गुजरात दंगे के 14 दोषियों को हाईकोर्ट में भी उम्रकैद
गुजरात में एक मार्च 2002 को भड़के राज्यव्यापी दंगों के दौरान आणंद जिले के ओड शहर के पीरीवाली भागोल इलाके में तकरीबन 1500 लोगों की भीड़ ने हमला किया था
अहमदाबाद, राज्य ब्यूरो। गुजरात दंगों के दौरान आणंद जिले के ओड में 23 लोगों (नौ बालक, नौ महिलाएं और पांच पुरुष) को जिंदा जला देने के मामले में गुजरात हाई कोर्ट ने 14 दोषियों को आजीवन कारावास और पांच की सात वर्ष की सजा को बरकरार रखा है। हाई कोर्ट ने इस मामले में तीन लोगों को बरी कर दिया है। ट्रायल के दौरान एक दोषी की मौत हो गई है।
उल्लेखनीय है कि गुजरात में एक मार्च 2002 को भड़के राज्यव्यापी दंगों के दौरान आणंद जिले के ओड शहर के पीरीवाली भागोल इलाके में तकरीबन 1500 लोगों की भीड़ ने हमला किया था। दंगाइयों ने एक मकान में धावा बोला था जिसमें महिलाओं और बच्चों समेत 23 लोगों ने शरण ले रखी थी। भीड़ ने इस मकान में आग लगा दी थी, जिससे घर के अंदर मौजूद सभी लोग जिंदा जल गए थे।
उच्च न्यायालय के न्यायाधीश अकील कुरैशी और बीएन कीरिया की खंडपीठ ने निचली अदालत की सजा को बरकरार रखा। निचली अदालत में इस मामले में 47 लोगों पर मुकदमा चलाया गया था। अदालत ने अप्रैल 2012 में हत्या और आपराधिक षड्यंत्र का दोषी मानते हुए 18 लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। पांच अन्य को हत्या के प्रयास का दोषी मानते हुए सात-सात वर्ष कैद की सजा दी थी।
अन्य आरोपियों को बरी कर दिया था, जबकि एक अन्य की सुनवाई के दौरान मौत हुई थी। सभी 23 दोषियों ने सजा के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील की थी। राज्य सरकार, एसआइटी और पीड़ितों ने उम्रकैद की सजा पाने वाले 18 दोषियों के लिए फांसी की सजा मांगी थी। वहीं सात अन्य की सजा बढ़ाने की मांग की थी।
न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि सांप्रदायिक दंगे बिना सोच की हिंसा होती है। यह दंगे क्षणिक और पल भर के लिए आक्रामक होते हैं। दंगों को लेकर पीड़ितों और आरोपी पक्ष दोनों को भारी यातना सहन करनी पड़ती है। सांप्रदायिक दंगों के दौरान पीड़ित यह यातना सहन करते हैं, वहीं इसके बाद आरोपित के परिजनों को यह यातना भोगनी पड़ती है। उन्हें जमानत के लिए कई बार अदालत का दरवाजा खटखटाते हैं। हालांकि अदालतें न्याय का काम करती है।