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बचपन से परिवार के लिए मांगी भिक्षा, अब ई-रिक्शा थाम दिव्यांग बना मिसाल

कुछ लोग जहां थोड़ी मुश्किलों से ही घबरा जाते हैं तो कुछ उन्हीं मुश्किलों को अपनी ताकत बना लेते हैं। छावनी के रामबाग रोड निवासी 28 वर्षीय मगन कुमार की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। टांगों से दिव्यांग और पीठ पर कूबड़ होने के कारण कोई काम करने में असमर्थ हुआ तो 15 साल तक बाजारों में भीख मांगकर गुजारा किया।

By JagranEdited By: Published: Sun, 04 Aug 2019 09:25 AM (IST)Updated: Sun, 04 Aug 2019 09:25 AM (IST)
बचपन से परिवार के लिए मांगी भिक्षा, अब ई-रिक्शा थाम दिव्यांग बना मिसाल
बचपन से परिवार के लिए मांगी भिक्षा, अब ई-रिक्शा थाम दिव्यांग बना मिसाल

अंशु शर्मा, अंबाला: कुछ लोग जहां थोड़ी मुश्किलों से ही घबरा जाते हैं तो कुछ उन्हीं मुश्किलों को अपनी ताकत बना लेते हैं। छावनी के रामबाग रोड निवासी 28 वर्षीय मगन कुमार की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। टांगों से दिव्यांग और पीठ पर कूबड़ होने के कारण कोई काम करने में असमर्थ हुआ तो 15 साल तक बाजारों में भीख मांगकर गुजारा किया। सरकार से भी मदद की उम्मीद रखी, लेकिन कुछ नहीं हुआ। लेकिन अब हालातों को चुनौती देते हुए मगन कुमार ने ई-रिक्शा को अपना रोजगार का जरिया बना लिया है।

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दृढ़ इच्छाशक्ति के बूते अब मगन अपने परिवार के लिए अब दिन रात ई-रिक्शा चलाकर परिवार का पालन पोषण कर रहे हैं। जिन बाजारों में वह भिक्षा मांगते थे, उन्हीं बाजारों से वे जब ई-रिक्शा पर सवारियां बिठाकर निकलते हैं। हर कोई मगन का मुरीद हो चुका है और बाजार में हर कोई उसकी मदद को तैयार है।

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आठ छोटे भाई-बहनों का कर रहे पालन-पोषण

मगन ने 15 साल पहले पहले यूपी के बहराइच जिला से अंबाला आकर भीख मांगकर गुजारा शुरू किया था। लेकिन अपनी जिम्मेदारी से कभी भी पीछे नहीं हटे। दिनरात भीख मांगकर खुद के अलावा आठ छोटे भाई-बहनों को पढ़ाने लिखाने की जिम्मेदारी निभाई। मगन का कहना है कि कुछ समय पहले ही उसने भीख मांगना छोड़कर काम करनी की ठानी। शुरूआत में तो काम की तलाश में इधर-उधर भटका, लेकिन उसकी शारीरिक हालत को देखकर किसी ने काम नहीं दिया। आखिर में उसने सब कुछ अनदेखा कर ई-रिक्शा चलाने की सोची और उसी से गुजारा कर रहा है।

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किराए के रिक्शा से शुरू किया सफर

परिवार की आर्थिक स्थिति व शारीरिक अक्षमता के चलते स्थिति ऐसी नहीं थी कि ई-रिक्शा खरीद पाता, तो किराए की ई-रिक्शा के सहारे ही कमाई शुरू कर दी। मगन का कहना है कि भीख मांगकर की कमाई से हक के पैसे ज्यादा सुख देते हैं। जिदगी के उतार-चढ़ाव के बाद 15 साल बाद कहीं जाकर उसे जीवनभर कमाई ही राह चुनी है। मगन का कहना है कि वह सरकार से भी कई पर मदद की गुहार लगा चुके हैं, लेकिन नहीं मिली।

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