Tribute: शहीद आरिफ पठान के पिता बोले, मैं अपने दूसरे बेटे को भी सेना में भेजूंगा Vadodara News
Tribute to martyr arif Pathan. शहीद आरिफ पठान के पिता का सीना गर्व से चौड़ा है और वह दूसरे बेटे को भी देश की रक्षा के लिए सेना में भेजने का वादा कर रहा है।
अहमदाबाद, जेएनएन। शूटिंग की तालीम पूरी करने के बाद उसके मुंह से बरबस यही निकला था कि अब दुश्मन को निशाना बनाने के लिए अधिक गोलियां बर्बाद नहीं करनी पड़ेगी। जाने कहां चूक हुई कि दुश्मन की एक कमबख्त गोली उसे निशाना बना गई। वडोदरा का लाल अब इस दुनिया में नहीं रहा, लेकिन शहीद के पिता का सीना गर्व से चौड़ा है और वह दूसरे बेटे को भी देश की रक्षा के लिए सेना में भेजने का वादा कर रहा है।
जम्मू-कश्मीर के अखनूर में शहीद हुए वडोदरा के आरिफ पठान कश्मीर रायफल्स की 18वीं बटालियन में तैनात था, दो तीन दिन पहले जब उसका फोन आया तो वह कह रहा था मजे में हूं, यहां रहने व खाने –पीनेकी कोई दिक्कत नहीं है। दो दिन बाद फोन करने का वादा किया था, फोन तो आया लेकिन उसका नहीं, सेना के एक अफसर ने इतना ही कहा आरिफ को गोली लगी है, हेलीकॉप्टर से इलाज के लिए उसे उधमपुर ले गए हैं। अखनूर केरी बट्टल सीमा पर पाकिस्तान की ओर से गोलीबारी में उसको गोली लग गई थी।
बुधवार को उसकी पार्थिव देह वडोदरा पहुंची तो सबकी आंखे नम लेकिन सीना गर्व से चौड़ा था, भारत माता की जय, जय हिंद के नारे, हिंद की सेना के जयकारे के बीच उसका भव्य स्वागत हुआ। सेना व पुलिस ने गार्ड ऑफ ऑनर दिया। शहर के कलेक्टर, पुलिस अधीक्षक, सांसद रंजन भट्ट, क्रिकेटर युसुफ पटान आदी ने शहीद की अंतिम यात्रा में पहुंचकर उसे विदाई दी।
शहीद के पिता सफी आलम के मुताबिक, उसे बचपन से खेलकूद व सेना में जाने का शौक था। चार साल पहले दो सौ रु लेकर घर से निकला और मेहसाणा में सेना भर्ती मेले में पहुंच गया और उसका चयन भी हो गया। जबलपुर में उसकी ट्रेनिंग हुई, जब शूटिंग का प्रशिक्षण पूरा हुआ तो उसका यही कहना था कि अब दुश्मन को मारने के लिए अधिक गोलियां खर्च नहीं करनी पड़ेंगी। जम्मू-कश्मीर रायफल ने उसे कैप्टन विक्रम बत्रा अवार्ड भी दिया।
मूलतः उत्तर प्रदेश के कासगंज के बरेगन गांव निवासी आरीफ के पिता सफी आलम के मुताबिक, वे रेलवे में खलासी की नौकरी करते थे। निम्न मध्यम वर्ग के सफी आलम की किसी से पहचान नहीं थी। परन्तु आज उनसे मिलने के लिए कलेक्टर, कमिश्नर, सांसद, सेना के बड़े-बड़े जवन अफसरों सहित स्थानीय विविध पार्टियों के लोगों का जमावड़ा है। नवायार्ड के अमन पार्क में उसके मकान के बाहर पांडाल बनाया गया, जहां शहीद के शव की झलक पाने के लिए शहरवासी उमड़ पड़े।
शहीद बेटे को याद करते हुए शफी आलम ने कहा कि उसे सेना में भर्ती होने का बचपन से ही शौक था। तब मैं कोटा में रेलवे के ट्यूटोरियल आर्मी में थे। जब मैं नौकरी से वापस आता था, तब उसने मेरी यूनिफॉर्म पहनकर कहता कि पापा मुझे भी आर्मी में भर्ती होना है। मैं जब रहने के लिए वड़ोदरा आया, तब उसने आर्मी में शामिल होने के लिए फिजिकल ट्रेनिंग शुरू की। वह खेल कूद और पढ़ने लिखने में होशियार था। रविवार को उससे फोन पर बात हुई। वह बहुत खुश था। उसने कहा कि उसे रहने और भोजन की कोई तकलीफ नहीं है। उसने कहा कि वह बाद में फोन करेगा। फोन तो आया लेकिन उसकी शहादत का।