इस साल 50 हजार पौधे कम वितरित करेगा वन विभाग
मानसून सीजन में वन विभाग इस बार पौधरोपण के लिए करीब पचास हजार पौधे कम वितरित करेगा। आंकड़े बताते हैं कि पौधों के जीवित रहने का प्रतिशत 70 के आसपास है जबकि इस में सबसे बड़ा योगदान सामाजिक संस्थाओं शिक्षण संस्थाओं का है।
- 2.18 लाख पौधे शिक्षण संस्थान व सामाजिक संस्थाओं को किए जाएंगे वितरित
- वन विभाग के आंकड़ों में हर बार पौधों के पनपने का प्रतिशत 70, अभी और देखभाल की जरूरत जागरण संवाददाता, अंबाला : मानसून सीजन में वन विभाग इस बार पौधरोपण के लिए करीब 50 हजार पौधे कम वितरित करेगा। आंकड़े बताते हैं कि पौधों के जीवित रहने का प्रतिशत 70 के आसपास है, जबकि इसमें सबसे बड़ा योगदान सामाजिक और शिक्षण संस्थाओं का है। इसी को लेकर वन विभाग अपनी तैयारी कर रहा है। खासकर वे पौधे लगाने की योजना है जो एक सीजन के बाद अपने आप संभल जाते हैं और देखभाल की जरूरत ज्यादा नहीं है। इस बार त्रिवेणी (नीम, बरगद, पीपल) सहित फलदार और छायादार पौधे लगाए जाएंगे, लेकिन प्रोटेक्टेड साइट पर किए गए पौधारोपण पर खास नजरें रहेंगी।
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यह है विभाग की तैयारी
वन विभाग द्वारा मानसून सीजन में हर साल लाखों पौधे रोपे जाते हैं। बीते साल विभाग की ओर से सात लाख पौधे वितरित किए गए थे, जबकि इस बार लक्ष्य साढ़े छह लाख पौधों का है। इनमें से विभाग 1.10 लाख पौधे जहां शिक्षण संस्थानों को वितरित करेगा, वहीं 1.08 लाख पौधे सामाजिक संस्थाओं को वितरित किए जाएंगे। इसके अलावा 4.32 लाख पौधे वन विभाग अपने स्तर पर रोपेगा।
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कुछ पौधे ऐसे, जिनको एक साल देखभाल की जरूरत
मानसून सीजन में कुछ पौधे ऐसे रोपे जाएंगे जिनको करीब एक साल तक अच्छी देखभाल की जरूरत रहती है। इसके बाद ये पौधे अपने आप सरवाइव (पनप) जाते हैं। इनमें नीम, पीपल, बरगद मुख्य हैं। माना जाता है कि एक पौधे को पनपने में तीन साल लगते हैं और यदि इस दौरान ध्यान न दिया जाए तो पौधा नहीं पनप पाता है।
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पौधरोपण के साथ ट्री गार्ड जरूरी
पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि यदि पौधरोपण किया जा रहा है तो इसके साथ ट्री गार्ड भी लगाए जाएं। इसके बिना ही पौधे रोप दिए जाते हैं तो उनके पनपने की संभावनाएं क्षीण हो जाती हैं।
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वर्जन
मानसून सीजन में पौधरोपण तो सही है, लेकिन उन पौधों का चयन किया जाए जिनमें देखभाल की जरूरत कम हो। इसके अलावा पौधरोपण के साथ-साथ इनकी देखभाल की जिम्मेदारी भी तय करनी होगी, सिर्फ पौधरोपण से बात नहीं बनेगी।
- डा. विकास कोहली, पर्यावरण विशेषज्ञ, अंबाला