कथावाचक मोरारी बापू की प्रेरक शुरुआत, ‘बदनाम बस्ती’ से ‘पावन अयोध्या’ तक
संत मोरारी बापू ने अयोध्या में मानस गणिका प्रवचन कर उसमें मुंबई सहित कई शहरों की गणिकाओं को आमंत्रण देकर बुलाया। एक संत का यह प्रयास बड़े सामाजिक बदलाव का शंखनाद है।
अहमदाबाद, शत्रुघ्न शर्मा। रामायण में गंगा को पार करने के लिए राम का केवट से अनुरोध... नगरवधु वासंती की अंतिम इच्छा पूरी करने तुलसीदास जी का उसके घर जाकर रामचंद्र कृपालु भज मन की चौपाई सुना अध्यात्म की अनुभूति कराना... और बुद्ध का भिक्षाटन के लिए नगरवधु के घर जाना जैसी कई घटनाएं वर्षों पहले हुईं। लेकिन फिर ऐसा प्रयास किसी संत ने नहीं किया। जाने-माने कथावाचक मोरारी बापू ने प्रेरक शुरुआत की है।
नई शुरुआत है मानस गणिका प्रवचन
22 से 30 दिसंबर को धर्म नगरी अयोध्या में हुए मानस गणिका प्रवचन कर उसमें मुंबई सहित अन्य कई शहरों की गणिकाओं (सेक्स वर्कर) को उन्होंने आमंत्रण देकर बुलाया। यही नहीं, मंच के बगल बिठा कथा सुनाई। बतौर एक संत मोरारी बापू का यह प्रयास बड़े सामाजिक बदलाव का शंखनाद है। यह एक तरह की सामाजिक क्रांति है, जिसकी अगुआई धर्मध्वजा कर रही है।
बेहद संकोच में थीं गणिकाएं
जिस बाजार में सिर्फ पैसा और यौवन के लेन-देन के अलावा दूसरा कोई संबंध, कोई भावना, कोई लगाव न हो, वहां मानस गणिकाओं के लिए कथावाचन का आध्यात्मिक आमंत्रण लेकर जाने वाले मोरारी बापू ने देश व दुनिया को प्रभावी संदेश दिया है। दुनियाभर में रामकथा के लिए प्रसिद्ध मोरारी बापू खुद मुंबई के सबसे बड़े रेड लाइट एरिया कमाटीपुरा गए और सेक्सवर्कर बहनों को रामकथा सुनने का आमंत्रण दिया। शायद इस तरह के आमंत्रण की इन अभागी महिलाओं ने कभी कल्पना भी न की होगी। इससे पहले सूरत में रामकथा के दौरान बापू ने कथा मंडप में सूरत की सेक्सवर्कर बहनों को बुलाकर कथा सुनाने व पोथी का पूजन भी कराने की इच्छा जताई थी, पर सेक्सवर्कर्स ने व्यासपीठ व प्रवचन की मर्यादा और कथा सुनने वालों की भावनाओं का हवाला देते हुए खुद ही आने से मना कर दिया था। लेकिन बापू ने कथा के बाद सौ से अधिक सेक्सवर्करों को कथा पंडाल में बुला प्रसाद दिया, भोजन कराया।
ये मेरी बेटियां...
गणिकाओं को लेकर उठे विवाद से नाराज मोरारी बापू कहते हैं, ये दुनिया किसी की हुई है, एक मिनट में लोगों की फितरत बदल जाती है। क्योंकि हमारी जात ही ऐसी है...। बापू न्यौते तक ही नहीं रुकते हैं। उनका कहना है कि तलगाजरडा गांव की सेक्सवर्कर बहनें भी उन्हें बापू कहती है। कहते हैं, ये मेरी बेटियां हैं।
क्या समाज इसे समझेगा... बापू से हमने पूछा, आगे क्या होगा? क्या समाज इन गणिकाओं को दूसरा मौका देगा? बापू ने कहा, इन बेटियों को सामाजिक जीवन में बसाना मेरी जिम्मेदारी है। यह बात सही है कि उनके लिए लड़के खोजना मुश्किल होगा, लेकिन जब आज का युवा इस भेदभाव को भुलकर मानवता की सेवा का भाव अपने दिलों में जगा लेगा तो मुश्किल आसान हो जाएगी।
तेरे हाथ में इमदाद है, आंखों में उन्माद
जा, चला जा, तेरे हाथ से मुझे भिक्षा नहीं लेना...। वक्त की मारी एक सुंदर कन्या जब भिक्षा मांगने के लिए मजबूर होती है तो एक रईसजादा भिक्षा देने के बहाने आंखों से उसके यौवन को छलनी करता नजर आता है। तब वह कन्या यह बात कहकर अपने खानदानी होने का सुबूत देती है। बापू ने आगे कहा, मानस गणिका में भी नगरवधु का कुछ इस तरह जिक्रहोता है- गणिका अजामिल ब्याध गिध-गजादि खल तेरे घना, पाई न केहि गति- पतित पावन राम।।
नजरिया जरूर बदलेगा...
बापू ने कहा, सेक्सवर्कर बहनों को लेकर समाज का नजरिया अलग है। कभी उन्हें छूत का विषय मान लिया गया, तो कभी हेय का। लेकिन जब हमने कमाटीपुरा, दिल्ली, ग्वालियर, उन्नाव, बाराबंकी की सेक्सवर्कर बहनों को कथा में बुलाया, तो धीरे-धीरे लोग भी उन्हें सामाजिक मान्यता देने लगे। मेरे द्वारा उन्हें बेटी का दर्जा देने मात्र से उनके जीवन में खुशी का संचार हो गया। दूसरे लोगों की सोच क्या है, वे क्या लेन-देन करते हैं, इससे मुझे कोई मतलब नहीं है। मेरी सोच सही है, हम गलत नहीं हैं इसलिए यह कार्य अपने आप महान बन जाता है। अयोध्या जैसे पवित्र शहर में मानस गणिका कथा रसपान उनके जीवन में बदलाव की बयार लेकर आएगा।
साथ आ रहे शिष्य...
कथा के दौरान कई धनाड्यों ने करोड़ों का दान इन गणिकाओं के कल्याण के लिए दिया। मकर संक्रांति पर बापू ने अपने गांव में एक समारोह का आयोजन कर 6 करोड़ रुपये गणिकाओं को सौंपे ताकि वे बेहतर जीवन जी सकें। राम का मंदिर सबके लिए... बापू कहते हैं, भगवान राम का मंदिर सबके लिए खुला है। भगवान के लिए कोई अछूत नहीं है। इसलिए हर व्यक्ति को प्रेम व करुणा बरसाते रहना चाहिए। सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं है- कोशिश है ये सूरत बदलनी चाहिए। जिसे जो कहना है कहे, मेरा मन जो कहेगा मैं करता रहूंगा। मेरा पैगाम मुहब्बत है, जहां तक पहुंचे। मुझे विश्वास है कि इस प्रयास से समाज की सोच में बदलाव आऐगा। जो मंदिर लोगों का तिरस्कार करता हो, उस मंदिर में मूर्ति नहीं पाषाण बसता है। दुनिया की तिरस्कृत कन्याओं को गणिका बताकर परे कर देना मानवीयता का अपमान है, अत्याचार है।
जिसका कोई नहीं, रामकथा उसकी...
मोरारी बापू आगे कहते हैं, जिसका कोई नहीं होता उसका राम होता है, तो रामकथा भी उसकी, जिसका कोई नहीं। तुलसी ने गणिका के घर पहुंच उसे राम का गुणगान सुनाया था- श्री रामचंद्र कृपालु भजमन। धर्मजगत के लोग यदि मेरे इस कदम से नाराज हैं तो उन्हें नाराज नहीं बल्कि खुश होना चाहिए कि जो काम उनको करना चाहिए, उसका बीड़ा मैंने उठाया है। मुझे पूरा विश्वास है कि समाज इस बदलाव को अंगीकार करेगा।
मोरारी बापू, प्रसिद्ध रामकथा वाचक
विरोध तो तुलसी-कबीर को भी झेलना पड़ा
यह बेहद दुस्साहसिक काम था। आसान कतई नहीं था। धर्मजगत के कई लोगों ने इसका पुरजोर विरोध किया। मोरारी बापू को ऐसा करने से रोका और दबाव भी डाला। दैनिक जागरण ने बापू से उनके इस ध्येय पर विस्तार से बातचीत की। पूछा कि क्या उनका यह प्रयास बड़े बदलाव का वाहक बन सकेगा? कितनी चुनौतियां हैं? क्या समाज इन पतित महिलाओं के दर्द को समझेगा? क्या यह प्रथा बंद हो पाएगी? इस विशेष बातचीत में मोरारी बापू ने कहा, जब रामकृष्ण, विवेकानंद जैसे महापुरुषों ने गणिकाओं के प्रति सम्मान दिखाकर हमें रास्ता दिखाया है तो हमें उससे विलग नहीं होना चाहिए, विरोध तो तुलसी व कबीर को भी झेलना पड़ा था।
इन्हें भी सम्मान का हक...
बापू कहते हैं जो काम राम व तुलसी ने किया वे उसी मार्ग पर चलने का प्रयास कर रहे हैं, गणिकाएं इसी समाज का अंग हैं। उन्हें आप वस्तु नहीं समझ सकते। आपकी सोच में विकार हो सकता है, लेकिन अन्य महिला पुरुषों की तरह उन्हें भी सम्मान व प्रेम के साथ जीने का हक है। बापू दृढ़तापूर्वक कहते हैं, यह सिलसिला रुकने गरिम् वाला नहीं है।