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चार दशक बाद भी लोगों रेल के दर्शन नहीं

चंडीगढ़-वाया नारायणगढ़-यमुनानगर तक रेल लाइन बिछाने की घोषणा हुई लेकिन चार दशक बाद भी लोग रेल की छुक छुक सुन नहीं पाए हैं।

By JagranEdited By: Published: Sun, 14 Apr 2019 10:38 AM (IST)Updated: Mon, 15 Apr 2019 06:37 AM (IST)
चार दशक बाद भी लोगों रेल के दर्शन नहीं
चार दशक बाद भी लोगों रेल के दर्शन नहीं

दीपक बहल, अंबाला

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रेलवे बजट में कई बार चंडीगढ़-वाया नारायणगढ़-यमुनानगर तक रेल लाइन बिछाने की घोषणा हुई लेकिन चार दशक बाद भी लोग रेल की छुक छुक सुन नहीं पाए हैं। बजट में घोषणा के बाद चंडीगढ़ से यमुनानगर तक सर्वे भी हुआ, जिसके बाद लाइन बिछाने के लिए बुर्जियां तक लगा दी गईं लेकिन रेलवे इसे घाटे का सौदा मानती रही, जिस कारण मामला आज तक सिरे नहीं चढ़ सका। करीब 91 किलोमीटर के इस प्रोजेक्ट पर 876 करोड़ रुपये खर्च होने हैं। राजनीति में लटके रहे इस प्रोजेक्ट पर लोगों की निगाहें रही हैं। पिछली राज्य सरकार इस प्रोजेक्ट के लिए निशुल्क जमीन देने को तैयार नहीं थी, जबकि कुछ अन्य पेंच भी रहे। मौजूदा सरकार के समय भी लाइन बिछाने के लिए राज्य और केंद्र सरकार के बीच काफी पत्राचार हुआ लेकिन अभी तक मामला कागजों से बाहर नहीं आ पाया है।

ख्वाब बनकर रह गई योजना

पिछले करीब चार दशक से यमुनानगर-चंडीगढ़ रेल लाइन बिछने का अरमान ख्वाब ही बनकर ही रह गया। इस महत्वाकांक्षी परियोजना पर चार दशक पहले सर्वे तो हुआ, लेकिन आगे रेलवे लाइन बिछाने की दिशा में कदम नहीं बढ़ सके हैं। इस रेललाइन के धरातल पर आने से न सिर्फ यमुनानगर, बल्कि अंबाला, पंचकूला और चंडीगढ़ के लोगों को भी फायदा होगा। इस सौगात के लिए दशकों से इंतजार कर रहे युवा बुजुर्ग हो चले हैं, लेकिन यमुनानगर-चंडीगढ़ रेल लाइन प्रोजेक्ट अब भी कागजों में अटका है। इस रेल लाइन की जब से मांग की जा रही है, तब से अंबाला संसदीय सीट से कांग्रेस व भाजपा के सांसद बनते रहे हैं, फिर भी यह महत्वाकांक्षी परियोजना कागजों में अटकी है।

अंबाला ही नहीं यमुनानगर की भी रही है डिमांड

इस रूट पर लाइन बिछाने के लिए रेलवे ने कई बार सर्वे किया। यह लाइन पंचकूला से नारायणगढ़ के किन रूटों पर आएगी, इसको लेकर नक्शे में कई बार बदलाव किया गया। इस लाइन के बिछ जाने से चंडीगढ़ व पंचकूला के अलावा यमुनानगर व जगाधरी के लोगों को भी फायदा होता। यमुनानगर-जगाधरी औद्योगिक शहर है। जगाधरी में मेटल की हजारों फैक्ट्रियां हैं, जिसमें बर्तन समेत अन्य सामान बनता है। बर्तनों और मेटल, एल्यूमिनियम समेत अन्य धातु के सामान के लिए कच्चा माल दिल्ली, राजस्थान, मुंबई से आता है। अभी दिल्ली तक तो यह सामान ट्रेन से आ जाता है, लेकिन आगे ट्रकों में कच्चा माल यमुनानगर लाया जाता है। उद्योगपतियों की मानें तो अगर करनाल-यमुनानगर लाइन बन जाती है तो यमुनानगर सीधे दिल्ली रेल लाइन से जुड़ जाएगा।

इस कारण से लटका रहा मामला

यमुनानगर से चंडीगढ़ वाया नारायणगढ़ के लिए रेल लाइन भी प्रस्तावित है। इसका सर्वे हो चुका है और जमीन एक्वायर की प्लानिग बन चुकी है। पेंच सिर्फ अधिग्रहित जमीन के मुआवजे पर फंसा है। राज्य सरकार चाहती है कि मुआवजा केंद्र सरकार दे और केंद्र चाहता है कि राज्य सरकार मुआवजा दे। इसको लेकर सीएम और सांसद ने रेल मंत्री से मुलाकात की थी। चर्चा है कि इसमें मुआवजा 50-50 प्रतिशत देने पर बात हुई है। 875 करोड़ की इस परियोजना पर अभी अंतिम मोहर लगनी बाकी है।

यह कहते हैं लोग

रेलवे के इस प्रोजेक्ट के बारे में दो बार आरटीआइ मांगी थी। पहली आरटीआई में नीति आयोग ने जवाब दिया था कि हरियाणा सरकार को नारायणगढ़ रेलवे के कुल खर्च का पचास प्रतिशत वहन करने एवं जमीन उपलब्ध करवाने को कहा था, लेकिन हरियाणा सरकार ने कोई जवाब नहीं दिया। इस कारण प्रोजेक्ट रद कर दिया गया। बाद में इस प्रोजेक्ट के लिए 25 करोड़ रुपये मंजूर किए गए, लेकिन मामला आगे नहीं बढ़ पाया। आज भी लोगों को इस रेल लाइन का इंतजार है।

- सुखविदर नारा, एडवोकेट

रेलवे लाइन का मुद्दा बहुत पुराना है जोकि हमारे बुजुर्गों के समय से चला आ रहा है। रेलवे लाईन के बनने से जहां व्यापार को गति मिलेगी वहीं ग्राहकों को भी सस्ती वस्तुएं उपलब्ध हो पाएंगी। इस मुददे को लेकर क्षेत्र के व्यापारियों ने कई बार आवाज भी उठाई लेकिन आज तक नारायणगढ़ रेलवे लाईन से महरूम रहा है। अब इस प्रोजेक्ट का क्या होगा कुछ कह नहीं सकते, लेकिन अभी उम्मीद तो है।

- सुशील अग्रवाल, प्रधान किराना एसोसिएशन

हर साल रेल लाइन बिछवाने के दावे किए जाते हैं लेकिन धरातल पर कुछ नहीं हुआ। रेल लाइन बिछ जाने से जहां क्षेत्र के युवाओं को रोजगार मिलेगा वहीं कारोबार भी बढ़ेगा। पिछले जितने भी सांसद बने वह इस मामले पर खरे नहीं उतर सकें।

संजीव वर्मा, पूर्व नगरपालिका चेयरमैन

नारायणगढ़ सब से पुरानी तहसील है और यह इलाका गरीब व पिछड़ा हुआ है। यहा रेल लाइन की मांग बहुत पुरानी है। रेल लाईन के आने पर इलाके का बहुत विकास होना था। कारखाने लगते जिससे स्थानीय लोगों को रोजगार मिलता और इलाके की आर्थिक वृद्धि होती। यहां से इलाके के विधायक रहे वह मंत्री भी बने लेकिन इस मुद्दे पर कुछ नहीं हुआ। कांग्रेस से कुमारी सैलजा और भाजपा से रतनलाल कटारिया सांसद रहे, दोनों ने वायदे किए पर लाइन नहीं बिछी।

-अमरनाथ धींगड़ा।


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