हार्दिक को राजद्रोह मामले में अदालत से नहीं मिली राहत
पाटीदार आंदोलन के दौरान सरकारी संपत्ति में तोडफ़ोड़ और आगजनी को लेकर हार्दिक के खिलाफ राज्य भर में 457 मुकदर्म दर्ज किए गए थे।
अहमदाबाद, राज्य ब्यूरो। अहमदाबाद के सत्र न्यायालय ने पाटीदार नेता हार्दिक पटेल को राजद्रोह के मामले में आरोपमुक्त करने से इन्कार कर दिया है। हार्दिक ने सबूतों के अभाव में आरोपमुक्त करने की अर्जी लगाई थी। लेकिन अदालत ने भाषण, मोबाइल पर हुई बातचीत और एफएसएल रिपोर्ट के आधार पर उनके खिलाफ आरोप तय करने की मंजूरी दे दी है। अदालत केइस फैसले से हार्दिक को गहरा झटका लगा है।
पाटीदार नेता हार्दिक पटेल के खिलाफ अहमदाबाद और सूरत में राजद्रोह का मुकदमा दर्ज है। पाटीदार आंदोलन के दौरान सरकारी संपत्ति में तोडफ़ोड़ और आगजनी को लेकर हार्दिक के खिलाफ राज्य भर में 457 मुकदर्म दर्ज किए गए थे। उनके साथ दिनेश बामणिया, चिराग पटेल, केतन पटेल, नीलेश एरवडिया पर भी राजद्रोह के मुकदर्म दर्ज हैं।
हार्दिक ने अपने खिलाफ सबूत नहीं होने का दावा करते हुए कहा था कि पुलिस उसके खिलाफ कोई आरोप सिद्ध नहीं कर सकी और सरकार को अस्थिर करने का भी उस पर राजनीतिक रूप से आरोप लगा है। न्यायाधीश दिलीप महिडा ने हार्दिक के भाषण, मोबाइल पर हुई बातचीत के आडियो तथा फोरेंसिक सबूत
के आधार पर अभियोजन पक्ष को आरोप तय करने का आदेश किया है। पाटीदार आरक्षण आंदोलन समिति के बैनर तले बीते तीन साल से गुजरात में आरक्षण की मांग को लेकर आंदोलन चल रहा है।
अहमदाबाद के जीएमडीसी मैदान में 25 अगसत 2015 को महाक्रांति रैली के बाद गुजरात भर में आगजनी व तोडफ़ोड़ की घटनाएं हुईं। सूरत में आत्महत्या करने की घोषणा करने वाले एक युवक से मिलने पहुंचे हार्दिक ने बातचीत में उसे दो-चार पुलिस वालों की हत्या करने की सलाह दी। इसके आधार पर उसके खिलाफ सूरत व अहमदाबाद में राजद्रोह का मुकदमा दर्ज किया गया था। सितंबर 2015 में हार्दिक को राजकोट में एक क्रिकेट मैच का विरोध करने के दौरान तिरंगा के अपमान के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। करीब नौ माह जेल में रहने के बाद जून 2016 में उन्हें जमानत पर छोड़ दिया गया था।