगाधरी रोड को छूती जमीन से जुड़े हुए लोग प्रभावित होंगे।
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143 लोगों ने कोर्ट में डाली थी मुआवजे के लिए याचिका
जानकारी के अनुसार 1843 में ब्रिटिश सरकार ने बब्याल वासियों से 99 साल के लीज पर जमीन ली थी। आजादी से पहले यह लीज खत्म हो गई थी। इसे आजादी के बाद भी नहीं बढ़ाया गया। आजाद भारत में अंबाला के पहले डीसी के सामने भी यह मामला उठाया गया। लेकिन लीज बढ़ाने और जमीन वापस करने की फाइल आगे नहीं सरक सकी। न केवल बब्याल बल्कि टूंडला, परेड, तोपखाना समेत अपनी जमीन का दुखड़ा तत्कालीन सांसद सूरजभान के समक्ष भी उठाया था। मामला दिल्ली तक भी पहुंचा लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया। इस तरह करीब 1992 में हरी देवी एंड अदर्स 143 बब्यालवासियों ने निचली अदालत का दरवाजा खटखटाते हुए याचिका दायर कर दी।
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क्यों दोबारा निचली अदालत में हाईकोर्ट ने भेजा मामला
अतिरिक्त जिला न्यायालय ने 3 मई 2008 में इस मामले में फैसला दे दिया। लेकिन यह फैसला अस्पष्ट था। उस समय सरकार ने कोर्ट के सामने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि उन्होंने याचिका डालने वाले सभी 143 लोगों के दादा-परदादा को जमीन का मुआवजा दे दिया था। लेकिन कोर्ट में सरकार कोई भी रसीद नहीं दिखा पाई। इस पर निचली अदालत ने 3 मई को फैसला देते हुए कहा कि या तो सरकार एक साल के भीतर सभी रसीद दिखा दे वरना बब्याल वासियों के साथ बैठकर इस केस का सेटलमेंट करते हुए उन्हें मुआवजा दे दिया जाए। एक साल के भीतर ऐसा नहीं होता तो बब्यालवासी जिला न्यायालय में अपील कर सकते हैं।
इस तरह कोर्ट न तो सरकार के पक्ष में फैसला दिया न ही बब्याल वासियों के पक्ष में। हाईकोर्ट ने इसी कारण पूरे मामले को दोबारा निचली अदालत में भेज दिया। हाईकोर्ट ने कहा कि अतिरिक्त जिला न्यायालय इस मामले में आन मेरिट सुनवाई करते हुए फैसला दे।
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इन गांव की जमीन पर बसी है छावनी
बरनाला, गरनाला, टूंडला, टूंडली, बोह, बब्याल, करधान, मच्छौंडा, मच्छौड़ी, शेखोपुर, दुधला, कांवला, जंडली, धनकौर समेत अन्य 18 गांव थे जिनसे ब्रिटिश सरकार ने 99 साल लीज पर यह जमीन ली थी। इसी जमीन पर पूरी छावनी बसी है।
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फोटो: 17
कानूनी विशेषज्ञ की राय
हाईकोर्ट के निर्देशों में साफ है कि यह मामला दोबारा निचली अदालत में भेज दिया गया है। क्योंकि 3 मई 2008 को अतिरिक्त जिला न्यायालय ने यह फैसला दिया था कि इस मामले को डिफेंस सचिव के पास डिसाइड करने के लिए भेज दिया था। अगर वह एक साल में डिसाइड नहीं करता तो वह दोबारा जिला न्यायालय में अपील कर सकते हैं। लेकिन सरकार हाईकोर्ट में चली गई। अब हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को उचित नहीं मानते हुए दोबारा ऑन मेरिट केस देखने और फैसला देने के लिए भेज दिया है।
तरुण कालड़ा, एडवोकेट।